अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 24/8/2021
आतंक के शिकंजे में दबोचे जा चुके अफ़ग़ानिस्तान से आज, 24 अगस्त 2021 को गुरु ग्रन्थ साहिब की तीन प्रतियाँ भारत आई हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब, यानि वह पुस्तक जिसमें गुरुओं की शिक्षाएँ हैं। जिसमें गुरुओं के बताए मार्ग का उल्लेख है। जिसमें गुरुओं की ओर से मानव जीवन के लिए तय लक्ष्यों का ज़िक्र है। वे गुरु, जिन्होंने हिन्दुस्तान के एक काल-विशेष में सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर दिया। मानवता, सभ्यता, संस्कृति, अस्मिता की रक्षा के लिए अपना कुछ भी अपने पास नहीं रखा। जो धारण किया, वह भी सिर्फ़ इन्हीं लक्ष्यों के लिए।
लेकिन उन महान् गुरुओं के उसी पन्थ पर चलने का दावा करने वाले कुछ चन्द मानव-मस्तिष्क देखिए क्या कर रहे हैं। जिस भारत-भूमि, जिस सनातन संस्कृति की रक्षा-सुरक्षा के लिए उनके गुरुओं ने अपना सब बलिदान कर दिया, उसी भूमि, उसी संस्कृति के प्रतीकों की ये चुनिन्दा लोग अवमानना (26 जनवरी 2021 की घटना) कर रहे हैं। वह भी किसके साथ मिलकर? उस कट्टर और भ्रमित सोच के साथ, जिससे उनके गुरुओं ने आजीवन मुकाबला किया। जिसे चुनौती देते हुए उन गुरुओं ने अपने नौनिहालों तक को कुर्बान हो जाने दिया। एक बार उफ़्फ़ तक न किया।
इन कट्टर और भ्रमित मानसिकताओं के बीच सहकार का स्तर आज कहाँ जा पहुँचा है, देखिए। जब अफ़ग़ानिस्तान में कट्टर मानसिकता ने एक धर्म-स्थल को मलिन किया, उसे ढहाया तो भ्रमित सोच वाले वर्ग ने कहीं, कोई आवाज़ तक ऊँची न की। लेकिन उनकी आवाज़ तब ख़ासी ऊँची हुई, जब कट्टर मानसिकता के लोगों ने हिन्दुस्तान में ख़ुद को पीड़ित और प्रताड़ित की तरह पेश किया। तब उनके सहयोग के लिए वे भारतीय व्यवस्था को सीधी चुनौती देने से भी नहीं चूके। जबकि वही व्यवस्था आज आगे आकर उनकी पन्थिक अस्मिता, गरिमा को सुरक्षा व संरक्ष्रा दे रही है।
ये और ऐसे तमाम प्रासंगिक उदाहरणों को हम ख़ासतौर पर तब ज़रूर याद कर सकते हैं, जब बुद्ध की सम्यक समाधि के प्रसंग से दो-चार होते हैं। उससे गुजरते हैं। सम्यक समाधि यानि अपने लक्ष्य, अपने ध्येय को साधने की एक चरम अवस्था। भारतीय दर्शन में इस अवस्था का एक बेहतरीन उदाहरण महाभारत काल से मिलता है। जब गुरु द्रोण अपने शिष्यों की परीक्षा लेते हैं। हर शिष्य को लक्ष्य बताए जाते हैं, साधने के लिए। लेकिन उनसे पहले एक प्रश्न किया जाता है, “आपको सामने क्या-कुछ दिख रहा है?” उत्तर में सभी शिष्य वह सब बताते हैं, जो उन्हें दिख रहा होता है।
लेकिन अर्जुन। उन्हें अपने सामने कुछ नहीं दिखता। वह पक्षी भी नहीं, जिसकी आँख पर उन्हें लक्ष्य भेदना है। उन्हें सिर्फ़ वह एक आँख ही दिखती है। यही अर्जुन जब महादेव के आदेश पर दैवीय अस्त्र हासिल करने के लिए स्वर्ग जाते हैं, तो उन्हें वहाँ भी कोई अप्सरा या स्वर्गिक सुख नहीं दिखते। सिर्फ़ लक्ष्य दिखता है कि दैवीय अस्त्र हासिल करना है और भविष्य में होने वाले धर्म-युद्ध में अपनी विजय सुनिश्चित करने के लिए धरती पर वापस लौटना है। दरअसल, अर्जुन की यही अवस्था उन्हें नारायण का निकटस्थ बनाती है। और नारायण को भी उनका सारथी बनने पर विवश करती है।
महात्मा बुद्ध के शब्दों में यही ‘सम्यक समाधि’ है। जो मन अस्थिर है, भ्रमित है, तय मानिए कि वह लक्ष्य से भटक चुका है। और निश्चित रूप से अपने पतन की ओर अग्रसर है। भगवान बुद्ध अपने अष्टांगिक मार्ग के उपदेश में ‘सम्यक समाधि’ का उल्लेख करते हुए चित्त की एकाग्रता पर विशेष जोर देते हैं। मन के भटकाव से बचने की प्रेरणा देते हैं। क्योंकि तभी हम ‘सम्यक समाधि’ की स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। तभी हम पार्थ (अर्जुन का एक नाम) हो सकते हैं। तभी कृष्ण हमारे पथ-प्रदर्शक, हमारे सारथी बनकर हमें कल्याण की ओर, मोक्ष की ओर, मुक्ति की ओर ले जा सकते हैं।
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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 25वीं कड़ी है।)
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अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां ये रहीं….
24वीं कड़ी : सम्यक स्मृति; कि हम मोक्ष के पथ पर बढ़ें, तालिबान नहीं, कृष्ण हो सकें
23वीं कड़ी : सम्यक प्रयत्न; बोल्ट ने ओलम्पिक में 115 सेकेंड दौड़ने के लिए जो श्रम किया, वैसा!
22वीं कड़ी : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो
21वीं कड़ी : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो?
20वीं कड़ी : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है
19वीं कड़ी : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है
18वीं कड़ी : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है
17वीं कड़ी : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं?
16वीं कड़ी : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला?
15वीं कड़ी : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है?
14वीं कड़ी : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है?
13वीं कड़ी : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं?
12वीं कड़ी : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन
11वीं कड़ी : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई?
10वीं कड़ी :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है?
नौवीं कड़ी : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की!
आठवीं कड़ी : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?
सातवीं कड़ी : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे?
छठी कड़ी : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है
पांचवीं कड़ी : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा?
चौथी कड़ी : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं?
तीसरी कड़ी : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए!
दूसरी कड़ी : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा?
पहली कड़ी :भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?