दीपक गौतम, सतना मध्य प्रदेश
पिता…
पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।
वे कभी न क्षीण होने वाला आत्मबल हैं।
संतान के लिए उनका त्याग निश्छल है।
उनकी मुट्ठियों में हर दुविधा का हल है।
वे त्याग का बहता हुआ निर्मल गंगाजल हैं।
पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।
बच्चों के दुःख में जो सदैव रहता व्याकुल है।
विकट परिस्थिति में संतान का सबसे बड़ा बल है।
जिनके सीने में धँस गए दर्द के बड़े-बड़े महल हैं।
उनकी शान्त आँखों में दुनियाभर की हलचल है।
फिर भी दिखाई नहीं देती वहाँ कोई मुश्किल है।
पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।
मन की बंजर जमीन पर वे संस्कारों का चलता हल हैं।
संतान की ऊसरता को उर्वरता में बदलने वाला जल हैं।
पिता ही बच्चों के बेहतर भविष्य का सुनहरा कल हैं।
वे अपनी नींद तुम्हारी आँखों में भरने वाला एक पल हैं।
तुम महसूस करोगे तो पिता का प्रेम जल की तरह शीतल है।
पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।
बच्चों की जीत में जो खुद को हार जाए वो खिलंदड़ हैं।
पिता किसी अव्याखित महाकाव्य का महाखंड हैं।
उन्हें कुछ शब्दों में कहाँ लिख पाओगे?
वे ना ही कहानी ना ही कोई छंद हैं।
वे तो जीवन के रंग- रूप का चलता-फिरता एक ढंग हैं।
उनसे पूछो जो अनाथ हैं, कि पिता बिना जीवन कितना बदरंग है।
सच मानो, हमारी आत्मा की मैली चादर का वो सबसे सफेद रंग हैं।
बस इसीलिए कहता हूँ कि पिता जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।
पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।
#आवाराखयाल #aawarakhayal
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दीपक की पिछली कविताएँ
2- एक कविता…. “मैं लिखूँगा और लिखता रहूँगा”
1- पहलगााम आतंकी हमला : इस आतंक के ख़ात्मे के लिए तुम हथियार कब उठाओगे?
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(दीपक मध्यप्रदेश के सतना जिले के छोटे से गाँव जसो में जन्मे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2007-09 में ‘मास्टर ऑफ जर्नलिज्म’ (एमजे) में स्नातकोत्तर किया। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस और लोकमत जैसे संस्थानों में कार्यरत रहे। साथ में लगभग डेढ़ साल मध्यप्रदेश माध्यम के लिए रचनात्मक लेखन भी किया। इन दिनों स्वतंत्र लेखन करते हैं। बीते 15 सालों से शहर-दर-शहर भटकने के बाद फिलवक्त गाँव को जी रहे हैं। बस, वहीं से अपनी अनुभूतियों को शब्दों के सहारे उकेर देते हैं। कभी लेख तो कभी कविता की सूरत में। अपने लिखे हुए को #अपनीडिजिटलडायरी के साथ साझा भी करते हैं, ताकि वे #डायरी के पाठकों तक पहुँचें। ये कविता भी उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है।)