अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 10/8/2021
बुद्ध अपने प्रतीत्य समुत्पाद के तीसरे भाग अर्थात् समाधि की बात करते हैं। भारतीय दर्शन में समाधि अत्यधिक महत्त्वपूर्ण विचार है। बुद्ध समाधि में तीन चीजों को रखते हैं। इनमें पहली है, ‘सम्यक प्रयत्न’। प्रयत्न से यहाँ तात्पर्य है ‘व्यायाम’। हमने अक़्सर सुना होगा, “पहला सुख, निरोगी काया”। यानि जब हम स्वस्थ होंगे, तभी मन ठीक से कार्य करने की स्थिति में होगा।
आज के मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि मानसिक तनाव को दूर करने का कारगर उपाय है, शारीरिक श्रम। कारण कि जब हम शारीरिक श्रम करते हैं तो हमारा मस्तिष्क गति के कारण विशिष्ट दिशा में कार्य करने लगता है। इससे हम अपनी मानसिक चिन्ताओं को विस्मृत कर देते हैं। हमारा मन और शरीर दोनों बेहतर अनुभव करते हैं।
हालाँकि बुद्ध के प्रयत्न में ‘व्यायाम’ से तात्पर्य है, इन्द्रियों का संयम। साधना, जो समाधि का पहला भाग है। और ये साधना, संयम हमें कहाँ तक पहुँचा सकता है, इसका उदाहरण हाल ही में ख़त्म हुए ओलम्पिक खेलों से ले सकते हैं। अभी टोक्यो ओलम्पिक से पदक जीतकर लौटे भारतीय खिलाड़ियों- नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू, रवि दाहिया, बजरंग पूनिया, लवलीना बोरगोहेन, पीवी सिन्धु और हॉकी टीम के खिलाड़ियों की चौतरफ़ा चर्चा है।
कुछ इनसे भी अधिक चर्चा एक समय में विश्व प्रसिद्ध धावक उसैन बोल्ट की भी हुआ करती थी। उनके बारे में अभी कहीं पढ़ रहा था कि उन्होंने ओलम्पिक में तीन बार भाग लिया। उनमें आठ स्वर्ण पदक जीते। लेकिन इससे भी ज़्यादा कमाल की बात यह है कि आठ स्वर्ण पदक जीतने के लिए ओलम्पिक के मैदान पर बोल्ट मात्र 115 सेकेंड्स से भी कम समय दौड़े।
एक और उदाहरण हैं, देवेन्द्र झाझड़िया का। वे पैरालम्पिक के खिलाड़ी हैं। यानी दिव्यांगों की खेल प्रतिस्पर्धा के भागीदार। भाला फेंकते हैं। अब तक दो बार- एथेंस और रियो के पैरालम्पिक में अपने और भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। यही नहीं, विश्व चैम्पियनशिप-2013 में स्वर्ण और 2015 में इन्होंने रजत पदक जीता है। इन जीत के साथ इनकी सफलताओं का भी ख़ूब ज़िक्र होता है।
लेकिन क्या हमने सोचा है कि सफलता का शिखर छूने वाले इन सभी खिलाड़ियों ने किस स्तर का प्रयत्न किया होगा? कितनी मेहनत की होगी? हमारे लिए मुश्किल ही है, ऐसी कल्पना भी। क्योंकि हम कल्पना करें भी तो कैसे? हम प्रयत्न ही कहाँ कर पाते हैं?
फिर भी जानना ज़रूरी है, हमारे लिए कि महज़ 115 सेकेंड्स ओलम्पिक के मैदान में दौड़ने के लिए बोल्ट ने जीवन के कम से कम 15-20 साल ख़र्च किए होंगे। ख़र्च क्या किए, खपाए होंगे। पूरी ऊर्जा, साधन, समय, आकांक्षाएँ लगाई होंगी, अपने प्रयत्नों के साथ।
ऐसे ही देवेन्द्र के बारे भी हमें जानना चाहिए कि बचपन में हुई एक दुर्घटना में इन्होंने अपना एक हाथ गवाँ दिया था। पर इन्होंने उसे अपनी कमजोरी, मजबूरी, दीनता या हीनता नहीं माना। जीवन को नई दिशा दी। दूसरे हाथ को ताक़त बनाया। उससे भाला पकड़ा और अपना, देश का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया।
यह सब इन लोगों के लिए कैसे सम्भव हुआ? या ऐसे तमाम लोगों के लिए कैसे सम्भव हो पाता है? निश्चित ही, इन्द्रियों के संयम से। संघर्ष और साधना उसके बाद के क्रम में आती हैं, इन लोगों के लिए।
बुद्ध यही कहते हैं। उनके ‘सम्यक प्रयत्न’ का तात्पर्य सम्भवत: यही होना चाहिए। हाँ, पर उनके प्रयत्न की दिशा अवश्य आध्यात्मिक रही होगी। लेकिन हमें यह सीखना, समझना चाहिए कि अगर हम अपनी, परिवार, समाज, राष्ट्र या विश्व की उन्नति चाहते हैं तो उसका मार्ग हमारे लिए भी यही होगा- सम्यक प्रयत्न।
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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 23वीं कड़ी है।)
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अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां ये रहीं….
22वीं कड़ी : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो
21वीं कड़ी : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो?
20वीं कड़ी : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है
19वीं कड़ी : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है
18वीं कड़ी : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है
17वीं कड़ी : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं?
16वीं कड़ी : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला?
15वीं कड़ी : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है?
14वीं कड़ी : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है?
13वीं कड़ी : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं?
12वीं कड़ी : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन
11वीं कड़ी : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई?
10वीं कड़ी :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है?
नौवीं कड़ी : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की!
आठवीं कड़ी : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?
सातवीं कड़ी : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे?
छठी कड़ी : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है
पांचवीं कड़ी : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा?
चौथी कड़ी : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं?
तीसरी कड़ी : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए!
दूसरी कड़ी : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा?
पहली कड़ी :भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?