गोपाल भाई, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश से, 30/10/2020
नानाजी देशमुख ने अगर अपने सहयोगी डॉक्टर भरत पाठक जी को शरदोत्सव के तौर पर अपनी जयन्ती मनाने की सहमति दी तो वह यूँ ही नहीं थी। उसके पीछे उनका ख़ास मक़सद था। मन्तव्य था और इसकी भूमिका भी उनके मन-मस्तिष्क में काफी पहले बन चुकी थी। मुझे याद है, जब नानाजी ने बुन्देलखंड को अपना कार्यस्थल बनाया तो उनके मन में इस क्षेत्र के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता थी। यहाँ की संस्कृति, यहाँ का साहित्य, संगीत, आदि हर चीज में वे रुचि दिखा रहे थे। यह बात 1990 के दशक की शुरुआत की है। तब चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की नींव तैयार हो रही थी। उसी दौरान 18,19,20 नवम्बर 1991 को चित्रकूट में बुन्देलखंड संगीत समारोह का आयोजन हुआ। मन्दाकिनी के उस तट पर, जहाँ नानाजी तब निवास कर रहे थे, जिसका नामकरण बाद में ‘सियाराम कुटीर’ किया गया। इस आयोजन के दौरान पूरे तीन दिन नानाजी ने तमाम प्रस्तुतियों को क़रीब से और बड़ी दिलचस्पी लेकर देखा। उसी समय उनके मन में विचार आया कि क्यों न ग्रामोदय विश्वविद्यालय में संगीत संकाय की स्थापना की जाए। साथ ही वर्ष में एक बार बुन्देलखंड के ऐसे सारे गुणी कलाकारों को बुलाया जाए। प्रोत्साहित किया जाए। उन्हें और उनकी कलाओं को मंच दिया जाए। इस तरह शरदोत्सव की प्रारम्भिक भूमिका तैयार हुई।
नानाजी ख़ुद भी संगीत का मर्म समझते थे। संगीतकारों का वह बेहद सम्मान किया करते थे। इसका प्रमाण संगीत और संगीतकारों के प्रति उनके व्यवहार से मिलता है। एक बार की बात है, चित्रकूट के यात्रिका भवन में ध्रुपद गायकी का कार्यक्रम चल रहा था। कई कलाकार वहाँ इकट्ठा थे। नानाजी उस कार्यक्रम में कुछ देर से आए तो चुपचाप पीछे की पंक्ति में बैठ गए। हाथ से गायन के साथ ताल देने लगे। जब उस कार्यक्रम में मौज़ूद लोगों ने देखा कि नानाजी बैठे हैं तो उन्होंने उनसे आगे की पंक्ति में बैठने का आग्रह किया। लेकिन उन्होंने मना कर दिया। कहा, “कार्यक्रम में कोई व्यवधान पैदा नहीं होना चाहिए”। मेरा ख़्याल है कि यही वे वज़हें रहीं जिनके चलते उन्होंने डॉक्टर भरत पाठक जी और उनके अन्य सहयोगियों को शरदोत्सव मनाने की मंज़ूरी दी। बावज़ूद इसके कि वे अपनी जयन्ती पर कोई समारोह आदि मनाने के पक्षधर नहीं थे। लेकिन चूँकि इस आयोजन से लोक कलाओं, लोक कलाकारों, लोक संगीत, लोक साहित्य का संरक्षण, संवर्धन और प्रोत्साहन जुड़ा था, इसलिए वे उत्सव के लिए सहमत हो गए। यह आयोजन चित्रकूट में शुरू हाेते ही लोकप्रिय हो गया। यहाँ के लिए यह एक नई बात थी। इसलिए लोग बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लिया करते थे। और हर साल इस आयोजन की उन्हें प्रतीक्षा भी रहती थी।
हालाँकि इस बार कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण चित्रकूट में इस कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो पा रहा है। निश्चित ही चित्रकूट के लोगों को यह बात खलेगी। पर उन्हें यह जानकर उतनी ही खुशी भी हो रही होगी कि डॉक्टर भरत, डॉक्टर नन्दिता और टुवॉर्ड्स बैटर इंडिया (Towards Better India) नाम की संस्था मिलकर शरदोत्सव का आयोजन इस बार ऑनलाइन (Online) माध्यम से कर रहे हैं। इसी 30 अक्टूबर को, शुक्रवार के दिन यह कार्यक्रम शाम छह से आठ बजे के बीच नियत हुआ है। इसमें चित्रकूट के लोग तो सहभागी होंगे ही, उनके साथ अब देश और दुनियाभर से नानाजी के समर्थक भी इस आयोजन के साक्षी बन सकेंगे। नानाजी के विचारों को इस माध्यम से आगे बढ़ाने का यह निश्चित रूप से एक बड़ा प्रयास है। मैं इसकी सफलता की ईश्वर से कामना करता हूँ।
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(गोपाल जी अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक हैं। वे 1930 के दशक की शुरुआत में नानाजी के सम्पर्क में आए और उनके आख़िरी समय तक साथ रहे। उन्होंने वीडियाे सन्देश के जरिए डॉक्टर नन्दिता पाठक के माध्यम से अपने विचार #अपनीडिजिटलडायरी तक पहुँचाए हैं।)