विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 30/12/2021
राजीव सरकार में आंतरिक सुरक्षा मंत्री अरुण नेहरू ही यूनियन कार्बाइड मामले को देख रहे थे। हालांकि वे मंत्रिमंडल में 1986 में आए, लेकिन उसके पहले भी सरकार में उनकी तूती बोलती थी। प्रणब मुखर्जी ने जो 1995-96 में विदेश मंत्री थे और उन्होंने एंडरसन को फाइल आगे नहीं बढ़ाई थी। इसी कारण वे भी बैकफुट पर हैं। रविवार को मुखर्जी और नेहरू दोनों ने ही सात दिसंबर 1984 की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अर्जुनसिंह के बयान को आधार बनाकर एंडरसन की रिहाई का दोषी उन्हें ही बता दिया।
भोपाल गैस त्रासदी से संभावित राजनीतिक नुकसान से चिंतित केंद्र सरकार ने इस मामले में गठित मंत्री समूह की जांच का दायरा बढ़ा दिया है। इस समूह को गैस त्रासदी से जुड़े सभी पहलुओं को बारीकी से देखने को कहा गया है। कोई चमत्कारिक उपाय खोजने की उम्मीद में समूह को गैस पीड़ितों के पुनर्वास और राहत संबंधी कोई भी निर्णय लेने का अधिकार भी दे दिया गया है। मनमोहन सरकार चाहती है, यह बात साफ हो जाए कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी इस मामले में बेदाग हैं। चाहे, बात 1984 में एंडरसन को भोपाल में गिरफ्तारी के बाद सुरक्षित अमेरिका भिजवाने की हो या 1989 में यूका द्वारा अपर्याप्त मुआवजा देने संबंधी हो। इसीलिए इस समूह को कुछ ऐसा रास्ता तलाशना है, जिससे जनता का गुस्सा शांत हो।
चिदंबरम की अध्यक्षता वाले इस समूह को एंडरसन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई, पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने और संबंधित कंपनियों से बतचीत का विकल्प भी देखना है। हालांकि इसी मामले को लेकर अर्जुनसिंह की अध्यक्षता में पहले गठित दो मंत्री समूहों (2004 और 2006 में अलग-अलग) का दायरा सिर्फ राहत और पुनर्वास तक ही सीमित था। राहत और पुनर्वास संबंधी कोई भी फैसला करने के लिए मंत्री-समूह को पूरा अधिकार दिया गया है। यह संभावना भी देखनी है कि क्या अमेरिकी कंपनी से और मुआवजा लिया जा सकता है। इधर, सीबीआई ने अपनी वेबसाइट पर एंडरसन को घोषित अपराधी करार दिया है। इसके परिणाम क्या हो सकते हैं यह चिंता प्रधानमंत्री के घर बुलाई गई कांग्रेस कमेटी की बैठक में छाई रही।
…पुराने अखबारों की तलाश में मैं माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय गया। दिसंबर 1984 के चुनिंदा अखबारों की एक फाइल यहां मिली। इतने सारे अखबारों में एक-एक खबर को पढ़ते हुए दिमाग बुरी तरह घूम गया। मैं उस समय भोपाल में नहीं था, लेकिन उन दिनों का भोपाल इन अखबारों की तस्वीरों और खबरों में जिंदा था। लाशों का ऐसा भयानक मंजर कम ही मौकों पर दिखाई देता है, जैसा भोपाल ने भुगता। भूकंप, तूफान या बाढ़ के वक्त भी एक साथ एक ही शहर में हजारों की तादाद में इस तरह लाशें दिखाई नहीं देतीं, जैसी भोपाल की गलियों, सड़कों, घरों और अस्पतालों के अहातों में जानवरों से बुरी हालत में पड़ी थीं। भोपाल में किसी कुदरती हादसे के बिना ही दिल दहलाने वाली तबाही देखी गई।
पन्ने पलटते हुए अखबारों में मेरी नजर अर्जुनसिंह की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस पर पड़ी, जो उन्होंने सात दिसंबर 1984 को ली थी। चूंकि अर्जुन अब चुप्पी की चादर ओढ़े बैठे थे, इसलिए इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के कवरेज पर खासतौर से मेरा ध्यान गया।…पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी…। यह अकेला एक वाक्य यह जानने के लिए काफी था कि तब की प्रदेश सरकार वॉरेन एंडरसन के प्रति कितने आदर और सम्मान से भरी हुई उसकी सुख-सुविधा के प्रति संवेदनशील थी।…
…क्या आपने एंडरसन की गिरफ्तारी से पहले किसी की सलाह ली थी? इस सवाल पर मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने पत्रकारों से कहा उन्होंने किसी सलाह नहीं ली थी किंतु प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इसकी सूचना दे दी गई थी। श्री गांधी ने इस पर क्या कहा? मुख्यमंत्री ने इस सवाल के जवाब में इतना भर कहा- श्री राजीव गांधी ने सुन लिया था।’
( जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!