और ये हैं जिनकी वजह से केस कमजोर होता गया… 

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 31/3/2022

सीबीआई के पूर्व निदेशक जे.एस बावा, जोगिंदर सिंह और मौजूदा निदेशक : केंद्र सरकार से पूरी तौर पर बंधी सीबीआई के पास यह मामला हादसे के कुछ ही घंटों में पहुंच गया था। उसी दिन दिल्ली से सीबीआई का जांचदल भी भोपाल पहुंच गया। फिर ऐसा क्या था जिसके कारण सीबीआई को केस के कागज़ पुलिस से लेने में छह दिन लग गए। सीबीआई ने भी इसे धारा 304-ए के तहत दर्ज किया। जबकि उस समय तक पुलिस इस मामले में धारा-304 पहले ही लगा चुकी थी। तत्कालीन निदेशक बावा के कार्यकाल में सीबीआई ने पुलिस से पूछा ही नहीं कि मुख्य अभियुक्त वारेन एंडरसन को किन हालातों में रिहा कर दिया गया और क्यों? 1996 में जब सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपियों पर से गैरइरादतन हत्या का मामला हटाया तो उस समय के निदेशक जोगिंदर सिंह ने इसके खिलाफ रिव्यू पिटीशन दायर ही नहीं की। ऐसे ही उन्होंने मुख्य आरोपी एंडरसन को अमेरिका से प्रत्यर्पण कराने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। मौजूदा निदेशक अश्विनी कुमार ने केस को कमजोर करने का दोष पब्लिक प्रोसिक्यूटर पर मढ़ दिया। उनका कहना था कि सीबीआई के पास सक्षम वकीलों की कमी है इसी वजह से अक्सर वह अदालत में केस ठीक से नहीं लड़ पाती। लेकिन वे यह नहीं बताते कि केस की सुनवाई दोबारा शुरू कराने के लिए वे क्या कदम उठा रहे हैं और क्या वे सजा को बढ़वा पाने में सक्षम होंगे? 

पूर्व एटॉनों जनरल सोली जे सोराबजी : देश के सबसे विद्वान वकीलों में से एक सोली सोराबजी केंद्र से जुड़े थे लेकिन एंडरसन का प्रत्यर्पण का फैसला कराने में उनकी भूमिका विवादित है। पहले उन्होंने सरकार को राय दी कि एंडरसन का प्रत्यर्पण कराया जा सकता है। फिर कहा कि अच्छा हो कि इस मामले में किसी अमेरिकी लॉ फर्म से भी राय ले ली जाए क्योंकि एंडरसन अमेरिकी नागरिक है। इसके बाद उन्होंने भी अपनी राय बदलते हुए कहा कि सीबीआई द्वारा पेश सबूत एंडरसन का प्रत्यर्पण कराने के लिए अमेरिकी अदालत को संतुष्ट करने में नाकाफी होंगे। उन्होंने कहा कि इसलिए सरकार को प्रत्यर्पण की कोशिश छोड़ देनी चाहिए। इसके उलट संविधान विशेषज्ञ नानी पालकीवाला को यूनियन कार्बाइड ने अमेरिकी अदालत में अपने पक्ष में खड़ा किया। पालकीवाला ने 1985 में सख्त अमेरिकी कानून के तहत गैस पीड़ितों को बेहतर मुआवजा और यूका को सख्त सजा दिलाने के लिए स्वयंसेवियों द्वारा दायर याचिका खारिज करा दी। अगर पालकीवाला अमेरिकी कानून इतनी बेहतर तरह. से जानते थे तो सोराबजी ने अमेरिकी फर्म से राय क्यों मांगी? 

पी चिदंबरम, अरुण जेटली, कमलनाथ, अभिषेक मनु सिंघवी, रतन टाटा, मोंटेकसिंह अहलूवालिया : ये सभी अलग-अलग पार्टी, पदों पर हो सकते हैं, राजनीति में एक दूसरे के खिलाफ हो सकते हैं। लेकिन जब यूनियन कार्बाइड की भोपाल फैक्ट्री में अभी पड़े जहरीले कचरे को साफ करने की जिम्मेदारी बताने की बात आई तो इन सभी ने एक सुर में यूका को खरीदने वाली अमेरिकी कंपनी डाऊ केमिकल्स के वकील की तरह बात की। पच्चीस साल बाद भी फैक्ट्री के तीन किलोमीटर परिधि में भूजल में जहरीले तत्त्वों का असर है। जानेमाने उद्योगपति रतन टाटा ने भारतीय उद्योगपतियों का एक समूह बनाकर उसे यह जिम्मेदारी देने का प्रस्ताव रखा था। जेटली और सिंघवी डाऊ के वकील रहे जबकि केंद्रीय मंत्री चिदंबरम, कमलनाथ और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटकसिंह ने भी डाऊ की वकालत की। उन सभी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 2006 में अलग-अलग लिखे पत्रों में कहा कि 1984 में हुए गैस रिसाव से डाऊ केमिकल का कोई वास्ता नहीं था। इसलिए उसे कचरे को हटाने के लिए जरूरी 100 करोड़ रुपए देने को बाध्य न किया जाए। क्योंकि इससे भारत में विदेशी निवेश प्रभावित होगा। गैस पर बने जीओएम के अध्यक्ष चिदंबरम ने न्यूयॉर्क में होने वाली इंडो-यूएस सीईओ फोरम की एक बैठक में जाने से पहले प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में टाटा के प्रस्ताव से सहमति जताई। 

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एएम अहमदी : प्रोसीक्यूशन के दबाव में। इन्होंने ही 1996 में मुकदमे की धारा गैरइरादतन हत्या से हटा कर लापरवाही से हुई मौत की धारा 304-ए कर दी थी। वह भी तमाम ऐसे पुख्ता सबूतों के होते हुए जो यूनियन कार्बाइड मैनेजमेंट की आपराधिक लापरवाही सिद्ध कर रहे थे। इस बेंच में उनके साथ जस्टिस एसबी मजूमदार भी थे जो 2000 में सेवानिवृत्त हुए। ऐसे में माना जा सकता हैं कि आरोपियों को दो साल की सजा का फैसला इन दोनों ने चौदह साल पहले ही लिख दिया था। सीजेएम भोपाल ने तो यह फैसला मात्र पढ़कर सुनाया। अहमदी ने 31 मार्च 1997 को सेवानिवृत्त होने से बीस दिन पहले ही अपने फैसले के खिलाफ दायर रिव्यू पिटीशन खुद खारिज कर दी। इसके तुरंत बाद उन्होंने यूनियन कार्बाइड प्रबंधन द्वारा 250 करोड़ रुपए के भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी का पद संभाल लिया। 
(जारी….)
——
विशेष आग्रह : #अपनीडिजिटलडयरी से जुड़े नियमित अपडेट्स के लिए डायरी के टेलीग्राम चैनल (लिंक के लिए यहाँ क्लिक करें) से भी जुड़ सकते हैं।  
——
(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
——
श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ  
32. उन्होंने आकाओं के इशारों पर काम में जुटना अपनी बेहतरी के लिए ‘विधिसम्मत’ समझा
31. जानिए…एंडरसरन की रिहाई में तब के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की क्या भूमिका थी?
30. पढ़िए…एंडरसरन की रिहाई के लिए कौन, किसके दबाव में था?
29. यह अमेरिका में कुछ खास लोगों के लिए भी बड़ी खबर थी
28. सरकारें हादसे की बदबूदार बिछात पर गंदी गोटियां ही चलती नज़र आ रही हैं!
27. केंद्र ने सीबीआई को अपने अधिकारी अमेरिका या हांगकांग भेजने की अनुमति नहीं दी
26.एंडरसन सात दिसंबर को क्या भोपाल के लोगों की मदद के लिए आया था?
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार… 
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *