विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 17/3/2022
छह- अर्जुनसिंह, मुख्यमंत्री : राजीव गांधी के दबाव में और एंडरसन के प्रभाव में थे। चुनाव के समय आए इस संकट में अपनी पोजीशन को बनाए और बचाए रखते हुए उन्हें एक साथ तीन को संतुष्ट करना था। पहला प्रधानमंत्री के नाते राजीव गांधी, दूसरा- अमेरिकी आभामंडल के प्रतीक एंडरसन और तीसरा- यहां की पीड़ित-प्रताड़ित जनता। एंडरसन की कसौटी पर ये खरे उतरे, क्योंकि जाते वक्त वह उन्हें गुड-गवर्नेस का तमगा देकर गया। कानूनी खानापूर्ति के लिए एंडरसन की गिरफ्तारी कराई, लेकिन गैर-कानूनी तौर पर उसे जाने भी दिया। ऐसा करके इन्होंने एक तीर से कई निशाने साधे। पहला- चुनावी मौसम में हुए भयानक गैस हादसे से हताश और नाराज जनता में यह संदेश दिया कि कंपनी का अमेरिकी कर्ताधर्ता कानून से बड़ा नहीं है, सरकार सख्त है। दूसरा- एंडरसन की सुविधा के लिए अफसरों को तैनात किया, उसे सिर्फ छह घंटे में रिहा कर दिया। इस तरह दिल्ली से आए आदेश को सिर-माथे लेकर एंडरसन व दिल्ली दोनों को खुश किया। इससे भी आगे, अगर जनता पार्टी के अध्यक्ष सुबह्मण्यम स्वामी का आरोप सच है तो करोड़ों की डील का फायदा भी बटोर लिया। सच, इनसे बेहतर कोई नहीं जानता। हालांकि वे कह रहे हैं कि उनका कोई लेना-देना नहीं था। खुलकर सामने आएं तो सच से परदा उठे।
इन्होंने दिल्ली के दबाव में सरकारी विमान से एंडरसन को सुरक्षित रवाना कराया, लेकिन दबाव किसका? क्या प्रधानमंत्री ने इनसे सीधे बात की या केबिनेट सचिव ने मुख्य सचिव के जरिए इन तक केंद्र का फैसला भिजवाया? यह भी जांच का विषय है। ये एंडरसन के प्रभाव में भले ही हों, लेकिन इनके स्तर पर अमेरिका से सीधे दबाव की संभावना नहीं।
सुब्रह्मण्यम स्वामी के अनुसार एंडरसन को छोड़ने के बदले करोड़ों रुपयों की डील हुई। यदि ऐसा है तो संभव है कि एंडरसन को छोड़ने के केंद्र के दबाव के बीच में ही यह खेल खेला गया या इसी खेल के लिए उसकी सुविधाजनक गिरफ्तारी का नाटक रचा गया। क्योंकि गिरफ्तारी के बाद ईमानदारी से कानून के पालन की मंशा तो कहीं दिखाई नहीं दी। कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा भी कि इस मामले में पूरा जिम्मा राज्य सरकार का था। यानी राज्य सरकार चाहती तो एंडरसन की सुरक्षा के लिए उसे यहाँ किसी दूसरे शहर में रख सकती थी। उसे छोड़ना जरूरी नहीं था।
सात- राजीव गांधी, प्रधानमंत्री/विदेश मंत्री : इन्हें प्रधानमंत्री बने एक महीना ही हुआ था। राजनीति में नए थे, चुनाव का समय था। एंडरसन की गिरफ्तारी के समय चुनाव अभियान में ये मध्यप्रदेश के हरदा शहर में थे। चुनावी सभा में मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह इनके साथ ही थे। तेजतर्रार अर्जुनसिंह ने राजनीति के नए खिलाड़ी राजीव गांधी को यूनियन कार्बाइड मामले में अपने प्रभाव में ले लिया, क्योंकि चुनाव सिर पर थे। अगर गौर से देखें तो उस समय की तस्वीरों में अर्जुन के बगल में बैठे राजीव पूरी तरह उनके असर में दिख रहे हैं।
संभव है कि पांच दिसंबर को चुनाव अभियान पर यहां आने के वक्त उन्हें एंडरसन को दी गई सुरक्षा गारंटी की जानकारी हो और इस बारे में अर्जुनसिंह को मालूम ही न हो। इधर भोपाल से अर्जुनसिंह ने उन्हें हादसे की गंभीरता को देखते हुए एंडरसन की गिरफ्तारी के बारे में बताया ही था। जिसकी पुष्टि अर्जुनसिंह का यह बयान करता है कि इस मामले की जानकारी उन्होंने राजीव गांधी को दी थी, जो उन्होंने सुन ली थी। एंडरसन को छोड़ने के फैसले पर इन्होंने कहीं भी अपनी असहमति प्रकट नहीं की। वे दिल्ली में नरसिंहराव और भोपाल में अर्जुनसिंह के फैसलों से बंधे थे, जैसे सब कुछ इन्हीं पर छोड़कर रखा था। जब एंडरसन को सुरक्षित जाने देने का फैसला हुआ तो इस मामले में उनकी स्वतंत्र राय के संकेत कहीं नहीं मिलते। इन्होंने किसी भी स्तर पर मना नहीं किया और दी गई जानकारी को सिर्फ सुना।
हाल ही में मामला गरमाने के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह एंडरसन की रिहाई के लिए राज्य सरकार की बजाए केंद्र को जिम्मेदार बता चुके हैं। साफ है कि केंद्र के इरादे एंडरसन को छोड़ने के थे। वजह जो भी हो। वैसे, इसके दो कारण रसगोत्रा ने ही गिनाए हैं-अमेरिकी पूंजी निवेश और अमेरिका से रिश्तों पर असर। भोपाल में जनता की नाराजगी को देखने हुए अगर एंडरसन को सुरक्षित निकालना जरूरी ही था तो उसे दिल्ली में रोककर रखा जा सकता था। लेकिन आखिरकार उसे वापस अमेरिका भेजना ही मुनासिब समझा गया। इससे स्पष्ट है कि उसके भारत आने के पहले ही सुरक्षित वापसी की गारंटी दी गई थी और चंद घंटों में उसके अनुकूल सब कुछ तेजी से हुआ।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
30. पढ़िए…एंडरसरन की रिहाई के लिए कौन, किसके दबाव में था?
29. यह अमेरिका में कुछ खास लोगों के लिए भी बड़ी खबर थी
28. सरकारें हादसे की बदबूदार बिछात पर गंदी गोटियां ही चलती नज़र आ रही हैं!
27. केंद्र ने सीबीआई को अपने अधिकारी अमेरिका या हांगकांग भेजने की अनुमति नहीं दी
26.एंडरसन सात दिसंबर को क्या भोपाल के लोगों की मदद के लिए आया था?
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार…
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह!
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!