टीम डायरी, भोपाल, मध्य प्रदेश से
कभी सोचा है क्या, कि क्रिकेट की कमेंट्री संस्कृत भाषा में भी हो सकती है? हिन्दी, अंग्रेजी में तो सभी बरषों से सुनते हैं, मगर इन दिनों भोपाल के लोग अंकुर क्रिकेट मैदान पर जाकर संस्कृत में क्रिकेट कमेंट्री का भी आनंद ले रहे हैं। क्योंकि यहाँ ‘ब्राह्मण युवा क्रिकेट’ टूर्नामेंट चल रहा है। इसमें क्रिकेट कमेंट्री बस ही संस्कृत में नहीं है, खेलने वाले क्रिकेटर भी, हो चुके या होने वाले संस्कृताचार्य हैं।
गेंदबाज़ी करते समय धोती-कुर्ता उनके लिए बाधक नहीं बनता। फील्डिंग यानी क्षेत्ररक्षण करते हुए यह पहनावा रुकावट नहीं डालता। और बल्लेबाज़ी तो बड़े आराम से हो ही जाती है। यहां खिलाड़ियों के बीच आपस की बातचीत भी संस्कृत में हो रही है। अंपायर के फ़ैसले संस्कृत में ही और संस्कृत-कमेंट्री का आनंद अलग। सिर्फ आनंद ही नहीं, बल्कि जानकारियों का स्रोत भी है ये कमेंट्री। मिसाल के तौर पर लोगों को आम तौर पर नहीे मालूम होता कि गेंद को संस्कृत में ‘कंदुकम्’ कहते हैं। या विकेटकीपर को ‘स्तोभररक्षक’। चौका पड़े तो ‘चतुष्कम्’, छक्का लग जाए तो ‘षट्कम्’। बल्लेबाज का मतलब ‘बल्लक’ होता है, गेंदबाज़ ‘गेंदक’ और पिच ‘क्षिप्या’ कहलाती है।
लेकिन ऐसी तमाम शब्दावली से अब वे सभी लोग वाक़िफ़ हो रहे हैं, जो यह आयोजन देखने पहुँचते हैं। या फिर इस आयोजन के बारे में कुछ न कुछ मीडिया, सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों में पढ़ते, देखते हैँ। और सही मायने में, जैसा कि आयोजन समिति के सदस्य अंकुर पांडे कहते हैं, “यही हमारा मक़सद है। खेलने का आनंद तो अपनी जगह है, हम भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा को बढ़ावा देना चाहते हैं। उसके प्रचार-प्रसार में निमित्त बनना चाहते हैं। इसीलिए हमने यह लक्ष्य हासिल करने के लिए क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल को माध्यम के रूप में चुना है। इसके ज़रिए कुछ न कुछ तो असर होगा, ऐसा हमें विश्वास है।”
और साहब, अंकुर जी का भरोसा बेमानी नहीं है। क्योंकि उनके इस अलहदा प्रयास की हर साल देशभर में चर्चा होती है। लोगों की प्रशंसा और सहयोग भी भरपूर मिलता है। वैसे, ये इस ‘रोचक-सोचक’ आयोजन का तीसरा साल है।