Uttarakhand

अधूरी सीख : सदियों में कभी पहाड़ सुबकते हैं, तो संभलते नहीं….

नीरज "नीर", रामनगर, उत्तराखंड से

खुद हुए आबाद और शोहरत के लिए हमने पहाड़ बर्बाद कर दिए,
बहुत रश्क और भरोसा था नोटों के चंद टुकडों पर, हमने कच्ची जमीं पर चार दिन वाले अरमानों के मकां खड़े दिए.

दौलत से न भर पाने वाली दरारें उभरीं, तो पता चला हमने हिमालय को निहारते खूबसूरत ताबूत खड़े कर दिए.
पहाड़ों को आबाद तो न कर सके, मगर हमने पहाड़ बर्बाद कर दिए.

पुरखे मेरे अक्सर कहते थे, पहाड़ सब सह लेते हैं बात-बात पर हमारी तरह रोते नहीं लेकिन…
पुरखों ने ये भी कहा था कि जब सदियों में कभी पहाड़ सुबकते हैं, तो संभलते नहीं.

शायद बात पूरी सुनी नहीं थी हमने…
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(नीरज, #अपनीडिजिटलडायरी के साथ शुरू से ही जुड़े हैं। पर्यावरण प्रेमी हैं। अच्छा लिखते भी हैं। प्रकृति के साथ लगातार हो रही छेड़छाड़ के नतीज़े में इन दिनों उत्तराखंड के जोशीमठ में पहाड़ दरकने की जो ख़बरें आ रही हैं, उन्हीं को मानो ज़वाब देते हुए नीरज ने ये चंद लाइनें लिखकर डायरी को भेजी हैं। ग़ौर करने लायक हैं।)

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