valmiki and Ram

क्या भगवान राम के समकालीन थे महर्षि वाल्मीकि?

कमलाकांत त्रिपाठी, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश से

इस विषय की पिछली पोस्ट (भाग-चार) में वाल्मीकीय रामायण के युद्धकाण्ड के अन्तिम सर्ग (128) में फलश्रुति (ग्रन्थ के माहात्म्य) का ज़िक्र आया था। इस सर्ग के अन्त के कुल-19 (107-125) श्लोक में रामायण की फलश्रुति का उल्लेख करते हैं। इस सन्दर्भ में स्पष्ट कर दिया जाए कि वाल्मीकीय रामायण में केवल दो काण्ड ही प्रक्षिप्त नहीं है, शेष काण्डों में भी बीच-बीच में प्रक्षिप्त जोड़े गए हैं। (देखें आगे)।

उपरोक्त फलश्रुति तो पूरी की पूरी प्रक्षिप्त है। फलश्रुति के पहले ही श्लोक से स्पष्ट हो जाता है—

धर्म्यं यशस्यमायुष्यं राज्ञां च विजयावहम्‌। आदिकाव्यमिदं चार्षं पुरा वाल्मीकिना कृतम्‌॥107॥
अर्थात् : यह (महाकाव्य) धर्म, यश और आयु की वृद्धि करनेवाला तथा राजाओं के लिए विजयदायी है। यह आदिकाव्य है, जिसे पूर्वकाल में ऋषि वाल्मीकि ने रचा था।

यह शायद वाल्मीकीय रामायण का एकमात्र श्लोक हो जिसमें किसी अन्य ने अपनी ओर से वाल्मीकि का नाम लेकर उनके बारे में कुछ लिखा है।

इसके आगे के 18 श्लोक इस ग्रंथ को पढ़ने-सुनने से होनेवाले लाभों का पारम्परिक शैली में बढ़ा-चढाकर वर्णन करते हैं, जो यहाँ प्रासंगिक नहीं है।

इन श्लोकों का प्रक्षेपक एक सरल, मासूम व्यक्ति लगता है। यह कार्य वह वाल्मीकि का स्थापन्न बनकर नहीं करता। स्वयं से पृथक्‌ उनका उल्लेख करता है। उन्हें पूर्वकाल का ऋषि बताता है। इस फलश्रुति से स्पष्ट हो जाता है कि इसके सन्निवेश के समय तक रामायण में कम से कम उत्तरकाण्ड नहीं था। अन्यथा, परम्परानुसार, फलश्रुति उत्तरकाण्ड के अन्त में आती। तात्पर्य यह कि फलश्रुति उस आदिकाव्य की है, जिसमें उत्तरकाण्ड शामिल नहीं है। स्पष्ट है कि यह ‘प्रक्षेपक’ शुरूआती दौर के प्रक्षेपकों में था, बल्कि असली अर्थ में प्रक्षेपक था ही नहीं। किन्तु उत्तरकाण्ड को प्रक्षिप्त मानने का एक ठोस आधार अवश्य दे गया। बाद में आने वाले उत्तरकाण्ड के घाघ प्रक्षेपकों ने उस काण्ड के अन्तिम सर्ग (111) में फलश्रुति का समावेश तो किया, किन्तु युद्धकाण्ड में पहले ही आ चुकी फलश्रुति को हटाना भूल गए (अकृत्य करनेवाले कोई न कोई निशान छोड़ ही जाते हैं)। परिणाम यह हुआ कि आज उपलब्ध वाल्मीकीय रामायण में दो-दो जगह फलश्रुति मिलती है, जो परम्परा के सर्वथा विपरीत है। छोटी-मोटी फलश्रुतियाँ बीच में भी मिल जाएँगी लेकिन वे सही अर्थ में फलश्रुति नहीं हैं। यह भी हो सकता है कि लौकिक संस्कृत के आदिकवि वाल्मीकि के समय तक किसी भी कृति में झूठी-सही फलश्रुति का पुछल्ला जोड़ने की परम्परा ही न रही हो।

क्या वाल्मीकि राम के समकालीन थे (अंत:साक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में)?

वाल्मीकीय रामायण बालकाण्ड के सर्ग-1 से सर्ग-4 तक वाल्मीकि-केन्द्रित है। सर्ग-1 में नारद वाल्मीकि को संक्षेप में रामकथा सुनाते हैं। तब तक सीता के साथ लंका से लौटने पर राम को अयोध्या का राज्य प्राप्त हो चुका था। किन्तु राम भविष्य में क्या करेंगे, नारद इसका भी एक ख़ाक़ा खींच देते हैं। भविष्य के सन्दर्भ में वे रामराज्य की अलौकिक सुव्यवस्था का वर्णन करते हैं। (भविष्य में) राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ किए जाने, ग्यारह हज़ार वर्षों तक राज्य किए जाने, और उसके बाद उनके परमधाम पधारने का उल्लेख करते हैं। रामायण (तब तक थी कहाँ?) की संक्षिप्त फलश्रुति भी बता देते हैं।

सर्ग-2 में तमसा के तट पर निषाद द्वारा क्रौञ्च-युगल में नर क्रौञ्च का वध किए जाने पर मादा के चीत्कार से द्रवित वाल्मीकि में श्लोक छन्द में (लौकिक संस्कृत की प्रथम कविता?) का स्फोट होता है—मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:। यत्‌ क्रौञचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्‌॥15॥ वाल्मीकि इस अनायास स्फुटित श्लोक से विस्मित-संभ्रमित, अपने शिष्य भरद्वाज के साथ इस पर वार्ता करते हुए आश्रम पहुँचते हैं। तभी आश्रम में ब्रह्मा का आगमन होता है। वाल्मीकि यह श्लोक ब्रह्मा को सुनाते हैं। ब्रह्मा उसे अपने संकल्प और प्रेरणा का परिणाम बताकर वाल्मीकि को नारद द्वारा बताई गई रामकथा के आधार पर रामकाव्य का सृजन करने का आदेश देते हैं। तदुपरान्त वाल्मीकि राम के ‘उदार चरित’ का प्रतिपादन करनेवाले, ‘मनोहर पदोंवाले’ महाकाव्य की रचना कर डालते हैं। (कितना समय लगा, किसी को जानने की जिज्ञासा ही नहीं हुई)।

सर्ग-3 में इस महाकाव्य की विषय-वस्तु का वर्णन है। सर्ग-4 में वाल्मीकि 24 हज़ार श्लोकों का रामकाव्य लव-कुश को ‘पढ़ाते’ हैं। लव-कुश मुनिमंडली में उसका गायन करते हैं और प्रशंसित होते हैं। फिर एक दिन जब वे अयोध्या के मार्गों पर रामायण का गायन करते हुए विचर रहे होते हैं, उन पर राम की नज़र पड़ जाती है। राम उन्हें बुलाकर सम्मानित करते हैं और अयोध्या के राज-दरबार में वीणा-वादन के साथ उनका गायन सुनते हैं। यह उत्तरकाण्ड में राम के अश्वमेध यज्ञ के अवसर पर लव-कुश द्वारा किए गए रामायण-गान से भिन्न है। लेकिन बालकाण्ड में रामायण-गायन के इस प्रसंग का कोई सन्दर्भ उत्तरकाण्ड के गायन के प्रसंग में नहीं आता, जैसे राम उत्तरकाण्ड में पहली बार लव-कुश का रामायण-गान सुन रहे हों। प्रक्षेपण करनेवाले अन्विति का इतना ध्यान कहाँ रख पाते हैं! 

इन सर्गों में कहीं वाल्मीकि के अतिरिक्त किसी अन्य द्वारा इनके रचित होने का संकेत नहीं मिलता। जैसे वाल्मीकि ख़ुद अपनी कथा अपने लिए अन्यपुरुष का प्रयोग करते हुए लिख रहे हों। इस तरह वाल्मीकीय रामायण का प्रणयन कथा के आरम्भ में ही हो चुकता है। किन्तु आगे की कथा किसी स्थान विशेष पर विराजमान किसी के द्वारा वाचन का संकेत नहीं करती। सामान्य शैली में लिखी गई है, जिससे आभास तो यही होता है कि वाल्मीकि क्रमवार उसकी रचना कर रहे हैं।

लेकिन सबसे बड़ी विसंगति यह है कि नारद के आगमन और रामकथा के संक्षिप्त वर्णन के समय तक राम बस अयोध्या लौटकर राज्य सँभाल पाए थे। आगे की कथा नारद ने भविष्यवाचन के रूप में बताई थी। उनके बताने के तत्काल बाद क्रौञ्च वध होता है, ब्रह्मा जी पधारते हैं, वाल्मीकीय रामायण की रचना होती है और लव-कुश द्वारा उसका गायन भी होने लगता है। उत्तरकाण्ड में सीता-निर्वासन तो राम द्वारा राज्य सँभाले जाने के काफ़ी समय बाद दिखाया गया है। किन्तु लवकुश रामायण लिखे जाने के तुरन्त बाद कथा में कैसे प्रकट हो जाते हैं? अकारण नहीं कि विद्वानों ने उत्तरकाण्ड के साथ-साथ बालकाण्ड को भी प्रक्षिप्त माना है, जो इस काण्ड के बिखरे हुए परस्पर असम्बद्ध प्रसंगों के अतिरिक्त इस अयुक्ति से भी सिद्ध होता है। वाल्मीकि को राम का समकालीन सिद्ध करने की गढंत का हिस्सा है यह। 
—- 
(उत्तर प्रदेश की गोरखपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व व्याख्याता और भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे कमलाकांत जी ने यह लेख मूल रूप से फेसबुक पर लिखा है। इसे उनकी अनुमति से मामूली संशोधन के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। इस लेख में उन्होंने जो व्याख्या दी है, वह उनकी अपनी है।) 
—- 
कमलाकांत जी के पिछले लेख 
4. क्या वाल्मीकीय रामायण में बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड बाद में कभी जोड़े गए?
3. तुलसी पर ब्राह्मणवादी होने का आरोप क्यों निराधार है?
2. क्या तुलसी ने वर्णाश्रम की पुन:प्रतिष्ठा के लिए षड्यंत्र किया?
1. अग्नि परीक्षा प्रसंग : किस तरह तुलसी ने सीता जी को ‘वाल्मीकीय सीता’ की त्रासदी मुक्त किया! 

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *