Self Promotion

लगा लगा लगा रे… सेल्फ़ प्रमोशन का रोग

विकास वशिष्ठ, मुम्बई से

आज बहुत दिन बाद फ़ेसबुक पर जाना हुआ। स्क्रॉल करना शुरू किया। ज़्यादातर पोस्ट तस्वीरों की। अपनी तस्वीरें। चूँकि जिस अकाउंट से फ़ेसबुक खोला था, उस अकाउंट से दिल्ली के बहुत लोग जुड़े हैं, इसलिए दिल्ली का पुस्तक मेला भी छाया हुआ है वहाँ। जो लेखक लोग हैं, वो अपनी किताबों के प्रमोशन में लगे हैं। अच्छा, अपनी किताब का कोई हिस्सा कोई लेखक शेयर नहीं कर रहा। बस बड़े चेहरों के हाथों में अपनी किताब थमाकर फ़ोटो खींचकर पोस्ट करने में लगे हैं सब के सब। लम्बी-लम्बी पोस्ट लिख रहे हैं। अपनी किताब के बारे में नहीं, जो लेखकगण मिले उनकी प्रशंसा में अपनी प्रशंसा जोड़कर।

मज़े की बात ये है कि मेले में उन बड़े लेखकों की भी किताबें हैं, जिन्हें प्रकाशकों ने सम्भवत: अपने खर्च पर बुलाया है। लेकिन कोई नया लेखक उन बेचारों की किताबों का ज़िक्र नहीं करता। उसे मतलब नहीं है कि दुनिया में और क्या अच्छा लिखा जा रहा है। उसे केवल अपनी किताब के साथ खुद का प्रचार करना है। फ़ेसबुक ने मुफ़्त प्रचार की दुकानों को बढ़ावा दिया है। घटिया कॉन्टेंट भी बढ़िया तस्वीरों के साथ बेचा जा रहा है। अचरज की बात तो ये है कि किताब के लोकार्पण से पहले ही किताब बेस्टसेलर हो जाती है। भैया यार कैसे कर लेते हो ये सब!?

आख़िरकार अपन 10 मिनट में फ़ेसबुक का फेरा लगाकर वहाँ से बाहर हो लिए। क्या है कि अपन को ये सेल्फ़ प्रमोशन पचता नहीं है। लेकिन क्या करें, सच्चाई यही है इस दौर की। उधर फ़ेसबुक पर सप्लाई इतनी भयंकर है कि अच्छा कॉन्टेंट दबा रह जाता है। अपनी समझ यही कहती है कि फेसबुकिया चेहरों के चक्कर में न आएँ। अच्छा खाएँ, अच्छा पढ़ने में समय निवेश करें और अच्छे विचारों के लिए खिड़की खुली रखें। सब अच्छा होगा।

बाक़ी किताब अपनी भी आने वाली है। अपन सेल्फ़ प्रमोशन वाले हैं नहीं, सो बेचेंगे कैसे इस चिन्ता से दूर हैं। इतना तय है कि अपन शोर नहीं मचाएँगे। पाठकों को पसन्द आएगी, तो शोर अपने आप हो जाएगा। फ़िलहाल अपन को सेल्फ़ प्रमोशन का ये रोग नहीं लगा है। अपने लिए सेल्फ़ प्रमोशन के मायने थोड़े अलग हैं। वो फिर कभी। ये डायरी अपने आपको इस रोग से दूर बनाए रखने के लिए एहतियातन लिखी है। ताकि कल अगर रोग लगे भी तो हम झाँककर पीछे देख पाएँ कि अपने क्या उसूल थे। डायरी का एक-एक पन्ना हमारा आईना होता है। आईने झूठ नहीं बोला करते।
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(विकास मुम्बई में रहते हैं। लिखना और पढ़ना, यही इनका जीवन और जीवनयापन है।)

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