Chakan Fort

शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

जौहर ने महाराज को पूरे चार महीने पन्हाला में बन्द रखा था। लेकिन अब उनके अचानक भाग निकलने से उसके दुःख का पार नहीं रहा। बीजापुर दरबार में, दुनिया में बेइज्जती होने के डर से उसका मन सुरझा गया। लेकिन पन्हाला से उसने घेरा हटाया नहीं। कम से कम पन्हालगढ़ को जीतकर ही बादशाह को अपनी मेहनत का, वफादारी का यकीन दिलाया जाए। यह सोचकर जौहर मोर्चे पर डटा रहा। लेकिन बादशाह अली आदिलशाह जौहर से सख्त नाराज था। उसने समझा कि जौहर ने ही रिश्वत लेकर शिवाजी महाराज को छोड़ दिया है। उसने बीजापुर से फौज के साथ पन्हालगढ़ की तरफ कूच किया (दिनांक 17 अगस्त 1660)। मराठों से लड़ने के लिए नहीं, बल्कि जौहर को गिरफ्तार करने के लिए। शाइस्ता खान ने भी इसी समय (दिनांक 21 जून 1660 से) चाकण के किले को घेर लिया था।

इस बीच, महाराज विशालगढ़ में कई दिनों तक रुके रहे। बरसात की झड़ी लग गई थी। विशालगढ़ सहयादि का बहुत ही दुर्गम किला है। इसका आकार पंख फैलाए हुए पंछी की तरह है। किले की पूर्व और पश्चिम में दरवाजे हैं। रायगढ़  की तरह इस किले के चारों तरफ सीधी चट्टानें हैं। नीचे गहरी खाईयाँ। एक समय था, जब यह किला अपनी स्वाधीनता की खातिर पूरे सवा सौ साल बहमनी सुल्तान से लड़ता रहा। ऐसी ताकत है इसकी। इस किले का मूल नाम ‘खेलणा’ था। महाराष्ट्र का अजेय दुर्ग था यह। यहाँ के आदमी भेदिए बने। लेकिन पत्थर उसी तरह अभेद्य रहे। अनस्कुरा-अम्बा इस कोंकण के पहाड़ी रास्ते पर विशालगढ़ की ही कड़ी निगरानी थीं। हिन्दवी स्वराज्य के इतिहास में विशालगढ़ का स्थान बहुत ऊँचा है। मराठों के दुश्मनों की फजीहत करने का सम्मान इस किले ने कई बार पाया है।

यहीं एक निश्चित समय बिताने के बाद महाराज आखिर राजगढ़ पहुँचे। वे पहले अफजल खान और बाद में सिद्दी जौहर की चंगुल से बचकर आए थे। इसके बाद आऊसाहब और पारिवारिक जनों से पहली बार मिल रहे थे। स्वाभाविक रूप से महाराज की भेंट से राजगढ़ पुलकित हुआ। एक वर्ष की लम्बी, चिन्ता से बोझिल अवधि के बाद, माँ-बेटे मिल रहे थे। महाराज दिन भर माँ जिजाऊ के साथ ही रहे। शिववा ने पूरे साल की घटनाएँ माँ को सुनाईं। माँ ने भी शिवबा की बातें ध्यान से सुनीं। कुछ मशवरा दिया। शिवबा ने माँ के मशविरे गिरह में बाँच लिए। समय पर वह काम आए।

उधर, चाकण में शाहस्ता खान की फौज ने किले को सभी तरफ से घेर लिया था। खुद खान उत्तर की तरफ था। उसके मातहत सरदार थे- गिरधर कुँवर बोरमदेव, हवश खान और दावाजी। शम्सुद्दीन खान, मीर अब्दुल मकद दरोगा, सय्यद हसन उज्बेग खान, खुदावन्त खान हबीशी, विजय सिंह, सुल्तान अली अरब और अलाया बुखारी आदि सरदार पूर्व का मोर्चा सँभाले हुए थे। दक्षिण की अघाड़ी पर थे राव भावसिंह हाड़ा, सरफराज खान, जाधव राव और जौहर खान हबशी। जबकि किले का पश्चिमी मोर्चा अकेले राजा रायसिंह सँभाल रहे थे। लेकिन इन सभी पर मुट्‌ठीभर मराठे भारी पड़ रहे थे। चाकण के किलेदार का नाम था फिरंगोजी नरसाला। उनके पास ज्यादा नहीं बस, 300 की फौज थी। पर इतने मराठे ही निर्ममता से बारूद के विस्फोटक बाण छोड़कर मुगलों को परेशान कर रहे थे। उनके मोर्चे अस्त-व्यस्त कर रहे थे।

मुगलों के पास 21 हजार की फौज थी। लेकिन 54 दिनों तक (दिनांक 21 जून से 14 अगस्त 1660) इतनी बड़ी फौज चाकण पर कब्जा नहीं जमा पाई थी। लिहाजा, खान की छावनी में मंसूबा हुआ कि किले तक सुरंग खोदी जाए। फिर किले की दीवार को बारूद से उड़ा दिया जाय। इसी मंसूबे के मुताबिक, किले के आग्रेय बुर्ज की तरफ खुदाई का काम शुरू हुआ। इस दाँव की मराठों को कानों-कान खबर न थी। ऐन बारिश के दिनों में मुगलों ने सुरंग बनाई। फिर उसमें बारूद ठूँस दी। अब सिर्फ बत्ती देने भर की देर थी। मृत्यु किले के दरवाजे पर आ खड़ी हुई थी (दिनांक 14 अगस्त 1660)। किले पर सुरक्षा का पूरा बन्दोबस्त था। लेकिन किसी को यह नहीं मालूम था कि मौत उनके पैर के नीचे से वार करने वाली है। शाइस्ता खान ने बारूद को बत्ती देने के तुरन्त बाद, किले पर हमला करने की तैयारी की हुई थी।

इसके बाद 55वाँ दिन चाकण के लिए दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुआ। शाइस्ता खान के हुक्म पर बत्तियाँ जला दी गई। फरफराकर वह जल उठी। जोरदार धमाका हुआ। लगा कि भूचाल आया है। चीख-पुकार, आक्रोश, धुएँ के बगुले और बस उसी क्षण आग्रेय बुर्ज आसमान में उड़ गया। बुर्ज के पहरेदार भी जलकर खाक हुए। किला घायल हो गया। चाकण चकरा गया। मराठों का कलेजा दहल गया। लेकिन स्थिति की भयावहता का एहसास होते ही मराठे तुरन्त होश में आए। उनकी रग-रग में वीरश्री लहराने लगी। बुर्ज की तरफ से घुसती शत्रु सेना को रोकने के लिए भुजाएँ फड़कने लगीं। अपरम्पार शत्रुसागर से लोहा लेने का आत्मविश्वास, धैर्य। यही सामर्थ्य थी इन मुट्ठीभर मराठों की। उन्होंने यह सामर्थ्य जुटाया था महाराज की तालीम में। इसलिए एकाध लड़ाई में परास्त होने पर भी वह परास्तज नहीं होते थे। 

धमाके से चाकण के किले में बहुत बड़ा सुराख हो गया था। सो, किले में घुसने के लिए दो हजार मुगली फौज इस सुराख पर ही टूट पड़ी। उसमें शम्सुद्दीन खान और महाराव भावसिंह भी थे। और भी कई सरदार उनकी मदद के लिए तैयार खड़े थे। बुर्ज ढह जाने से किले का सीना फट गया था। फिर भी किले में मौजूद मावल के जवान और फिरंगोजी उस सुराख की तरफ तुरन्त बढ़े। वह भी इस तरह कि किले में घुसने के लिए भावसिंह और शम्सुद्दीन खान तमाम कोशिश को नाकाम कर दिया। मुगली फौज किले में पाँव तक न रख पाई। फटे हुए बुर्ज पर चढ़कर मराठा मुगलों पर बारूद के जलते बाण और बम फेंके। आमने-सामने की लड़ाई में भी मुगल, मराठा हथियारों की बलि चढ़ रहे थे (दिनांक 14 अगस्त 1660)। दिन डूबने लगा। फिर भी लड़ाई जारी थी। किले की सुरक्षा के लिए छोटी सी फौज दिन भर जी-जान से लड़ी थी। इससे चाकण किले पर गेरुआ ध्वज अब भी शान से फहरा रहा था।

अँधेरा घिर आया। तब शाहस्ता खान ने ही लड़ाई स्थगित की। इसके बाद सुराख के सामने ही कुछ दूरी पर मुगल फौज मोर्चा लगाकर बैठ गई। दिन में मुगलों के 268 सिपाही मारे गए। करीब 600 सिपाही गम्भीर घायल हुए। शाइस्ता खान जान गया कि मराठा जाति कितनी जीवट है। रात बीत गई। मराठा भी मन ही मन जानते थे कि लड़ाई में किला ज्यादा टिक नहीं सकता। फिर भी वे जंग के लिए तैयार हो गए। सुबह होते हो फिरंगोजी ने सुराख पर मोर्चा लगाया। लेकिन इस बार का मुगली हमला जबर्दस्त था। सुराख पर खड़े सभी मराठा कट गए। दुश्मन अन्दर घुस आया।

भावसिंह के जरिए खान ने फिरंगोजी से बातचीत शुरू की। खान ने बचे हुए मराठों को किले से निकल जाने के लिए रास्ता दिया। भारी मन से फिरंगोजी अपने लोगों के साथ बाहर निकले। राजगढ़ की तरफ। खान को किला मिल गया। (दिनांक 15 अगस्त 1660)। खान ने चाकण को नया नाम दिया ‘इस्लामाबाद’। चाकण का यह किला बहुत छोटा पर जीवट था। उस किले को जीतने के लिए शाइस्ता खान की अजस्त्र सेना को लगातार 56 दिन एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। चाकण की लड़ाई में सच्ची वीरता दिखाई थी मुट्‌ठीभर मराठों ने। लेकिन विजयोत्सव मना रही थी शाइस्ता खान की शाही सेना। अपनी इस जीत का शाइस्ता खान ने फारसी में एक शिलालेख लिखकर रखा। 
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20-  शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी
9- शिवाजी ‘महाराज’ : “करे खाने को मोहताज… कहे तुका, भगवन्! अब तो नींद से जागो”
8- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवबा ने सूरज, सूरज ने शिवबा को देखा…पता नहीं कौन चकाचौंध हुआ
7- शिवाजी ‘महाराज’ : रात के अंधियारे में शिवाजी का जन्म…. क्रान्ति हमेशा अँधेरे से अंकुरित होती है
6- शिवाजी ‘महाराज’ : मन की सनक और सुल्तान ने जिजाऊ साहब का मायका उजाड़ डाला
5- शिवाजी ‘महाराज’ : …जब एक हाथी के कारण रिश्तों में कभी न पटने वाली दरार आ गई

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