Shivaji Escape

शिवाजी ‘महाराज’ : कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले, शेर मुक्त हो गया

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

महाराज औरंगजेब के जाल में फँस गए थे। महाराज के शिविर तथा उनके निजी खेमे में कड़ा पहरा था। खुद फौलाद खान ही दिन-रात वहाँ डेरा डालकर बैठा था। इस घेरे से बाहर कैसे निकला जाए? किस विधि से इससे छुटकारा पाएँ? महाराज के मन में साहसी विचार चक्कर काटने लगे। मन ही मन वह कई तरह के दाँव आजमाने लगे। और एक दिन महाराज ने बादशाह के पास अर्जी दे दी, “मेरे साथ के लोगों को घर लौट जाने की अनुमति दे दी जाए (दिनांक 7 जून 1666)।” यह हुई न बात? भला औरंगजेब ऐसी फायदेमन्द बात से इंकार करता? फिर भी पूरे 48 दिन लगाए उसने अनुमति देने में (दिनांक 25 जुलाई 1666 तक)। इस बीच महाराज और भी कई धन्धों में लगे हुए थे। वह रामसिंह के पीछे पड़ गए कि ‘भाईजी, आपने बादशाह को मेरी खातिर जो जमानत लिख दी है, वह रद्द कर लीजिए। बादशाह मेरा जो करेंगे यह मुझे मंजूर है।” बहुत जोर डालने पर रामसिंह इस बात के लिए तैयार हो गए और बादशाह ने भी रामसिंह की जमानत रद्द करवा दी। भाग जाने को भूमिका महाराज खूब तैयार की।

कुछ दिनों बाद महाराज की तबीयत एकाएक खराब हो गई। एकाएक थी दूसरों के लिए। वैसे, वह खराब होनी ही थी। इसलिए खराब हो गई। महाराज के पास बचे हुए नौकर दवा-दारू के लिए भागदौड़ करने लगे। लेकिन महाराज की तबीयत बिगड़ती ही चली गई। अब वे बिस्तर पर लेटे-लेटे हुए ही किसी से मिलते। मदारी मेहतर उनके पैर दबाता रहता। रोज महाराज से मिलने वाले मुगल सरदारों और फौलाद खान की नजर में यह चित्र पैठ गया। किसी भी इलाज से महाराज को आराम नहीं आ रहा थ। अब उन्होंने दान-धर्म करने की सोची। यह मेवा-मिठाईयों का दान करने लगे। मिठाई से भरे हुए टोकरे शिवाजी के शिविर में आने-जाने लगे।

चूँकि फिदाई की कोठी बनने में अब ज्यादा देर नहीं थी, सो औरंगजेब ने शिवाजी के दान-धर्म में कोई अड़ंगा नहीं डाला। दान के लिए ढक्कन डाले हुए बड़े-बड़े पिटारे बाहर आने लगे। आते-जाते पिटारों की भली-भाँति जाँच होती। सभी को मालूम हुआ कि उनमें मिठाई ही होती है। फिर आई श्रावण के कृष्ण पक्ष की द्वादशी। दोपहर का वक्त। रोज की तरह पिटारे अन्दर आए। उनमें दो खाली आए। एक में बैठे महाराज और दूसरे में सम्भाजी राजे। बिस्तर पर महाराज की जगह लेटा हिरोजी फर्जन्द। मदारी पैर दबाता रहा। हमेशा की तरह। पिटारे बाहर चले (दिनांक 17 अगस्त 1666)। कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले। शेर मुक्त हो गया।

महाराव के पिटारे नियोजित जगह पर पहुँच गए। घोड़े और आदमी वहाँ पहले से ही तैयार खड़े थे। महाराज और बाकी लोग घोड़े पर कूद दौड़ चले मथुरा की ओर। इधर महाराज के चले जाने के बाद दवा लाने के लिए गए हुए लोग भी नौ दो ग्यारह हो गए। बचे सिर्फ दो ही जन हिरोजी और मदारी। थोड़ी देर बाद वे भी निकले वहाँ से। बिस्तर पर तकिए और जूते खड़े कर उस पर शाल ओढ़ा दी उन्होंने। इस तरह कि मानो महाराज ही सोए हों। जाते समय दरवाजे पर खड़े पहरेदारों को चिन्तित स्वर में बोले, “महाराज को जोरों का सरदर्द हो रहा है। किसी को अन्दर न जाने देना। हम महाराज के लिए दवा लेकर आते हैं।” और बस हो गए चम्पत। पीछे बचा सिर्फ अन्धेरा।

महाराज मथुरा पहुँचे। मोरोपन्त पिंगले की सास और दो साले मथुरा में रहते थे। महाराज ने सम्भाजी राजे को इन विसाजीपन्त और काशीपन्त के पास रख छोड़ा। कहा, “हम पत्र भेजेंगे। तब आप लोग सम्भाजी राजे को लेकर राजगढ़ आना।” बस, इसके बाद महाराज दक्षिण की और सरपट दौड़ने लगे। नरवर के मुगली थानेदार की आँखों में बड़ी चालाकी से धूल झोंकी महाराज ने। झूठे प्रमाण-पत्र साथ रखे ही थे। उन्हीं को दिखाकर वे वहाँ से भी भाग निकले। दूसरे दिन (दिनांक 18 अगस्त 1666) जब सुबह फौलाद खान ने देखा कि महाराज और उनके सभी लोग भाग खड़े हुए हैं, मानो गाज ही गिरी उस पर। तहलका मच गया। औरंगजेब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। खोज शुरू हुई।

आगरा शहर का चप्पा-चप्पा छान मारा सेनादल ने। कहीं कोई सुराग नहीं मिला। तीसरे दिन (दिनांक 20 अगस्त) शहर में महाराज के दो वकील मिल गए। वे थे रघुनाथपन्त कोरडे और त्रयम्बकपन्त डबीर। महाराज के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए फौलाद खान ने उन्हें पकड़ लिया। उन्हें घोर यातनाएँ दीं। पिचकारियों से उनके नाक में नमक का पानी डाला। लेकिन उन्होंने महाराज के बारे में रत्तीभर भी जानकारी नहीं दी। कैद में तड़पते हुए भी उन्हें सुख इसी बात का था कि महाराज को कैद से छुटकारा मिला है। महाराज और सम्भाजी राजे इतनी सफाई से भाग गए थे कि औरंगजेब चकरा ही गया। एक भयंकर बैरी अपने पाँवों से चलकर हमारे पास आया। हमारे शिकंजे में फँसा और आखिर इस तरह चकमा दे गया, यह देख औरंगजेब उदास हो गया। सह्याद्रि का वह अन्धड़ अब फिर से किसी बैरी के हाथ आता, यह नामुमकिन था। मरते दम तक औरंगजेब को यही मलाल रहा।

औरंगजेब की नजरकैद से महाराज भाग पाए थे तो ईमानी, स्वामीनिष्ठ सेवकों की बदौलत। शिवाजी ने अनमोल नवरत्न इकट्‌ठा किए थे। रिश्ते में एक-दूसरे के साले लगने वाले वकील रघुनाथपन्त कोरडे और त्रयम्बकपन्त डबीर इसकी जीती-जागती मिसाल थे। लाख यातनाएँ सहकर भी शिवाजी का ठौर-ठिकाना उन्होंने फौलाद खान को नहीं बताया। उधर, मुगलों की पहुँच से बाहर होने के लिए महाराज तेजी से दौड़ रहे थे। साथ में जान निछावर करने वाले निष्ठावान् लोग थे। बारिश के दिन थे। महाराज ने फुँकारती नर्मदा को पार किया। इस बीच, औरंगजेब ने मिर्जा राजा और दिलेर खान को धारूर में हुक्म भेजा कि नेताजी पालकर को गिरफ्तार कर आगरा भेज दो। इस समय दिलेर की छावनी में नेताजी पाँच हजारी सरदार की हैसियत से काम कर रहे थे। औरंगजेब ने सोचा कि शिवाजी राजे तो छूट गए, पर अब नेताजी न छूटने पाए। शिवाजी नहीं तो नेताजी सही। उसे अपना गुस्सा निकालना था।

औरंगजेब का हरकारा धारूर की ओर दौड़ रहा था। धारूर आम्बेजोगाई के पास बीड प्रान्त में है। औरंगजेब ने मारे गुस्से के रामसिंह की जागीर भी जब्त कर ली। उन्हें दरबार में आने की मनाही कर दी। वस्तुतः रामसिंह बेकसूर था। फिर भी उन्हें नुकसान तो उठाना ही पड़ा और उन्होंने वह चुपचाप उठाया भी। आगे चलकर महाराज और उनके साथियों ने वेष बदला। अब वे और उनका दल वैरागियों की सूरत में थे। यह दल निरन्तर दौड़ता जा रहा था। उधर, महाराज औरंगजेब की कैद में हैं, यह खबर सुनकर आऊसाहब अकुला गई थीं। सभी किले परकोटे चिन्ता में डूब गए थे। फिर भी अपने कर्त्तव्य सभी लोग सजगता से निभा रहे थे।

रावजी सोमनाथ हाल ही में रांगनागढ़ को आदिलशाही से स्वराज्य में ले आए थे (दिनांक 15 अगस्त 1666)। स्वराज्य का बन्दोबस्त एकदम ठीक-ठाक था। पर सभी की आँखें आगरा की तरफ लगी हुई थीं। महाराज के बारे में सोच-सोचकर सब बेहाल हो रहे थे। और एकाएक गुसाईं-वैरागियों की टोली राजगढ़ पर आ गई। इन लोगों को कोई भी तो नहीं पहचान सका। गुसाईँ साधु ही पधारे हैं, यही आऊसाहब की धारणा थी। सो, ‘महाराज’ को नमस्कार करने के लिए वह नीचे झुकी ही थीं कि कानों पर चिर-परिचित पुकार आई, ‘आऊसाहब!’ दूसरे ही क्षण शिवबा आऊसाहेब से लिपट गया।

तोपें खुशी से गरज उठीं। सभी के मुँह मीठे हो गए। आगरा से निकलने के 25 दिन बाद महाराज राजगढ़ पर दाखिल हुए। जालिम औरंगजेब के फौलादी शिकंजे से शिवाजी बच निकले थे। मानो उनका पुनर्जन्म ही हुआ था। उनका चिन्ता, थकान से म्लान चेहरा, अपनों के पुनर्मिलन के आनन्द से खिल उठा था। माँ जिजाऊ उन्हें अपलक निहार रही थीं। स्वराज्य का राजा लौट आया और दशहरे से पहले ही धूमधाम से दीवाली मनाई गई। हर किसी की आँखों में हर्षोल्लास छलक रहा था। 
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
37- शिवाजी ‘महाराज’ : “आप मेरी गर्दन काट दें, पर मैं बादशाह के सामने अब नहीं आऊँगा”
36- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी की दहाड़ से जब औरंगजेब का दरबार दहल गया!
35- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठे थके नहीं थे, तो फिर शिवाजी ने पुरन्दर की सन्धि क्यों की?
34- शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती
31- शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया
30-शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”
29- शिवाजी महाराज : आखिर क्यों शिवाजी की सेना ने तीन दिन तक सूरत में लूट मचाई?
28- शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए
27- शिवाजी महाराज : “उखाड़ दो टाल इनके और बन्द करो इन्हें किले में!”
26- शिवाजी महाराज : कौन था जो ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ कहते हुए भागा था?
25- शिवाजी महाराज : शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20-  शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!

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