Shivaji Rajyabhishek

शिवाजी ‘महाराज’ : पहले की शादियाँ जनेऊ संस्कार से पहले की थीं, अतः वे नामंजूर हो गईं

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

रायगढ़ पर मंगल बाजे बजने लगे। पहला संस्कार होना था। पहले महाराज का जनेऊ संस्कार हुआ ही नहीं था। अब तक के 350 साल के सुलतानी उत्पात में कई जातियों को संस्कारविधि लोप हो गई थी। महाराज का खानदान क्षत्रिय था। नाईक निम्बालकर उर्फ पवार, जाधवराव, शिर्के, मोहिते, गायकवाड़ वगैरा ‘खालिस क्षत्रिय’ खानदानों में भोसलों के विवाह सम्बन्ध हुए और हो रहे थे। ये वेदों के तथा वेदोक्त संस्कारों के अधिकारी थे। लेकिन उन संस्कारों का ही लोप हो गया था। अब शास्त्र के अनुसार सभी संस्कार होने वाले थे।

सो पहले हुआ जनेऊ संस्कार। इसका मतलब था गायत्री मंत्र का अधिकार, संस्कार और स्वीकार। क्षत्रियों के लिए गायत्री मंत्र की ही तरह तेजस्वी महत्तम, मंत्र है, “आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो…”। लेकिन कुलगुरू उन्हें अपना मंत्र यानी “ओम् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं’ गायत्री मंत्र दे सकते हैं। क्षत्रिय को इस मंत्र का भी पूरा अधिकार है। “सूर्य का दिव्य तेज, उसका करें नित चिन्तन। हे मित्र, वहीं दिव्य तेज प्रेरणा दे हमें” यह इस मंत्र का भावार्थ है। महर्षि विश्वामित्र ने इसी महामंत्र से कड़ी तपस्या की। ज्ञान और तेज की प्राप्ति करा देने वाला महान् सूर्यमंत्र है यह।

महाराज का उपनयन संस्कार सम्पन्न हुआ (दिनांक 29 मई 1674)। इसमें अन्तर्निहित सभी विधि और संस्कार हुए। उपनयन संस्कार के बाद का संस्कार होता है विवाह, यानी शादी। महाराज की अब तक कुल 10 शादियाँ हुई थीं। लेकिन पहले की ये सभी शादियाँ जनेऊ संस्कार से पहले की थीं। यानी अशास्त्रीय थीं। अतः वे नामंजूर हो गईं। तो फिर? किसी नई लड़की से शादी? लेकिन जिनके साथ शादियाँ हो चुकीं, उन पत्नियों का क्या? बड़ा पेचीदा सवाल था। गागाभट्‌ट ने इसका हल पहले ही सोच लिया था कि पहले की रानियों से फिर शादी की जाए!

सो, पहले सोयराबाई साहब के साथ महाराज की शास्त्रशुद्ध, समंत्रक शादी रची गई (दिनांक 30 मई)। बाद में अन्य रानियों के साथ भी महाराज के विवाह हुए। महाराज के तब कुल दो बेटे और छह बेटियाँ थीं। रायगढ़ में रोज कोई मंगल विधि होती। बड़ी गहमागहमी रहती। ऋत्विन्वर्णन, पुण्याहवाचन के साथ यह आरम्भ हुआ। नक्षत्र शान्ति, गृह शान्ति एन्द्रिय शान्ति, पौरन्दरी शान्ति विधि सम्पन्न हुई। इस काल में महाराज व्रतस्थ थे। केवल दुग्धपान और फलाहार करते थे। हर एक विधि वह बडी श्रद्धा से कर रहे थे। रायगढ़ की खुशियों का पार नहीं था।

महाराज का सुवर्ण सिंहासन पर राज्याभिषेक होगा। शिवाजी राजे छत्र-चँवर धारण करेंगे। सिंहासनाधीश्वर महाराजाधिराज छत्रपति होंगे। यानी सार्वभौम हिन्दूपदपातशाह होंगे। बात दुनिया को मालूम हो गई। मुगलों के बादशाह औरंगजेब और ईरान के बादशाह शाह अब्बास की आँखों से नींद ही नदारद होने वाली थी इस खबर से। दोनों ही शिवाजी राजे को जड़ से उखाड़ना चाहते थे। शाह अब्बास ने एक बार औरंगजेब पर जाहिर भी किया था कि इस शिवाजी का नाश अगर तुम से न होता हो, तो हम खुद हिन्दुस्तान आकर उससे निबट लेंगे। इस पर औरंगजेब ने यही लिख भेजा था कि शिवाजी का सफाया तो मैं खुद ही करूँगा पर बादशाह की अपार सेना से यह काम हुआ ही नहीं। उल्टे उसी का सफाया हो गया और महाराज के हाथ आई बादशाह की प्रचंड युद्ध सामग्री, हाथी-घोडे, ऊँट और खजाने। मानो औरंगजेब यह सब खारिज के तौर पर महाराज को भेज रहा था।

इसके बाद अब यह राज्याभिषेक। रायगढ़ पर वेदघोष में, रोज एक धार्मिक विधि हो रही थी। महाराज की सुवर्णतुला हुई (दिनांक 4 जून 1674)। महाराज का वजन 17 हजार होन (160 पॉन्ड) के बराबर रहा। समारोह के लिए रायगढ़ पर अपार भीड़ जमा हो गई थी। मंगल विह्न, मंगल वाद्य और मंगल घोष। इनसे रायगढ़ मानो मंगलगढ़ हो गया था। सारा राजमंडल कामों में मशगुल था। आनन्द में मगन था। स्वराज्य की सभी सीमाएँ सावधान थीं। नौदल और किले परकोटे जाग रहे थे। त्रयोदशी से पहले दिन की सुबह हुई। दीपज्योतियों से, सार्वभौमत्व की उद्घोषणाओं से रायगढ़ अब द्वारका, उज्जयिनी, इन्द्रप्रस्थ, विजयनगर, द्वारसमुद्र, आदि विजयी नगरियों सी शोभा पा रहा था।

गागाभट्ट ने राज्याभिषेक की तैयारियाँ कर लीं। अभिषेक अन्दर, राजमहल में होने आता था। सोने की चौकी पर महाराज, युवराज सम्भाजी राजे, और सकल सौभाग्यसम्पन्न सोयराबाई साहब बैठीं। उनके इर्द-गिर्द हाथों में कलश थामे राजमंडल खड़ा हुआ। वेदघोष आरम्भ हुए। गंगा, यमुना, सिन्धु आदि सप्तगंगाओं की सैकड़ों धाराएँ महाराज, महारानी और युवराज के माथे पर से बहने लगीं। सतगंगाएँ धन्य हुई। वेदमंत्र धन्य हुए। रायगढ़ की धन्यता के तो क्या कहने? राजमाता जिजाऊ साहब भी धन्य हुई। राज्याभिषेक की शुभ बेला में महाराज की आँखें नम हुईं। उन्हें याद आई तान्हाजी मालुसरे की, प्रतापराव गूजर, मुरार बाजी, बाजी पासलकर आदि गुजरे साथियों की। हजारों युवकों ने स्वराज्य के लिए प्राणों की बलि चढ़ाई थी। कई माताओं के पुत्र उनसे छीने गए थे। तब जाकर स्वराज्य का निर्माण हुआ।
—–
(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
—– 
शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
48- शिवाजी ‘महाराज’ : रायगढ़ सज-धज कर शिवराज्याभिषेक की प्रतीक्षा कर रहा था
47-शिवाजी ‘महाराज’ : महाराष्ट्र का इन्द्रप्रस्थ साकार हो रहा था, महाराज स्वराज्य में मगन थे
46- शिवाजी ‘महाराज’ : राज्याभिषिक्त हों, सिंहानस्थ हों शिवबा
45- शिवाजी ‘महाराज’ : शिव-समर्थ भेंट हो गई, दो शिव-सागर एकरूप हुए
44- शिवाजी ‘महाराज’ : दुःख से अकुलाकर महाराज बोले, ‘गढ़ आया, सिंह चला गया’
43- शिवाजी ‘महाराज’ : राजगढ़ में बैठे महाराज उछल पड़े, “मेरे सिंहों ने कोंढाणा जीत लिया”
42- शिवाजी ‘महाराज’ : तान्हाजीराव मालुसरे बोल उठे, “महाराज, कोंढाणा किले को में जीत लूँगा”
41- शिवाजी ‘महाराज’ : औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती खबरें आ रही थीं, महाराज बैचैन थे
40- शिवाजी ‘महाराज’ : जंजीरा का ‘अजेय’ किला मुस्लिम शासकों के कब्जे में कैसे आया?
39- शिवाजी ‘महाराज’ : चकमा शिवाजी राजे ने दिया और उसका बदला बादशाह नेताजी से लिया
38- शिवाजी ‘महाराज’ : कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले, शेर मुक्त हो गया
37- शिवाजी ‘महाराज’ : “आप मेरी गर्दन काट दें, पर मैं बादशाह के सामने अब नहीं आऊँगा”
36- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी की दहाड़ से जब औरंगजेब का दरबार दहल गया!
35- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठे थके नहीं थे, तो फिर शिवाजी ने पुरन्दर की सन्धि क्यों की?
34- शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती
31- शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया
30-शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”
29- शिवाजी महाराज : आखिर क्यों शिवाजी की सेना ने तीन दिन तक सूरत में लूट मचाई?

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *