बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से
चारों तरफ से खुशियाँ उमड़ रही थीं। आनन्द के मीठे बोल फूट रहे थे। महाराज प्रसन्न मुद्रा से सिंहासन पर बैठे थे। तभी सोलह सुहागनें और सोलह कुमारिकाएँ पाँच बत्तियों वाले दीए, आरती के लिए ले आईं। सिंहासन को बहू-बेटियों ने, माँ-बहनों ने घेर लिया। सभी स्त्रियों ने महाराज को तिलक किया। उनकी आरती उतारी। मानो शालीनता कुलीनता, सम्पन्नता, सलज्जता, वत्सलता, विनम्रता, कृतज्ञता, मंगलता, तेजस्विता, आदि विभूतियाँ ही महाराज की आरती उतारने के लिए इकट्ठा हुई थीं। महाराज शिवाजी राजे सिंहासनारूढ़ हुए। इसका मतलब ही यह था कि सभी माँ-बहनों की, बहू-बेटियों की इज्जत, उनका सम्मान सिंहासनरूढ़ हो गया है। सुल्तानी दुःशासनों से आँख में आँख मिलाकर उनसे जूझने वाला छोटी-छोटी कुमारी कन्याओं के सामने प्रेमादर से मस्तक झुका रहा था। राजा को यह भान भी था कि यह सिंहासन असंख्य बहनों के त्याग पर ही खड़ा है। राजा की आँखों में कृतज्ञता और प्रेमादर छलक रहा था।
बाद में शास्त्री पंडितों ने वेदमंत्रों के साथ महाराज पर अक्षत और शुभाशीषों की झड़ी लगाई। महाराज ने श्रद्धा से मस्तक नवाया। इसके बाद सकल राजकाज धुरन्धर, राजश्रियाविराजित, सकलगुणालंकरण, राजश्री पंडित पन्तप्रधान मोरोपन्त पिंगले आगे आए। उन्होंने महाराज को प्रणाम किया और आठ हजार सुवर्ण होनों से भरा पात्र लेकर वह महाराज के निकट गए। उन्होंने हौले से वे सिक्के महाराज के सिर पर उड़ेल दिए। प्रधानमंत्री ने राजा को सुवर्ण स्नान कराया। बाद में बाकी सात मंत्रियों ने और अन्य प्रतिष्ठित लोगों ने छत्रपति को नजराने अर्पण किए। सिंहासन के सामने भेटवस्तुओं का ढेर लग गया। इस समय सिंहासन के नीचे चौंतरे पर युवराज सम्भाजी राजे, गागाभट्ट और प्रधानमंत्री मोरोपन्त बैठे थे। छत्रपति का यह पहला ही दरबार था। वह पूरी शानो-शौकत से सम्पन्न हो रहा था।
अँधियारा दूर हुआ। सूर्योदय हो गया। सिंहासन के सामने ही पूर्वक्षितिज पर चमक रहे थे तोरणा और राजगढ़ के किले। मानो दो जगमगाती दीपमालाएँ ही हों। मुसलमानों की चार सभाओं की छाती पर मूँग दलकर महाराज ने हिन्दुओं के स्वराज की स्थापना की थी। अनहोनी को होनी में बदल दिया था। सुल्तानी मगरूरी को मुँहतोड़ जवाब दिया था। देवगिरि, वारंगल, द्वारसमुद्र, कर्णावती, विजयनगर और इन्द्रप्रस्थ के भग्न हिन्दू सिंहासन रायगढ़ पर फिर से जुड़ गए थे। राज्याभिषेक के अवसर पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रतिनिधि, अंगरेज टोपीकर हेनरी विण्डेन भी बम्बई से रायगढ़ आया था। दुभाषिए की हैसियत से नारायण शेणवी नामक एक सारस्वत पंडित उसके साथ था।
हेनरी बम्बई से निकला (दिनांक 10 मई 1674)। वह चौल आया (दिनांक 13 मई 1674)। बाद में रायगढ़ पहुँचा (दिनांक 19 मई सुबह 9 बजे)। गढ़ की बेहद कठिन चढ़ाई देख यह विस्मित हुआ। उसका मुकाम किले पर था। महाराज की खातिर वह नजराने में 1,650 रुपए लाया था। साथ में एक बेशकीमती हीरे की अँगूठी भी। इसके सिवा वह युवराज और अन्य प्रधानों के लिए 3,065 रुपयों का नजराना लाया था। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने महाराज के लिए एक बैठने की बढ़िया कुर्सी भी भेजी थी। राज्याभिषेक के दूसरे दिन (दिनांक 7 जून) उसने वह कुर्सी महाराज को राजमहल में नजर की। हेनरी ने अपनी डायरी में यह संस्मरण लिखकर रखा था।
राज्याभिषेक के दिन सुबह जब नजराने शुरू हुए तब हेनरी सभा मंडप में सिंहासन से करीब 20 हाथ की दूरी पर महाराज के सामने ही खड़ा था। अंगरेजी रिवाज के अनुसार उसने झुककर महाराज का अभिवादन किया। नजराने में से हीरे की अँगूठी हाथ में लिए, वह महाराज के सामने अदब से खड़ा हुआ। सभी मेहमानों का प्रबन्ध रामचंद्र पन्त अमात्य को करना था। महाराज ने हेनरी को सिंहासन के करीब आने की पन्त के जरिए अनुमति दी। इसके बाद हेनरी सीढ़ियाँ चढ़कर सिंहासन के पास गया। महाराज ने उसे सम्मानसूचक वस्त्र दिए।
दरबार से वापस लौटने में हेनरी को सुबह के आठ बज गए। क्योंकि सुबह चार बजे से लेकर नौ बजे तक विधियुक्त राज्यारोहण का यह भव्य समारोह चल रहा था। नजराने खत्म हुए। अब महाराज जुलूस के लिए तैयार हो गए (दिनांक 7 जून 1674 सुबह 9 के आसपास)। कुछ ही देर में जुलूस निकलने वाला था दरबार में से। इसी दौरान हेनरी नक्कारखाने के भव्य दरवाजे से बाहर आया। उसने देखा कि दरवाजे के दोनों तरफ दो-दो हाथी और दो घोड़े सजाकर खड़े किए गए हैं। यह सब देख उसे बड़ा मजा आया। इतनी दुरूह राह से इतनी ऊँचाई पर अजस्त्र शरीरसम्पदा के धनी ये हाथी लाए कैसे गए होंगे? यह रहस्य उसकी समझ में नहीं आ रहा था। वैसे, उसमें ऐसा कोई बड़ा रहस्य था नहीं।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।)
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ
50- शिवाजी ‘महाराज’ : सिंहासनाधीश्वर, क्षत्रियकुलावतंस महाराज शिवछत्रपति
49- शिवाजी ‘महाराज’ : पहले की शादियाँ जनेऊ संस्कार से पहले की थीं, अतः वे नामंजूर हो गईं
48- शिवाजी ‘महाराज’ : रायगढ़ सज-धज कर शिवराज्याभिषेक की प्रतीक्षा कर रहा था
47-शिवाजी ‘महाराज’ : महाराष्ट्र का इन्द्रप्रस्थ साकार हो रहा था, महाराज स्वराज्य में मगन थे
46- शिवाजी ‘महाराज’ : राज्याभिषिक्त हों, सिंहानस्थ हों शिवबा
45- शिवाजी ‘महाराज’ : शिव-समर्थ भेंट हो गई, दो शिव-सागर एकरूप हुए
44- शिवाजी ‘महाराज’ : दुःख से अकुलाकर महाराज बोले, ‘गढ़ आया, सिंह चला गया’
43- शिवाजी ‘महाराज’ : राजगढ़ में बैठे महाराज उछल पड़े, “मेरे सिंहों ने कोंढाणा जीत लिया”
42- शिवाजी ‘महाराज’ : तान्हाजीराव मालुसरे बोल उठे, “महाराज, कोंढाणा किले को में जीत लूँगा”
41- शिवाजी ‘महाराज’ : औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती खबरें आ रही थीं, महाराज बैचैन थे
40- शिवाजी ‘महाराज’ : जंजीरा का ‘अजेय’ किला मुस्लिम शासकों के कब्जे में कैसे आया?
39- शिवाजी ‘महाराज’ : चकमा शिवाजी राजे ने दिया और उसका बदला बादशाह नेताजी से लिया
38- शिवाजी ‘महाराज’ : कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले, शेर मुक्त हो गया
37- शिवाजी ‘महाराज’ : “आप मेरी गर्दन काट दें, पर मैं बादशाह के सामने अब नहीं आऊँगा”
36- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी की दहाड़ से जब औरंगजेब का दरबार दहल गया!
35- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठे थके नहीं थे, तो फिर शिवाजी ने पुरन्दर की सन्धि क्यों की?
34- शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती
31- शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया