टीम डायरी
अभी दो रोज़ पहले संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा के अन्तिम नतीज़े आए हैं। इन नतीज़ों के बाद से सफल अभ्यर्थियों की तमाम कहानियाँ लगातार सुर्ख़ियाँ बटोर रही हैं। वैसे, इस तरह की कहानियाँ हर साल आती हैं। लोग उन्हें पढ़ते हैं। तारीफ़ें करते हैं। फिर भूल जाते हैं। लेकिन सही मायनों में ये कहानियाँ भूलने की नहीं हैं। याद रखने की हैं। हमेशा। क्योंकि ये हौसले की कहानियाँ हैं। जज़्बे की कहानियाँ हैं। ये साबित करती हैं कि हम अगर चाह लें, और हार न मानकर निरन्तर प्रयास करते रहें, तो कुछ भी हासिल कर सकते हैं।
मिसाल देखिएगा। तिरुवनन्तपुरम, केरल की अखिला बीएस। जब ये महज पाँच साल की थीं, तभी एक हादसे में इनका दाहिना हाथ कट गया। लेकिन हौसले के मानो पंख उग आए। इस बार इन्होंने यूपीएससी की प्रवीणता सूची में देशभर में 760वाँ क्रमांक हासिल किया है। हालाँकि इससे अखिला सन्तुष्ट नहीं। क्योंकि इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाना है। और इस क्रम पर वे उसमें शामिल नहीं हो सकतीं। उससे नीचे की सेवा में सम्मिलित होने का अवसर मिलेगा। इसलिए, अखिला ने अगली बार फिर इस परीक्षा में बैठने का फ़ैसला किया है। पहली बार 2020 में इस परीक्षा में बैठी थीं। और महज तीन साल के भीतर इन्होंने सफलता भी हासिल कर ली।
इसी तरह राजस्थान के रामभजन कुमार। इनके पिताजी मज़दूर हैं। रोज़नदारी करते हैं। ये ख़ुद भी दिल्ली पुलिस में हवलदार हैं। बीते सात साल लगातार यूपीएससी का इम्तिहान दिया। चयन नहीं हुआ। लेकिन निरन्तरता में न व्यवधान आया और न ही हौसला छूटा। इस बार, आठवीं बार में, देश में इन्हें 667वाँ क्रमांक मिला है।
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बजरंग यादव। पिताजी किसान थे। साल 2020 में उनकी हत्या हो गई। यहाँ से बजरंग का जज़्बा ज़वाब दे सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि इसके बाद इन्होंने अपना और पिता का ख़्वाब पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। आज यूपीएससी की प्रवीणता-सूची में देश में 454वें स्थान पर हैं।
मैनपुरी, उत्तर प्रदेश के सूरज तिवारी। साल 2017 में एक दुर्घटना हुई तो इनके दोनों पैर कट गए। सीधा हाथ नहीं रहा। और उल्टे हाथ की भी दो अँगुलियाँ कट गईं। घर-परिवार भी कोई बहुत पैसे वाला नहीं है। पिताजी दर्ज़ी हैं। कपड़े सिलने का काम करते हैं। अब इन हालात में दूसरा कोई होता, तो कुछ बड़ा करने का सोच भी न पाता शायद। पर सूरज ने कर दिखाया। देश भर में इनका इस बार 917वाँ नम्बर लगा है।
महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले सूकेवाड़ी गाँव के मंगेश खिलारी। इनके पिताजी एक कारखाने में मज़दूरी करते हैं। साथ ही चाय का ठेला भी लगाते हैं। परिवार इतना सादा है कि मंगेश की सफलता के बारे में उसे इल्म तक नहीं हुआ। बस, इससे ही ख़ुश हो लिए कि लड़के की सरकारी नौकरी लग गई है। वह तो बाद में किसी ने बताया, समझाया कि लड़का यूपीएससी में देशभर में 396वें नम्बर पर रहा है। बड़ा अफ़सर बन गया है।
महाराष्ट्र से ही मुम्बई की झुग्गी बस्ती में रहने वाले मोहम्मद हुसैन। समुद्र किनारे जहाँ तमाम जहाज़ वग़ैरा खड़े होते हैं न, पिताजी वहीं मज़दूरों की निगरानी का काम करते हैं। हुसैन को ख़ुद अपना ख़र्च निकालने के लिए अपने जैसे दूसरे अभ्यर्थियों को पढ़ाना पड़ता था अभी। लेकिन अब वक़्त बदल गया है। क्योंकि हुसैन भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने इस बार प्रवीणता सूची में 570वाँ क्रमांक हासिल किया है।
ऐसी कहानियाँ कोई ये दो-चार नहीं हैं। तमाम हैं। हर बार आती हैं। और हमें सिखा कर जाती हैं कि ज़िन्दगी में कैसे भी हालात में, कुछ भी मुमकिन है। इसीलिए ये कहानियाँ पढ़कर भुला देने की नहीं हैं।