विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 3/2/2022
सात दिसंबर की हकीकत क्या है, यह सामने आना ही चाहिए। कुछ लोगों का मानना है कि एंडरसन वाकई चेरिटी के मकसद से यहां आया था। वह लोकसभा चुनावों के प्रचार का दौर था। हवाई जहाज की पायलटी छोड़कर राजीव गांधी देश को चलाने के लिए आगे आए ही थे। इंदिरा गांधी की मौत के बाद वे राजनीति की सवारी करने पर मजबूर हुए थे। उनके नेतृत्व में कांग्रेस पहली बार आम चुनाव के मैदान में थी। उनके राजनीतिक करियर की ये उनकी शुरूआती जनसभाएं थीं। जिस दिन एंडरसन भोपाल आया, राजीव गांधी हरदा में थे। अर्जुनसिंह भी वहीं थे। चुनावी सभा में राजीव गांधी के कहने पर अर्जुनसिंह ने एंडरसन साहब की जानकारी ली और उन्हें पता चला कि साहब पीड़ितों का हाल जानने मैदान में जा पहुंचे हैं. तो कांग्रेस नेतृत्व के कान खड़े हो गए। यह माना गया कि अगर पीड़ितों को पता चल गया कि यही एंडरसन है तो उसका जिंदा बच निकलना मुश्किल होगा। एंडरसन का बाल भी बांका हुआ तो अमेरिका को झेलना मुश्किल हो जाएगा।
भोपाल में ऐसा मानने वाले कम लोग नहीं हैं कि राजीव गांधी के निर्देश पर ही अर्जुनसिंह ने एंडरसन को यूनियन कार्बाइड के गेस्ट हाऊस में बाइज्जत रखा और सरकारी विमान मुहैया कराया। ताकि यह बला टले। उसकी गिरफ्तारी और नाटकीय रिहाई के पीछे केंद्र सरकार और कांग्रेस हाईकमान का डर था। वह एंडरसन के बहाने खुद को मुसीबत में डालने को तैयार नहीं थी। फिर ऊपर से जो लाइन तय हुई उसी पर अमल हुआ।….. वजह जो भी हो, एंडरसन के साथ हमारी सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था जिस तरह पेश आई, वह बेहद शर्मनाक था।
कहा जाता है कि यथा प्रजा, तथा राजा। यानी जैसी जनता, वैसे नेता। इसका उलटा भी है- यथा राजा तथा प्रजा। यानी जैसे नेता, वैसी जनता। मंत्री समूह के फैसले से तय कीजिए इनमें से कौन सी कहावत यहां फिट होगी। माननीय मंत्रियों के समूह ने तय किया है कि पीड़ितों को मुआवजे का एक और तगड़ा पैकेज प्रदान किया जाए। मजे की बात यह है कि न तो अदालत ने मुआवजे की कोई बात की है, न ही मीडिया अपने धुआंधार कवरेज में मुआवजा बढ़ाने पर जोर दे रहा है, लेकिन सरकार ऐसा करने जा रही है। वह भी हजारों गैस पीड़ितों की एक पूरी पीढ़ी तबाह होने के इतने साल बाद एकदम अचानक। क्यों?
इसे सिर्फ 25 साल की अपनी अनगिनत नाकामियों और बेशुमार बदनीयतियों पर परदा डालने के लिए बदकिस्मत जनता के सामने एक टुकड़ा फेंकने की कोशिश ही माना जा रहा है। जैसे सरकार पीड़ितों के कान में चुपके से कह रही है कि भाइयो और बहनों, मेहरबानी करके मीडिया की खबरों पर बिल्कुल ध्यान मत दीजिए। इधर कोने में आइए। अपन ले-देकर मामला सेटल कर लेते हैं। देखिए जी, अब सच सामने आ भी गया तो क्या होगा? 90 साल के बूढ़े बीमार एंडरसन को लाकर फांसी पर चढ़ा भी देंगे तो आपका क्या भला होगा? उसे अर्जुनसिंह ने छोड़ा या राजीव गांधी ने, अब वह बात जाने दीजिए। अब राजीवजी हैं नहीं और इधर कुंवर साहब की सेहत भी कुछ ठीक नहीं है। अजी, आप तो अपनी जेब की सोचिए। मुआवजे का एक और चेक यह लीजिए और चुप रहिए, इतने सालों चुप रहे तो अब मीडिया के बहकावे में आने से कोई फायदा नहीं। अपनी चुप्पी बनाए रखिए। ये मीडिया वाले तो बस यूं ही पिल पड़ते हैं। लगे हैं भोपाल के गड़े मुरदे उखाड़ने। बेचारे बड़ी तकलीफ के बाद तो कब्रों में गए हैं। अब उन्हें बिला वजह ये लोग परेशान कर रहे हैं। उधर ध्यान मत दीजिए। टीवी न्यूज चैनल वालों को भी कोई काम नहीं है। आप तो ऐसा कीजिए रिमोट से दूसरा चैनल लगाइए-लाफ्टर चैलेंज कितना उम्दा प्रोग्राम है। इन खबरों में क्या रखा है? राजू श्रीवास्तव को देखिए, क्या कॉमेडी करता है? अखबार का पन्ना पलटिए, ये क्या फिर गैस हादसे की खबरें लेकर बैठ गए। दूसरी खबरें भी तो हैं, उन्हें पढ़िए। वो खबर देखिए क्या लिखा है-सलमान और कैटरीना का ब्रेकअप होने वाला है। हाय अल्ला क्या कयामत की जोड़ी थी? सुनिए, दर्द की बात करना दर्द को बढ़ाना है। बीमारी हो या वहम, जनाब सबका इलाज पैसा है। वो ये रहा….
मुआवजे की बात इस वक्त लाने का मतलब साफ है कि सरकार यह मान बैठी है कि पीड़ितों की सारी दिलचस्पी रकम में होगी, उसे इंसाफ से कोई लेना-देना नहीं है। यह तो मीडिया का खड़ा किया हुआ बखड़ा है।…. गैस के भरोसे मीडिया कब तक खबरों की अंगीठी तपाएगा, अभी 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम का कवरेज भी तो होना है, जिसमें सुरेश कलमाड़ी की कलई खुलने की देर है। हो सकता है बीच में नक्सलवादी कोई बड़ी वारदात कर दें। हिंदुस्तान के सिर पर कश्मीरी तो हाथों में पत्थर लिए साठ साल से बैठे ही हैं। कब मारना शुरू कर दें, कौन जानता है। मुमकिन है कि अफजल, कसाब या सोहराब से जुड़ा कोई नया मामला सामने आ जाए। तब सारे कैमरे और माइक उधर दौड़ पड़ेंगे, किसी को याद भी नहीं रहेगा कि भोपाल में कभी गैस रिसी थी। इसमें अर्जुन, अहमदी या एंडरसन का कोई लेना-देना भी था। इन अमर, अकबर, एंथोनी को वे सब भूल जाएंगे।…सरकार एंडरसन के प्रत्यर्पण पर जोर देना नहीं चाहती।….उनकी कोशिश यह है कि ले-देकर मामला अभी तो रफा-दफा हो जाए। पब्लिक से सीधी डील।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार…
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह!
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!