नीलेश द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 31/1/2022
वाक़या जितना रोचक है, उतना सोचक भी। आज सुबह-सुबह काम करने के लिए जैसे ही कंप्यूटर खोला, उसमें दाहिनी तरफ से विज्ञापनों के नोटिफिकेशंस (Notificatoions) की जैसे बमबारी होने लगी। हर आधे-एक मिनट में एक ‘टुन्न’, फिर ‘टुन्न’। मतजब ऐसा कि आधे घंटे में भी दिमाग झन्ना गया। बीते रोज कंप्यूटर बन्द करते समय कहीं कोई अनदेखी हो गई होगी, जिसका नतीज़ा इस तरह सामने आ रहा था। चूँकि अपना कंप्यूटर का ज्ञान कामचलाऊ स्तर का ही है, इसलिए बहुत देर तक तो सूझा ही नहीं कि ये नोटिफिकेशंस आख़िर आ क्यों रहे हैं? और इन्हें बन्द कैसे किया जाए? कंप्यूटर की सैटिंग वग़ैरह में जाकर, जहाँ जितना समझ में आया, सब कर लिया। कोई नतीज़ा नहीं निकला। करीब तीन-चार घंटे तक ये नोटिफिकेशंस नियमित अन्तराल से डराते रहे। और हम उनके सामाने लाचार नज़र आते रहे।
तभी अचानक नोटिफिकेशन के साथ चिपकीं तीन बिन्दियों पर नज़र गई। सोचा इन पर उँगली कर के देख लेते हैं। हाँ, अपने लिए तो उँगली करना ही है। जानकार इसे क्लिक करना समझ सकते हैं। तो, साहब उँगली की गई और तुक्का निशाने पर जा लगा। वहीं एक विकल्प मिला नोटिफिकेशन को बन्द करने का। तत्काल प्रभाव से उसे अमल में लाया गया। इसके बाद कहीं जाकर राहत मिली।
हालाँकि इस राहत के साथ एक विचार भी मिला। ये कि क्या हम सब अपनी तमाम समस्याओं से ऐसे ही नहीं जूझ रहे हैं। अनाड़ी की तरह, उलझे हुए। जबकि ‘तीन बिन्दी समाधान’ तो हर समस्या अपने साथ ही लेकर चल रही है। ज़रूरत है तो बस, थोड़ा धीरज रखकर उसे देखने की। शायद इसीलिए तो हमारे बड़े-बुज़ुर्ग भी कह गए हैं, “जब समस्या का कोई समाधान न सूझे तो थोड़ा वक़्त लो। उस समस्या को भी थोड़ा वक्त दो। उसे उसके हाल पर छोड़ दो, कुछ देर के लिए। तब तक धीरज रखो। और फिर देखो, वह अपना समाधान कुछ सुझाएगी।” रोजमर्रा की उलझनों को सुलझाने के लिए इस मशविरे को अमल में लाने की आज हम सबको सख़्त जरूरत नहीं है क्या?