दीपक गौतम, सतना, मध्य प्रदेश से
प्रिय मुनिया,
मेरी गिलहरी, तुम आज पूरे दो साल की हो गई हो। तुम्हें पिछला पत्र तुम्हारे पहले जन्मदिन पर एक साल पहले 27 जनवरी 2023 को लिखा था। सच कहो तो मुझे आज बेहद तकलीफ हुई कि तुम्हें पत्र लिखने का सिलसिला भी थम सा गया है। या यूँ कहूँ कि लिखत-पढ़त ही रुक गई है, तो गलत न होगा। बहरहाल, तुम्हें इस वक्त रात के डेढ़ बजे जब दूसरे जन्मदिन के बहाने यह पत्र लिखना शुरू कर रहा हूँ, तब तुम मेरी गोद में लेटकर सोने जा रही हो। क्योंकि पिछले कुछ वक्त से तुमने सोने के नए-नए पैंतरे इजाद कर लिए हैं। अब तुम्हें नींद गोद में ही आती है। गहरी नींद में सो जाने से पहले तुम्हें यदि बिस्तर पर लिटा दें, तो तुम रो-धोकर आसमान सिर पर उठा लेती हो। अब तुम्हें बिस्तर से ज्यादा माँ-बाप का स्पर्श नींद के लिए चाहिए होता है। इन दिनों रात में तीन से चार बार जागने पर तुम्हें हर बार सुलाने के लिए एक से डेढ़ घंटे गोद पर ही रखना पड़ता है। तुम्हें पता है, काम के सिलसिले में अक्सर तुम्हारी माँ महीने के एक से डेढ़ हफ्ते टूर पर होती हैं। उस वक्त तुम्हें बार-बार गोद में सुलाते हुए हमेशा मुझे मेरी अम्मा याद आती हैं। माँ-बाप कैसे रतजगा करके बच्चे पालते हैं, वाकई वो तो स्वयं महसूस करने पर ही पता चलता है।
प्रिय मुनिया,
मेरी जान, इन दिनों तुम बड़े प्यार से पापा, मम्मा, नाना-नानी, बब्बा-दादी, दादा और ढेर सारे शब्द बोलने लगी हो। इतना ही नहीं, कहे हुए वाक्यों को भी तोतले शब्दों से कॉपी करने लगी हो। मुझे याद है जब तुमने पापा कहना शुरू किया था तो उसे रिकॉर्ड भी किया था। ठीक वैसे ही जैसे बीते एक साल में देश और दुनिया में भी घटित घटनाएँ इतिहास में दर्ज हो रही हैं। जैसे देश इस समय राममय हो गया है। क्योंकि अयोध्या में भव्य राममंदिर का उद्घाटन किया गया है। यह एक बड़ी एतिहासिक घटना है। इसलिए मैं तुमसे बस यही कहना चाहता हूँ कि इतिहास के सबक से हमेशा सीखने की कोशिश करना और वर्तमान को गढ़ने में मशगूल रहना। भविष्य के विषय में सोचकर फिक्रमंद रहने का कोई लाभ नहीं है। देश-दुनिया के विषय में बस यही चंद शब्द कहना चाहता हूँ। क्योंकि इस पत्र में शेष बातें तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे बारे में लिखनी हैं। तुमसे जुड़े ढेर सारे वाकये तो इस एक पत्र में लिख नहीं सकता हूँ। शायद इसीलिए तुम्हें पाती की शक्ल में छोटे-छोटे ये गद्द लिखने शुरू किए थे, जो बीते एक साल में एक भी नहीं लिख सका। तुम्हें पता है कि बीता साल बड़ा कठिन रहा है। शारीरिक कष्टों के चलते विपरीत मानसिक हालातों में काफी अवसादग्रस्त हो जाने से मन की दशा ही कुछ इस तरह हो गई। चाहकर भी तुम्हें कुछ लिख नहीं सका। इसलिए नए साल में कुछ नया करने का प्रयास करूँगा, फिलहाल के लिए इतना अवश्य कह सकता हूँ। देखो मैंने इस पत्र का दूसरा ही पैराग्राफ पूरा किया है और तुम गहरी नींद में जा चुकी हो। और अब तुम्हें बिस्तर पर लिटा दिया है।
प्रिय मुनिया,
तुम्हारी माँ ने तुम्हारे इस जन्मदिवस पर एक छोटे से उत्सव का आयोजन किया है। तुम्हें बता दूँ कि तीन माह पहले दुर्घटनावश मेरा हाथ टूट जाने से मैं शारीरिक रूप से आयोजन की तैयारी आदि करने में असमर्थ हूँ। मेरा बीता पूरा साल शारिरिक कष्ट झेलते हुए ही चला गया। अप्रैल 23 में पसलियाँ चटककर आधा साल लील गईं और उसके बाद हाथ ने बचा कुछ साल चट कर दिया। अब नए साल के शुरुआती कुछ माह भी पूरी तरह ठीक होने में लगेंगे। मगर इस पूरे वक्त में सबसे अच्छा रहा है तुम्हारे पास होना। पसलियाँ क्रैक होने और हाथ टूटने के वक्त दो से तीन माह के बिस्तर पर ही रहा। इस दौरान दिनभर घर में तुम्हारे इर्द-गिर्द रहने का खासा समय मिला। इतने समय लगभग 24 घन्टे तुम पास रही। तुम्हारी बेहिसाब शरारतें और तुम्हारे बचपने ने मुझे दर्द महसूस ही नहीं होने दिया। तुम अब भी बोरोप्लस देखते ही बड़े लाड़ से मेरे फैक्चर वाले हाथ के स्ट्रेच मार्क पर उसे लगाने लगती हो। पापा ‘आ-आ’ (कराहने को नाटकीय ढंग से बताना) करके मेरे दर्द को अपनी जादुई हथेली फेरकर गायब करती हो। सच कहूँ तो तुम्हारा होना अपने होने का अर्थ प्रदान करता है। जब अचानक कुछ दुःखद घट जाता है, अंदर कुछ दरकने लगता है, उस वक्त तुम्हारी निश्छल मुस्कान सब भुला देती है। जैसे तुम्हारी नन्ही हथेलियों का स्पर्श किसी जादू की छड़ी से कम नहीं है। अब तुम फिर आधी नींद से जागकर मेरी गोद में आ गई हो। क्योंकि तुम्हें बिस्तर पर सुलाने के लिए फिर से कुछ देर गोद में ही रखना होगा। देखो, यह भी कितना सुखद संयोग है कि पत्र शुरू करते हुए भी तुम गोद में थी और अब पूरा करते समय भी तुम गोद पर हो। मैं तुम्हें पत्र लिखते हुए दो बार यूँ ही सुला चुका हूँ। तुम्हारी माँ पहले ही सो चुकी हैं। क्योंकि कल ही पाँच दिन के आधिकारिक दौरे से लौटकर आज दिनभर कल के अवसर की तैयारी में थीं। देर रात सोई हैं। अब मैं भी मोबाइल पर टाइप करते-करते नींद में जा रहा हूँ। इसलिए फिलवक्त पत्र को यहीं पर विराम दे रहा हूँ। शेष समाचार अगले पत्र में। तुम्हें ढेर सारा प्यार और दुलार मेरी गिलहरी। 💝
दूसरे जन्मदिवस की ढेरों शुभकामनाएँ।
– तुम्हारा पिता
-27 जनवरी 2024
© Deepak Gautam
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(दीपक, स्वतंत्र पत्रकार हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस तथा लोकमत जैसे संस्थानों में मुख्यधारा की पत्रकारिता कर चुके हैं। इन दिनों अपने गाँव से ही स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। इन्होंने बेटी के लिए लिखा यह बेहद भावनात्मक पत्र के ई-मेल पर अपनी और बेटी की तस्वीर के साथ #अपनीडिजिटलडायरी तक भेजा है।)
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