Mayavi Amba-33

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जो गैरजिम्मेदार, वह कमजोर कड़ी

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

पिछले कुछ सालों में उसने अपने दिमाग का कारोबारी कौशल सिर्फ इसी में लगाया था कि कैसे वह अधिक से अधिक कारोबारियों को इस क्षेत्र में काम-धंधा करने के लिए राजी कर सके। इसमें वह काफी हद तक सफल भी रहा था। कई कारोबारी अनुबंध हो चुके थे, जिनके लिए कारोबारियों को जमीनें आवंटित की जानी थीं। लेकिन उसकी इन कोशिशों पर एक लड़की पानी फेर रही थी। और वह लड़की भी कौन, एक हबीशी! यह उसकी बर्दाश्त से बाहर था। पिता की तरह रोजी मैडबुल भी इन आदिवासियों को निहायत जंगली ही मानता था। आदिम काल के डरावने रीति-रिवाजों वाले उन आदिवासियों की औरतों को तो वह कुछ समझता ही नहीं था। ऐसे लोगों का अप्रत्याशित विरोध उसकी समझ से बाहर था। उसने उन लोगों के लिए खाने-पीने की आपूर्ति बंद कर दी थी। उनके लिए रोजमर्रा की जरूरत के सामानों की भी किल्लत पैदा कर दी थी। इसके बावजूद एक भी आदिवासी ग्रामीण अब तक अपनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं था। यह उसकी ताकत को खुली चुनौती थी। इलाके में कारोबार की संभावनाओं को भी झटका लग रहा था। यह उसकी नजर में अक्षम्य अपराध था। खासे संभावित राजस्व का नुकसान होने की आशंका मात्र ही मैडबुल जैसे आदमी को उकसाने के लिए पर्याप्त से अधिक थी।

दिन ढलने लगा था। सूरज की तिरछी किरणें मैडबुल पर पड़ रही थीं। उसके इर्द-गिर्द धुंध जमा होने लगी थी। ऐसे माहौल में उसका खुराफाती दिमाग कोई खतरनाक मंसूबा बाँधने में लगा था। उसके लिए यहाँ-वहाँ बिखरी कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रहा था।

“वह छिनाल तुम्हारी टाँगों के नीचे से निकल भागी और अब कहीं बैठी खुद पर इतरा रही होगी। शेखी बघार रही होगी कि देखो, उसने कैसे मैडबुल को बेवकूफ बना दिया। क्या ये सही हुआ, बताओ मुझे?”

मैडबुल ने चिल्लाकर जब यह बात कही तो पहरेदार के होंठ सूख गए। किसी घातक अंजाम के डर से वह सिहर उठा और उसे भय से यूँ काँपता देख मैडबुल का जोश बढ़ गया।

वह फिर चिल्लाया, “मैंने तुमसे एक सवाल पूछा। मुझे उसका जवाब चाहिए। ये हुक्म है मेरा।”

“कर्नल फिर कभी ऐसा नहीं होगा।”

“मुझे तुम्हारी ये फालतू बात नहीं सुननी। ऐसी बातों से मुझे नफरत है।”

“माफ कर दीजिए कर्नल।”

“लड़ाई में दुश्मन को खत्म करना ही एकमात्र मकसद होता है। तुम उसमें नाकाम हुए। इसलिए तुम फौज के लिए अब बोझ हो। तुम्हें अपनी गलती की जिम्मेदारी तो लेनी होगी।”

“जी जनाब, किसी न किसी को जिम्मेदारी तो लेनी होगी।”

“जिस रात वह छिनाल भागी, तब कितने पहरेदार पहरा दे रहे थे?”

“जनाब, दो।”

“उनमें से एक पहरेदार ने उस भागती हुई छिनाल को रोकने की कोशिश की। उसका बहादुरी से मुकाबला किया और शहीद हो गया। हमें उसकी लाश मिली है। तो अब बताओ, दूसरा पहरेदार कौन था?”

माहौल में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया।

“मैं दूसरी बार नहीं पूछूँगा।”

“मैं था कर्नल, उस रात मैं था।” पहरेदार का चेहरा डर से पीला पड़ चुका था, जैसे वह मलेरिया का रोगी हो।

“जोर से बोलो। कौन था वह?”, मैडबुल की आवाज कड़क हो गई। वह गुस्से से उबला जा रहा था।

“जनाब, मुझे बुखार था। प्रधान पहरेदार ने मुझे छुट्‌टी दे दी थी।”

“जी, ये सही है कर्नल। इस लड़के को बहुत तेज बुखार था।”

“ड्यूटी, ड्यूटी होती है। इसमें चूक होती है, तो कोई न कोई हमेशा उसके लिए जिम्मेदार होता है। और जो गैरजिम्मेदार, वह कमजोर कड़ी है।”

“जी जनाब।”

इतना सुनते ही मैडबुल ने अपने पतले होंठ पीले दाँतों से भींच लिए। इससे उसकी सूरत और बुरी दिखने लगी। उसका गुस्सा अब उसके काबू से बाहर हो रहा था। सो, उसने बिजली की तेजी से पहरेदार को धक्का देकर गिरा दिया और पिस्तौल निकालकर उस पर गोली दाग दी। गोली माँस को चीरती हुई उसके जिस्म में समा गई। उसका चेहरा काला पड़ गया। लेकिन मैडबुल का गुस्सा इतने पर भी शांत नहीं हुआ। वह मेज का सहारा लेकर खड़ा तो हो गया, लेकिन उसके पैर अब भी काँप रहे थे। पीले दाँतों के बीच होंठ अब भी भिंचे हुए थे। चेहरा अब तक विद्रूप लग रहा था।

“इस हरामखोर की लाश डीजल में डालकर रखो। ताकि यह सड़ने न पाए। बाद में इसे पेंट से रंगकर इसके टुकड़ों से पेपरवेट बना लेंगे। या कुछ और काम की चीज बनाएँगे। या इससे अच्छा है कि इसे गाड़ी से कहीं बाहर फेंक दिया जाए। हाँ, यही ठीक रहेगा।” वहाँ मौजूद सहमे हुए लोगों ने चुपचाप उसके आदेश का पालन किया। वह भी इस बात का ध्यान रखते हुए कि कहीं वह फिर से न भड़क जाए।

इसके बाद मैडबुल ने अचानक ही अपनी केंचुली बदल ली। अब वह भद्र इंसान की तरह दिखने लगा। पूरी तरह पाक-साफ। ये वह आदमी नहीं था, जिसने चंद मिनटों पहले अपनी पिस्तौल से एक आदमी की निर्ममता से हत्या कर दी थी। अब वह मुस्कुरा रहा था। साथियों को ज्ञान दे रहा था, “गलती की कीमत किसी न किसी को तो चुकानी ही पड़ती है। कोई न कोई तो जिम्मेदार ठहराया ही जाता है।” इतना कहते हुए वह जेल के तहखाने में बनी विशेष कोठरी की तरफ चल दिया। चलते-चलते वह अपने आदमियों से वहीं चाय भिजवाने के लिए कहता गया। उसे वहाँ किसी से मिलना था और मुलाकात के लिए वह देर से नहीं पहुँचना चाहता था।

“मुझे बाहर निकालो मैडबुल।” उस अँधेरी कोठरी से नाथन बार-बार आवाज दे रहा था। इस कोठरी के भीतर वह निरीक्षण करने के लिए आया था। जब वह अपने काम में लगा था, तभी मैडबुल और उसके आदमियों ने कोठरी का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया था। पूरा दिन बीत गया था। कोठरी में बंद रहते-रहते वह बुरी तरह थक चुका था। इस बीच, उसने कई बार दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन उसे भीतर से खींचने के लिए कहीं कोई हत्था ही नहीं मिला। दरवाजे की सतह पर अनगिनत बार हाथ फेरकर देखा कि कहीं कुछ मिले, जिसे पकड़कर वह दरवाजा खोल सके। लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। फिर अचानक उसे बाहर से आवाज सुनाई दी। यह आवाज मैडबुल की थी।

“क्या आप चाय लेंगे?”

मैडबुल ने कुछ इस अंदाज में नाथन से चाय के लिए पूछा, जैसे वह किसी दोस्त से इसरार कर रहा हो, न कि अपने प्रतिद्वंद्वी से। ऐसा प्रतिद्वंद्वी, जिसे उसकी इच्छा के खिलाफ उसने कैद कर लिया था। मैडबुल के बड़े-बड़े हाथों में चीनी मिट्‌टी का मग बेहद नाजुक और तुच्छ सा प्रतीत हो रहा था। लग रहा था, मानो वह अभी मुट्‌ठी भींचेगा और एक झटके में इस मग को चूर-चूर कर मिट्‌टी में मिला देगा। और ऐसा भी, जैसे कोई जंगली बिल्ली नन्ही सी चिड़िया को पंजों में दबाकर उससे खेल रही हो।

“चाय? तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? पागल आदमी, मुझे बाहर निकालो।”

“नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा। इसलिए आपको मेरे साथ गाली-गलौज करने की जरूरत नहीं है।”

“ओह, तो मुझे इस तरह से कब तक कैद करने का इरादा है तुम्हारा?”

“देखिए बात ऐसी है कि आप मेरी जेल में अगर बंदूक लेकर आएँगे, तो ये सब होगा ही। ऐसी चीजें भी होंगी, जो निश्चित ही आपको अच्छी नहीं लगेंगी। जैसे, अब अगर आपका चेहरा गोलियों से छलनी कर दिया जाए तो भी आपको शिकवा नहीं करना चाहिए। बल्कि, याद रखना चाहिए कि मेरी जेल में बंदूक लेकर आप पहले आए थे। तो, बंदूक मेरे पास भी है। आपकी वाली से बेहतर है। और मेरा निशाना भी आपसे अच्छा है।”

“तुम मुझे हमेशा के लिए यहाँ नहीं रख सकते!”

“जनाब नाथन, आप मुझे लगातार हैरान और परेशान कर रहे हैं। आप जो करने आए थे, बहुत आराम से कर सकते थे। आपको जो वाहियात शिकायतें मिलीं, उनकी जाँच करते। सबूत जुटाते और फाइल लेकर यहाँ से चले जाते। उसके लिए भला आपको कौन रोक रहा था। लेकिन आप तो यहाँ मेरी निजी फौज के बारे में पूछताछ करने लगे। जाँच-पड़ताल करने लगे। यह भी सोच लिया कि आप मेरे निजी मामलों में ऐसे टाँग अड़ाएँगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा? अब देखिए, क्या हाल हो गया आपका? इससे आपको क्या हासिल हुआ आखिर?

“तो मतलब, तुम्हारी निजी फौज है? और मुझे जो बताया गया, वह भी सही है कि तुम्हारी उस फौज में बेहद खूँख्वार किस्म के जवान हैं? उन वहशियों से कैसे-कैसे अपराध कराते हो तुम?”

—-
(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
—- 
पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

33- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह वापस लौटेगी, डायनें बदला जरूर लेती हैं
32- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह अचरज में थी कि क्या उसकी मौत ऐसे होनी लिखी है?
31- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब वह खुद भैंस बन गई थी
30- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : खून और आस्था को कुरबानी चाहिए होती है 
29- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मृतकों की आत्माएँ उनके आस-पास मँडराती रहती हैं
28 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह तब तक दौड़ती रही, जब तक उसका सिर…
27- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : “तू…. ! तू बाहर कैसे आई चुड़ैल-” उसने इतना कहा और…
26 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : कोई उन्माद बिना बुलाए, बिना इजाजत नहीं आता
25- ‘मायाबी अम्बा और शैतान’ : स्मृतियों के पुरातत्त्व का कोई क्रम नहीं होता!
24- वह पैर; काश! वह उस पैर को काटकर अलग कर पाती

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *