टीम डायरी
ये बड़े कमाल के सवाल हैं, “आप नहीं तो कौन?” और “अभी नहीं तो कब?” बल्कि यूँ कहें कि ये सिर्फ़ सवाल नहीं ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा हैं, तो भी ग़लत नहीं होगा। कोई पूछ सकता है कि कैसे हैं? तो सुनिए। दरअस्ल, हम में से अधिकांश लोगों की आदत ज़िम्मेदारियों से भागने, जी चुराने की होती है। और कभी कोई ज़िम्मेदारी सिर पर आ भी जाए, तो उसे टालने की कोशिश किया करते हैं।
यह सामान्य आदत है, जो हमें भीड़ और भेड़-तंत्र का हिस्सा बनाती है। तब हमें कोई ‘मैंगो पीपुल’ कह देता है। कोई ‘मिडिल क्लास मेंटेलिटी वाला’ या फिर ऐसा ही कुछ और। ये विशेषण हमारे व्यक्तित्त्व पर सवालिया निशान सरीखे होते हैं। लेकिन हम पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि हम छोटे लाभ देखते हैं। बड़े लक्ष्यों से बचते हैं। मगर हमारे इसी भीड़-तंत्र में कुछ लोग अलग होते हैं।
यही लोग ज़िम्मेदारियाँ सामने आने पर सबसे पहले ख़ुद से सवाल करते हैं, “आप नहीं तो कौन?” मतलब “अगर मैं इसे अपने हाथ में नहीं लूँगा, तो कौन लेगा?” और वे ज़िम्मेदारी को वहन करते हैं। ऐसे ही उसके निर्वाह के लिए भी वे टालमटोल करने के बजाय फिर पूछते हैं, “अभी नहीं तो कब?” और तुरंत उन्हें जवाब मिलता है, “अभी ही।” और वे लग जाते हैं, अपना योगदान देने में।
उनका योगदान निखर कर सामने आता है। यह उनकी गरिमा बढ़ाता है। उनके साथ जुड़े लोगों को भी फ़ायदा पहुँचता है। वे प्रशंसा, सम्मान और प्रतिष्ठा के पात्र बनते हैं। तारीख़ में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवाते हैं। और ज़िम्मेदारियों से बचने, उन्हें टालने की कोशिश करने वाला भीड़-तंत्र उनके लिए ‘ताली पीटता’ हुआ दिखता है। ग़ौर कीजिएगा, बस ‘ताली पीटता’ हुआ।
लिहाज़ा कभी ख़ुद से ईमानदारी बरतने का मन करे, तो अपने आप से ये सवाल ज़रूर कीजिएगा। ख़ास तौर पर, ज़िम्मेदारियाँ लेने और उनके निर्वहन करने के सन्दर्भों में। साथ ही, यह भी सोचिएगा कि आपको किस श्रेणी में शामिल होना है। आगे बढ़कर ज़वाब देने वालों में या फिर ‘ताली पीटने’ वालों में। चयन हमारा अपना है। आख़िरकार पसन्द भी तो हमारी सबकी अपनी ही है।
बहरहाल, यह बता देना लाज़िम है कि ये प्रसंग आख़िर आया कहाँ से। अभी एक दिन पहले भारत ने इंग्लैंड की क्रिकेट टीम को चौथे टेस्ट मैच में हराया। इस जीत के साथ उसने पाँच टेस्ट मैचों की श्रृंखला में इंग्लैंड पर 3-1 की अपराजेय बढ़त ले ली। इस उपलब्धि के बाद भारतीय बल्लेबाज शुभमन गिल ने एक सन्देश साझा किया, मौजूदा कोच राहुल द्रविड़ का। उसमें ये सवाल थे।
गिल के मुताबिक, इस सन्देश ने सिर्फ़ उन्हें नहीं, पूरी टीम को प्रेरित किया है। इसीलिए मौज़ूदा भारतीय टीम का हर खिलाड़ी इस वक़्त आगे बढ़कर ज़िम्मेदारी लेने को तैयार है। और इसी कारण वे ख़ुद तथा विकेटकीपर बल्लेबाज ध्रुव जुरैल मुश्किल वक़्त में छठे विकेट के लिए एक अच्छी साझेदारी बना सके। इस तरह, टीम को जीत के मुक़ाम तक पहुँचाने में अपना योगदान भी दे सके।
बाकी तो इस बारे में सबको सब पता ही होगा। इन दोनों खिलाड़ियों के यशोगान से जुड़ी सुर्खियाँ भी सब तक पहुँच ही रही होंगी। और भीड़-तंत्र हमेशा की तरह इनके लिए ‘ताली-पीटने’ की रस्म निभा ही रहा होगा। वह भी इनकी इस बेहद महत्त्वपूर्ण बात पर एक पल के लिए भी सोचने की ज़हमत उठाए बिना। अलबत्ता सोच सके तो बेहतर, क्योंकि ये सवाल बहुत कुछ बदल देने वाले हैं।
वैसे, इस प्रसंग में एक दिलचस्प बात और है। ये कि राहुल द्रविड़ ने जो सन्देश साझा किया, वह मूल रूप से पोलैंड के एक नामी शख़्स एंड्रेज़ कोलीकॉस्की का कथन है। और मज़े की बात यह कि एंड्रेज़ की गिनती किन्हीं महान् चिन्तकों या दार्शनिकों में नहीं होती। बल्कि 1990 के दशक में वह दुनिया के नामी माफ़िया सरगनाओं में गिना जाता था। दिसम्बर 1999 में उसे मार दिया गया। पर देखिए, दुनिया छोड़ने से पहले वह भी अपना नाम तारीख़ में दर्ज़ करा गया। सिर्फ़ इन्हीं सवालों पर अपने चिन्तन के दम पर!
इसीलिए सोचिएगा ज़रूर। और अमल कर सकें तो बहुत ही बेहतर।