ऋषु मिश्रा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
गर्मी की छुट्टियाँ थीं और मैं उस दिन आराम से घर के कामकाज में व्यस्त थी। तभी किसी अज्ञात नम्बर से फोन आया। उधर से हरित सर का फ़ोन था। वे बोले, “लीजिए मैडम, आपसे खण्ड शिक्षा अधिकारी बात करना चाहते हैं।” यह सुनते ही मेरी स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी, “सादर प्रणाम सर!।” सर ने बेहद सहजता से बात की और एक दुष्कर कार्य सौंप दिया…समर कैम्प के आयोजन का l
मैंने कहा- I will try my best sir.
उधर से मैसेज प्राप्त हुआ- I know…you can.
और इसके बाद चारों तरफ़ से आलोचनाओं के तीक्ष्ण बाण। उनसे आहत होती मैं लोगों को विनम्रता पूर्वक जवाब देती और काम करती जाती। समर कैम्प के उद्धाटन से समापन तक के छोटे से सफ़र ने बड़े अनुभव दिए। मैंने बहुत कुछ सीखा। वह सीख, वह अनुभव तब विशेष रूप से काम आया, जब इस बार वार्षिकोत्सव का आयोजन किया।
इस बार वार्षिकोत्सव के आयोजन के दौरान आदरणीय सर को कई बार याद किया। उनके कहे वाक्य को मन-ही-मन दुहराती रही, “जब भी कोई अच्छा कार्य करोगे तब 90% लोग तुम्हारे खिलाफ़ होगें। लेकिन उनकी परवा मत करना सिर्फ़ 10% लोगों पर ध्यान देना l”
आपने अपनी अद्भुत कार्यशैली से हमारे विकास खण्ड को नई दिशा दी ,हमें निरन्तर उत्साहित किया…आपका हृदय से धन्यवाद सर!🙏🍀🌻
—–
(ऋषु मिश्रा जी उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के एक शासकीय विद्यालय में शिक्षिका हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की सबसे पुरानी और सुधी पाठकों में से एक। वे निरन्तर डायरी के साथ हैं, उसका सम्बल बनकर। वे लगातार फेसबुक पर अपने स्कूल के अनुभवों के बारे में ऐसी पोस्ट लिखती रहती हैं। उनकी सहमति लेकर वहीं से #डायरी के लिए उनका यह लेख लिया गया है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने-पढ़ाने वालों का एक धवल पहलू भी सामने आ सके।)
——
ऋषु जी के पिछले लेख
6- देशराज वर्मा जी से मिलिए, शायद ऐसे लोगों को ही ‘कर्मयोगी’ कहा जाता है
5- हो सके तो इस साल सरकारी प्राथमिक स्कूल के बच्चों संग वेलेंटाइन-डे मना लें, अच्छा लगेगा
4- सबसे ज़्यादा परेशान भावनाएँ करतीं हैं, उनके साथ सहज रहो, खुश रहो
3- ऐसे बहुत से बच्चों की टीचर उन्हें ढूँढ रहीं होगीं
2- अनुभवी व्यक्ति अपने आप में एक सम्पूर्ण पुस्तक होता है
1- “मैडम, हम तो इसे गिराकर यह समझा रहे थे कि देखो स्ट्रेट एंगल ऐसे बनता है”।