ऋषु मिश्रा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
सुबह विद्यालय के लिए निकलती हूँ और सड़क पार करते ही एक पेड़ दिखता है…फूलों से लदा हुआ l बस आती नहीं दिखी तो मैं पेड़ के करीब जाकर इनका निरीक्षण करने लगी l यूँ तो मैंने स्नातक जन्तु विज्ञान से किया है, किन्तु दिल वनस्पति विज्ञान में अटका रहता है l
फूल ऊँचाई पर खिले थे और मेरा ध्यान बस और फूल के लालच में आधा-आधा बँटा हुआ था l किसी तरह एक डाल मिल गईl डाल लेकर मैं आगे बढ़ी तो यह छात्रा मिली l इनसे बस में आते-जाते मेरी मित्रता हो गई है l मेरी बेटी की उम्र की हैं। आयुर्वेद चिकित्सा में स्नातक कर रहीं है। मुझे देखते ही मेरा ज्ञानवर्धन करते हुए इसने कहा, “अरे! यह कचनार का फूल हैl” मैंने पूछा, “बेटा, ठीक से मालूम है न?” उसने कहा यही तो पढ़ते हैं हम लोग आयुर्वेद में। देखिए, इसमें पाँच stamens (पुष्प-केसर) हैं l
फिर हम दोनों ने वहीं एक फूल का डी-सेक्शन कर डाला l😃कॉलेज के दिन याद आ गए और मेरी बस भी l वैसे, कचनार जोड़ों के दर्द और वात रोग में लाभदायक है, ऐसा इस छात्रा ने बताया, जो जल्द ही आयुर्वेद की चिकित्सक बनेगी।
बस से जाते-जाते मैं सोच रही थी कि कुछ मामलों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाकई अच्छा है।🌻🍀
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(ऋषु मिश्रा जी उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के एक शासकीय विद्यालय में शिक्षिका हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की सबसे पुरानी और सुधी पाठकों में से एक। वे निरन्तर डायरी के साथ हैं, उसका सम्बल बनकर। वे लगातार फेसबुक पर अपने स्कूल के अनुभवों के बारे में ऐसी पोस्ट लिखती रहती हैं। उनकी सहमति लेकर वहीं से #डायरी के लिए उनका यह लेख लिया गया है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने-पढ़ाने वालों का एक धवल पहलू भी सामने आ सके।)
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ऋषु जी के पिछले लेख
7- जब भी कोई अच्छा कार्य करोगे, 90% लोग तुम्हारे खिलाफ़ होंगे
6- देशराज वर्मा जी से मिलिए, शायद ऐसे लोगों को ही ‘कर्मयोगी’ कहा जाता है
5- हो सके तो इस साल सरकारी प्राथमिक स्कूल के बच्चों संग वेलेंटाइन-डे मना लें, अच्छा लगेगा
4- सबसे ज़्यादा परेशान भावनाएँ करतीं हैं, उनके साथ सहज रहो, खुश रहो
3- ऐसे बहुत से बच्चों की टीचर उन्हें ढूँढ रहीं होगीं
2- अनुभवी व्यक्ति अपने आप में एक सम्पूर्ण पुस्तक होता है
1- “मैडम, हम तो इसे गिराकर यह समझा रहे थे कि देखो स्ट्रेट एंगल ऐसे बनता है”।