टीम डायरी
देश में जारी चुनावी चकल्लस के बीच आई एक ख़बर ने समाज के बड़े वर्ग में चिन्ता पैदा कर दी है। हिन्दुस्तान टाइम्स अख़बार ने अभी तीन अप्रैल को प्रमुखता से यह ख़बर प्रकाशित की। इसमें बताया कि वर्ष 2024 में अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के 36% विद्यार्थियों को अब भी नौकरी नहीं मिली है। कारण ये बताया गया कि कई कम्पनियों ने इन विद्यार्थियों को तनख़्वाह के रूप में भारी-भरकम रकम देने में असमर्थता जताई है। इसलिए कि वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के कारण वे ख़ुद वित्तीय दबाव झेल रही हैं।
यहाँ बता देना ज़रूरी है कि आईआईटी जैसे संस्थानों में तमाम कम्पनियाँ ख़ुद चलकर अपने लिए योग्य पेशेवरों की तलाश में आती हैं। इसे कैम्पस सिलेक्शन प्रक्रिया कहा जाता है। अख़बार की मानें तो यह प्रक्रिया वैसे तो मई के अन्त तक चलती है। लेकिन आईआईटी जैसे देश के शीर्ष संस्थानों के विद्यार्थियों को अमूमन तब तक इन्तिज़ार नहीं करना पड़ता। प्रक्रिया के शुरुआती दौर में ही शीर्ष कम्पनियाँ उन्हें अपने साथ जोड़ लेती हैं। लेकिन इस साल आईआईटी बॉम्बे के क़रीब 36% विद्यार्थी अब तक भी अपने लिए उचित नौकरी की तलाश कर रहे हैं।
हालाँकि इस ख़बर पर तुरन्त आईआईटी बॉम्बे की ओर से स्पष्टीकरण आया। गुरुवार चार अप्रैल को संस्थान ने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउन्ट पर इसे जारी किया। इसमें ग्राफ के माध्यम से बताया कि 2022-23 के सत्र वाले उनके सिर्फ़ 6.1% विद्यार्थी हैं, जिनकी नौकरी की तलाश अभी पूरी नहीं हुई है। नीचे ग्राफ देख सकते हैं। वैसे, 4.3% विद्यार्थी ऐसे भी हैं, जिन्होंने अब तक तय नहीं किया कि उन्हें आगे करना क्या है। इन्हें भी जोड़ लें तो 10.4% विद्यार्थी अब तक खाली हाथ हैं। बाकी सब नौकरी, व्यवसाय या उच्च शिक्षा के ठिकानों से लग गए हैं।
Lately there has been news that over 30% of IITB students do not get jobs! An exit survey among graduating students in 2022-23 says only 6.1% are still looking for jobs. Here is the survey result for you to decide… pic.twitter.com/ICrAQUdpVt
— IIT Bombay (@iitbombay) April 4, 2024
अलबत्ता, सच कुछ भी हो अख़बार की ख़बर या संस्थान का स्पष्टीकरण लेकिन बात तो चिन्ता वाली ज़रूर है। क्योंकि आईआईटी कोई सामान्य संस्थान नहीं है। लाखों युवाओं के लिए यह किसी तीर्थ से कम नहीं होता। यहाँ तक पहुँचने के लिए वे आठवीं-नौवीं कक्षा से ही ख़ुद को खपाना शुरू कर देते हैं। कोचिंग संस्थानों में लाखों रुपए ख़र्च करते हैं। तनाव, अवसाद जैसी स्थितियों से गुजरते हैं। फिर कुछ हजार चुनिन्दा बच्चों का आईआईटी तक पहुँचने का सपना पूरा होता है। वहाँ भी वे लाखों रुपए अपनी पढ़ाई, रहने-खाने आदि पर ख़र्च करते हैं।
इतना सब होने के बाद उनके हाथ में आख़िर लगा क्या? वे भले 36% न सही, 10% हों। मगर ये इतने बच्चे भी आख़िर यूँ ख़ाली हाथ रह जाने के लिए तो आईआईटी में नहीं पहुँचते? तो फिर सवाल उठता है कि आख़िर कमी कहाँ है? क्या विद्यालयीन और महाविद्यालयीन स्तर पर हमारी शिक्षा व्यवस्था में जो ख़ामी हैं, वे आईआईटी जैसे संस्थानों के स्तर पर भी हैं? क्या हम बच्चों को रोज़गार और व्यवसाय की ओर ले जाने वाली शिक्षा नहीं दे रहे हैं? उन्हें उसके लिए दक्ष और कुशल नहीं बना रहे हैं? इन प्रश्नों पर विचार होना चाहिए। इनके उत्तर मिलने चाहिए।
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