अब सुनाई नहीं देगा… लखनऊ से कमाल खान, एनडीटीवी इंडिया के लिए

शर्मा जी, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश से, 14/01/2022

कमाल खान नहीं रहे… सुबह से इस ख़बर पर यकीन मुश्किल हो रहा है। अब भी जब ये टिप्पणी टाइप कर रहा हूँ तो समझ नहीं आ रहा है कि क्या और कैसे लिखा जाएगा। उनसे कभी मिला नहीं था। बस, उनकी रिपोर्ट देखीं थीं, यूट्यूब पर ढूँढ़कर देखा-सुना था। कोशिश रहती थी कि जब भी मौका मिले तो उन्हें देखा और सुना जाए… उनकी रपटों से पहला परिचय आईआईएमएसी (भारतीय जनसंचार संस्थान) में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान ही हुआ। उस दौरान रवीश की रिपोर्ट और कमाल खान की रिपोर्ट्स का बहुत इन्तज़ार हुआ करता था। पत्रकारिता के छात्र दोनों को बड़े चाव से सुना करते थे। हमने भी कमाल खान की रिपोर्ट्स देखने शुरू कीं और फिर ये सिलसिला कभी ख़त्म नहीं हुआ। 

कमाल खान को देखना-सुनना ऐसा था, जैसे कि यूपी को देखना हो। उन्हें देखने पर लगता था कि ऐसा ही तो है अपना यूपी। उनकी रिपोर्ट्स सामाजिक और राजनीतिक हिंसा पर होती थीं। लेकिन मन उद्धेलित नहीं होता था। मन विचलित नहीं होता था… मुझे याद है कि उन्होंने बदलते लखनऊ पर एक रिपोर्ट की थी, कि कैसे लखनऊ समय के साथ बदल रहा है… उस रिपोर्ट ने मेरे मन मस्तिष्क में यह बात बिठा दी कि कमाल खान के पास यूपी और लखनऊ के बारे में कितनी जानकारियाँ हैं… कितना कुछ सीखने को है। अपना लिहाज़ है, कि जिन लोगों से इश्क करते हैं… उनसे मिलने से डरते हैं कि कहीं दिल टूट न जाए और मन रूठ न जाए…बाज़ दफा लखनऊ जाने के बाद कभी सोचा नहीं कि एनडीटीवी (NDTV) के दफ़्तर चलकर उनसे मिल लिया जाए… कुछ बातें की जाएँ और यूपी के बारे में जाना जाए… उन्हें देखता था तो लगता था कि अपने यूपी का स्वभाव ही यही है। अपनी संस्कृति ही यही है। एक और ऐसी ही रिपोर्ट उनकी बुन्देलखंड में पड़े सूखे पर थी… जहाँ सूखा इतना भीषण पड़ा था कि लोग घास की रोटियाँ खाने को मज़बूर हो गए थे. बहुत ही हृदय विदारक रिपोर्ट थी वह… लेकिन जिस तफ़सीली और शालीनता के साथ उन्होंने बयाँ की थी… वह आज भी याद है। 

वैसे तो टीवी देखना छोड़े हुए तीन साल से ज़्यादा हो गए… लेकिन अब भी पेशेवर मजबूरियों के चलते यूट्यूब पर टीवी के प्रोग्राम ढूँढकर देख ही लेता हूँ। मन कहाँ मानता है! या फिर ख़बरों के लिए कभी एनडीटीवी लगा लेता था, तो कमाल खान को देख ठिठक जाता था… घटनाक्रम पर उनकी टिप्पणी सुनकर लगता था कि हाँ हम थोड़े और समृद्ध हो गए हैं। लेकिन टीवी रपटों का एक निर्धारित टाइम होता है… उन्हें सुनते हुए ज़रा सा भी वक्त नहीं गुजरता कि वह लखनऊ से कमाल खान, एनडीटीवी इंडिया के लिए…. कहकर विदा ले लेते। मन अधूरा रह जाता। फिर इस उम्मीद में कि कल फिर देख लेंगे… कुछ पुरानी रपटें देख लेंगे… मन तसल्ली देते और आगे बढ़ जाते।

60 वर्ष की उम्र कोई बहुत ज़्यादा नहीं होती… उन्होंने बीती रात ही अपना प्रोग्राम पूरा किया था। बहस में बैठे थे। लेकिन, ज़िन्दगी में कहाँ कुछ निश्चित है। साँसें कब विदा ले लें, किसे पता है. उन्हें अब भी सुनने की चाहत है। लखनऊ में जब भी एनडीटीवी (NDTV)  का माइक दिखेगा तो कमाल खान याद आएँगे। लेकिन अब कोई नई रिपोर्ट नहीं होगी। वहीं पुरानी रिपोर्ट देखकर मन को तसल्ली देना होगा… कि हमने कमाल खान को लाइव देखा और सुना था। अब ज़्यादा लिखा नहीं जा रहा… इस अँधेरे समय में पत्रकारिता का ‘कमाल’ भी नहीं रहा।
—– 
(शर्मा जी उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। शर्मा के आगे लगा ‘जी’ सम्मानसूचक से अधिक उनके निवास स्थान (गाजीपुर) का सूचक है। शर्मा जी सियासत और पत्रकारिता में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। पेशे से पत्रकार नहीं हैं। लेकिन अपने ही ढंग की अलग पत्रकारिता करने का सपना ज़रूर सँजोते हैं। उन्होंने डायरी के लिए यह टिप्पणी डायरी के विशेष आग्रह पर लिखी है।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *