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क्रिकेट से दूर रहने के इतने सालों बाद भी मैं बल्लेबाज़ी करना भूला कैसे नहीं?

निकेश जैन, इन्दौर, मध्य प्रदेश

पिछले हफ़्ते मैं बहुत थका हुआ महसूस कर रहा था। थोड़े फ़ुर्सत के पल बिताना चाहता था। लिहाज़ा, मैंने फ़ैसला किया कि मैं शनिवार को अपने पुराने क्रिकेट क्लब (इन्दौर में ही) में जाता हूँ। वहाँ कुछ बल्लेबाज़ी कर के तरोताज़ा हो लेना ठीक रहेगा।

साे, इसी कार्यक्रम के मुताबिक मैं क्लब पहुँच गया। मैंने बीते पाँच साल से बल्ला नहीं पकड़ा था। इसीलिए मुझे पक्का नहींं था कि मैं ठीक से खेल पाऊँगा या नहीं। लेकिन वहाँ अभ्यास के दौरान मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि मैं सीधे बल्ले से खेल रहा था। मेरे पैर भी सही ढंग से बाहर निकल रहे थे। और मैं अपने सभी पसन्दीदा शॉट भी अच्छे से मार रहा था। 

तो अब मेरे दिमाग़ में सवाल ये था कि क्रिकेट से इतने सालों तक दूर रहने के बावज़ूद मैं बल्लेबाज़ी करना भूला कैसे नहीं? 

इसका ज़वाब मुझे यह मिला कि मेरे शरीर की एक-एक माँसपेशी को दरअस्ल, क्रिकेट अच्छी तरह याद है। कारण कि अब से 20 साल पहले मैं नियमित रूप से न सिर्फ़ क्रिकेट का गहन अभ्यास करता था, बल्कि सम्भाग, प्रदेश, आदि के स्तरों पर खेलता भी था।

इसीलिए मेरे शरीर को क्रिकेट से जुड़ी हर चीज़ अब तक याद है और आगे भी निश्चित रूप से रहने वाली है। क्योंकि इतने गहन अभ्यास के बाद शरीर की याददाश्त (मसल मेमोरी) ज़ल्दी धूमिल नहीं होती।

यह ठीक वैसा ही है, जैसे कई सालों तक अगर हम गाड़ी चलाते रहें, तो फ़िर दिमाग़ के लिए ज़ोर देकर कुछ सीखने-सिखाने, समझने-समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। शरीर अपने आप सभी काम कर लेता है। भले, हम बीच में कुछ महीने या साल तक गाड़ी न चलाएँ, लेकिन उससे भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। 

मुझे लगता है, किसी भी तरह का शिक्षण या प्रशिक्षण ऐसा ही होना चाहिए। उसका यही उद्देश्य होना चाहिए कि सीखने वाले को उसके कार्य-कौशल का इतना अभ्यास करा दिया जाना चाहिए कि फिर उसका शरीर उसे कभी भुला न सके। जब ज़रूरत हो, उसे सब याद आ जाए। 

यही कारण है कि कार्य आधारित शिक्षण-प्रशिक्षण का मैं हमेशा से बहुत बड़ा मुरीद हूँ। विशेष तौर पर कॉरपोरेट जगत में। सभी छोटी-बड़ी कम्पनियों को इस दिशा में सोचना चाहिए। 

क्या लगता है? 

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निकेश का मूल लेख 

Last week was very hectic for me and I badly needed a break!

I decided to visit my club on Saturday to knock few balls. I batted almost after 5 years so wasn’t sure if I would be able to play properly.

But to my surprise and to my cricket friends’ surprise, I was playing with straight bat; my feet were moving and I was able to play my shots!

I was thinking – how come I am NOT forgetting how to bat?

I think the answer lies in the fact that cricket movements are part of my muscle memory. And it perhaps because of the extensive training of past 20 years when I was playing regularly.

That muscle memory is so strong that it just doesn’t go away almost like our driving abilities. Right?

The purpose of any training is that learner should be able to recall it when needed without much effort.

And that’s why I am a big fan of activity based learning in corporate world also. Give your learner enough practice for situations so they are able to recall it when its needed?

Thoughts? 

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(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)
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