Mayavi Amba-45

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : हाय हैंडसम, सुना है तू मुझे ढूँढ रहा था!

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

डेविल स्पिट ऐसी जगह थी, जहाँ तमाम अनैतिक धंधे होते थे। नशेबाजी, वैश्यावृत्ति, जुआखोरी, सट्‌टेबाजी, सब। ऐसा शायद ही कोई गैरकानूनी काम हो, जो वहाँ न होता हो। कदम-कदम पर वहाँ दलाल घूमते दिख जाते थे, जो खाली बैठे अपराधियों, शराबियों, नशेड़ियों के बीच अपने धंधे की संभावनाएँ टटोलते थे। उनसे सौदेबाजी करते नजर आते थे। शराबखानों में शराब परोसने वाली बालाओं के जिस्मों के साथ नशेड़ी किस्म के लोग झूमा-झटकी करते रहते थे। मार-पीट, चाकू-छुरी, गोलीबारी का खतरा वहाँ हर समय मँडराता रहता था। कोई भी सामान्य व्यक्ति ऐसी जगह पर कभी होना नहीं चाहेगा। वहाँ कई जगह दीवारों पर नियोन लाइटों से चमकते शब्द- “सेक्स! सेक्स! सेक्स!” -इस जगह की प्रकृति को संक्षेप में स्पष्ट रूप से बताते थे।

सूरज ढलते ही वह इलाका अपने पूरे रंग में आ गया था, जहाँ मणिमल के साथ मथेरा किसी को तलाशने आया था। हालाँकि वह मणिमल को पसंद बिलकुल नहीं करता था। कोक सूँघते हुए सूअर की तरह दिखाई देता था वह उसे। उसकी साँसों से हमेशा सूअर के बाड़े और बुरादे की गंध आया करती था। इसलिए क्योंकि मणिमल ने लंबे समय तक बूचड़खाने में काम किया था। मणिमल जब कोक सूँघता, तो उसके रूखे और चिकने नथुने ऐसे जान पड़ते, मानो वैक्यूम क्लीनर हों।

“कमबख्त ये तू मुझे किस गंदी जगह ले आया! काश, इस खोजबीन में मेरा वक़्त बरबाद न हो”, मथेरा ने गंदा सा मुँह बनाते हुए कहा।

“अरे, यह बहुत बढ़िया जगह है। इसे एक सुंदर औरत चलाती है। उसे धंधे की भी अच्छी समझ है।”

“हो सकता है। मगर ये ठिकाना उन्हीं लुटेरों और ठगों के लिए बढ़िया होगा, जो दूसरों के साथ लूट-पाट करते हैं और हमेशा बड़ी रकम उड़ाने के फेर में रहते हैं।”

“अब हर कोई तो ऐसा नहीं हो सकता न जो सिर्फ अपनी पसंद का ही काम करने का जोखिम ले। हर किसी को किसी न किसी आड़ की जरूरत होती है, जिस पर वह टिक सके। और जब कोई ऐसी किसी जगह टिकता है, तो उसे अपनी मातृभाषा में गंदी-गंदी शुद्ध गालियाँ सुनने का मौका बोनस के तौर पर मिलता है।”

घाटी के इस हिस्से में आसमान कुछ अजीब सा था। जहाँ उसे साफ होना चाहिए था, वहाँ गंदे पीले धब्बे नजर आते थे। उसके नीचे एस्बेस्टस के खंभों से टिककर गहरा साज-श्रृंगार किए कई लड़कियाँ खड़ी थीँ। कोई पतली-दुबली काया वाली, तो कोई मोटी-थुलथुल। अलबत्ता, सभी की निगाहें अपने लिए संभावित ग्राहकों की तलाश में लगी थीं। उनके दलाल भी सक्रिय थे। तभी थोड़े गेहुँए से रंग वाली एक लड़की आगे आई। उसका अंदाजा था कि वे लोग उसके ग्राहक हो सकते हैं। इसलिए उसने उन्हें रोका और टोका।

“क्या रे, सेक्स करेगा?”

“हट छिनाल। तेरे पास मेरी पसंद का माल नहीं है।”

“अच्छा, तो बता न राजा, कैसे खुश होगा तू?”, ऐसा कहते हुए लंबे, घने, काले बालों वाली दो औरतों ने उन लोगों की तरफ देखकर अपनी जुबान बाहर निकाली और जोर से वू….हू… करते हुए उन्हें चिढ़ाया। फिर एक-दूसरे को कमर से धक्का दिया और जोर से हँस दीं। वास्तव में, वे दोनों भी वहाँ आए दूसरे लोगों से अलग नहीं थीं। उन्होंने शराब पी रखी थी। नशे के कारण उनके चेहरे लाल थे और पैर लड़खड़ा रहे थे।

हालाँकि इस सब पर ध्यान न देते हुए मथेरा ने अपनी पिस्तौल निकालकर उसका जाइजा लिया। मैगजीन में गोलियाँ देखीं कि पूरी हैं या नहीं। उसके बाद पिस्तौल वापस उसके खोल में रख ली।

इसी बीच, मणिमल ने एक आदमी से तस्दीक की, “हम लोग कैंडी को खोज रहे हैं।”

“तो समझो तुम्हारी खोज पूरी हो गई। वह रही कैंडी”, उसने एक मंच पर दिख रही औरत की तरफ इशारा करते हुए कहा।

शराबखाने के गंदगी और अँधेरे से भरे माहौल के बीच एक जगह फूहड़ सा गुलाबी भड़कीला मंच बनाया गया था। उसके आस-पास जबरदस्त भीड़ थी। कमरे में नीली रोशनी बिखरी हुई थी। साथ ही चारों तरफ विभिन्न यौन क्रीड़ाओं का प्रदर्शन करने वाले रचनात्मक चित्र टँगे थे। जैसे-जैसे माहौल गरम हुआ, मंच पर लटके-झटके दिखा रही औरत ने अपने साथी पुरुष के कपड़े उतारने शुरू कर दिए। उसने उसकी कमीज के बटन खोले और उसे दीवार से चिपका दिया। फिर औरत ने अपने कपड़े स्तनों के ऊपर तक उठाए और उस पुरुष से चिपक गई। इसके बाद दोनों यौन संसर्ग का अभिनय करते हुए साँसों के तेज उतार-चढ़ाव के साथ तरह-तरह की आवाजें निकालने लगे। हालाँकि उनका कृत्य देखने में निराशाजनक तो था ही, हास्यास्पद और दयनीय भी था।

“तुम लोगों को अगर कैंडी से मिलना है तो पहले मुझे बताओ। मेरे जरिए ही उससे मिल सकते हो।”

इतना सुनते ही मथेरा ने आवाज की तरफ मुड़कर देखा। पास ही एक आदमी दिखा। उसके दाँत नकली थे, धातु के बने हुए। उसकी कमीज पर ‘स्टड’ लिखा था और वह उनका रास्ता रोकने वाले अंदाज में खड़ा था। उसने कंधों तक उतरते अपने चिपचिपे बालों में ढीली चोटी बना रखी थी, जो उसकी टोपी से बाहर लटक रही थी।

“ओह, वाकई? तू इधर का बॉस है क्या?”, मथेरा ने उससे पलटकर सवाल किया।

मथेरा ने सीधे-सादे तरीके से सवाल किया था। उससे उसका खतरनाक इरादा बिलकुल भी जाहिर नहीं होता था। हालाँकि उसका इरादा नेक कतई नहीं था। नशे में धुत स्टड भी यहीं गच्चा खा गया। अपने ऊपर मँडराते खतरे को भाँपने में नाकाम रहा वह।

“हाँ, तेरे लिए तो बॉस ही हूँ। उसका पूरा धंधा मैं ही देखता हूँ। इधर का कारोबार भी मैं सँभालता हूँ…. आहहह… अबे छोड़…, साले नाटे……, मुझे छोड़…., आहहह……., माफ कर दे भाई….., माफ कर दे……!”

स्टड अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि वह मथेरा के सामने दर्द से चीखने, छटपटाने लगा। उससे छोड़ देने की गुहार करने लगा। माफी माँगने लगा। इसलिए कि मथेरा ने उसके अंडकोष को हाथों से पकड़कर जोर से उमेठ दिया था। उसने अपनी पकड़ तब तक ढीली नहीं कि जब तक स्टड की अक्ल पूरी तरह ठिकाने नहीं आ गई। दर्द से सुबकते हुए स्टड अब भी बार-बार उससे अपनी गुस्ताखी के लिए माफी माँग रहा था। मथेरा के सामने वह पूरी तरह घुटने टेक चुका था। कुछ ही पलों में उसने कैंडी को भी उन दोनों सामने पेश कर दिया। बिना किसी हील-हवाले के वहाँ से भीड़ भी पूरी छँट गई। कैंडी नशे में थी लेकिन इसके बावजूद पूरी तरह मदहोश नहीं थी। उसकी आँखें खुली हुई थीं। उनके नीचे कत्थई से घेरे नजर आते थे। रंगे हुए बाल भी बेतरतीब थे। इसके बावजूद उसमें एक अजीब सा आकर्षण था।

“हाय हैंडसम, सुना है तू मुझे ढूँढ रहा था, बता क्या बात है?”

कैंडी ने वहाँ आते ही एक नकली खिलखिलाहट के साथ मथेरा से सवाल किया। अपने गले में पहनी सोने की मोटी चेन की तरफ भी अँगुली से इशारा किया। उस चेन पर चमकदार अक्षरों से उसका नाम लिखा था। इसके साथ ही, उसने अपने उसी बिंदास अंदाज में मथेरा का अभिवादन किया। 

#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

44 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : “मुझे डायन कहना बंद करो”, अंबा फट पड़ना चाहती थी
43 – मायावी अम्बा और शैतान : केवल डायन नहीं, तुम तो लड़ाकू डायन हो
42 – मायावी अम्बा और शैतान : भाई को वह मौत से बचा लाई, पर निराशावादी जीवन से…. 
41 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अनुपयोगी, असहाय, ऐसी जिंदगी भी किस काम की?
40 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : खून से लथपथ ठोस बर्फीले गोले में तब्दील हो गई वह
39 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह कुछ और सोच पाता कि उसका भेजा उड़ गया
38- मायावी अम्बा और शैतान : वे तो मारने ही आए थे, बात करने नहीं
37 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम्हारे लोग मारे जाते हैं, तो उसके जिम्मेदार तुम होगे
36 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: ऐसा दूध-मक्खन रोज खाने मिले तो डॉक्टर की जरूरत नहीं
35- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : इत्तिफाक पर कमजोर सोच वाले लोग भरोसा करते हैं

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