Nikesh Jain

सब छोड़िए, लेकिन अपना शौक़, अपना ‘राग-अनुराग’ कभी मत छोड़िए

निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश

घर से काम करने की सुविधा (वर्क फ्रॉम होम- डब्ल्यूएफएच) ने मुझे मेरे शौक़, मेरे ‘राग-अनुराग’, यानी क्रिकेट के साथ जुड़े रहने की गुंजाइश दी है। 

अब अक्सर ही सुबह-सुबह मैं नेट पर क्रिकेट का अभ्यास करने निकल जाता हूँ। कुछेक घंटे वहाँ अभ्यास करते हुए पसीना बहाता हूँ। इसके बाद ठीक सुबह 10 बजे अपने लैपटॉप के सामने आकर बैठ जाता हूँ। जो कम्पनी मैंने शुरू की है उससे जुड़ी बैठकों, कार्य-चर्चा, आदि में शामिल होने के लिए। 

वैसे, मैं जब स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था, तब मुख्य रूप से क्रिकेट ही खेलता था। इस दौरान मैंने इन्दौर सम्भाग की टीम में खेला। फिर देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय की टीम में रहा। मध्य प्रदेश की रणजी टीम में भी खेला। लेकिन जब इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था, तो पेशेवर क्रिकेट छोड़ना पड़ा।

हालाँकि क्रिकेट और मैं एक-दूसरे को पूरी तरह कभी छोड़ नहीं सके। आगे नौकरी करते हुए मैं मुम्बई और बेंगलुरू में कॉरपोरेट क्रिकेट खेलता रहा। फिर अमेरिका चला गया, तो वहाँ उत्तरी कैलिफोर्निया में कई सालों तक क्लब क्रिकेट खेला। साल 2004 में भारत लौटा तो बेंगलुरू में फिर से ऑरेकल, अरीबा और याहू जैसी कम्पनियों में काम करते हुए कॉरपोरेट क्रिकेट खेलने लगा। 

अलबत्ता, 2014 में जब मैंने एसएपी ज्वाइन की तो ज़िम्मेदारियाँ इतनी बढ़ गईं कि खेल रुक गया। उस दौरान मेरा बहुत सारा समय तो यात्रा में निकल जाता था। ऐसे में कोई और काम हो ही नहीं पाता था। इसके बाद दो और कम्पनियों में मैंने वरिष्ठ पदों पर काम किया। उस दौरान क्रिकेट खेलने पर लगभग विराम लग गया। 

लेकिन यह पूर्ण विराम नहीं था। अर्धविराम था। कुछ समय के लिए। क्योंकि अपनी ख़ुद की कम्पनी ‘एड्यूरिगो’ शुरू करने और इसमें अपने सहित सभी वरिष्ठ-कनिष्ठ सदस्यों को ज़रूरत के हिसाब से घर से काम करने की सुविधा मुहैया कराने के बाद मैंने फिर क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया है। अब मैं जब भी इन्दौर में होता हूँ तो अपने पूर्व क्लब में जाकर नेट पर क्रिकेट का अभ्यास ज़रूर करता हूँ। 

इसका कारण जानते हैं क्या है? मेरा मानना है कि हम जीवन में कुछ भी छोड़ें, मगर अपना शौक़, अपना ‘राग-अनुराग’ कभी न छोड़ें। क्योंकि वही एक चीज़ ऐसी होती है जो हमें हमेशा सक्रिय रखती है। प्रेरित और प्रोत्साहित करती है। हमेशा आगे-आगे की ओर बढ़ाती रहती है। 

वैसे, आपका क्या मानना है?  

—— 

निकेश का मूल आर्टिकल 

WFH allows me to follow my passion – cricket!🏏

On a weekday morning I visit my cricket nets; practice for couple of hours and at sharp 10am I am in front of my laptop conducting my daily stand-up meeting! 🎧 💻

I have grown up playing cricket. Played for Indore division, DAVV University and MP Ranji Trophy during my college days but left professional cricket during final year of engineering 😞.

Then I played corporate cricket in Mumbai, Bangalore and club cricket in Northern California for many years. Post my relocation to India in 2004, I continued corporate cricket in Bangalore for Oracle, Ariba and Yahoo!

But when I joined SAP in 2014 my work responsibilities had increased so could not continue. The commute itself was so horrible that doing anything else was not possible at all.

Then Icertis and Conga two grilling jobs in leadership position took away my cricket completely. (except playing for fun part of course).

But now with Edurigo and WFH I have picked up the game again and trying to visit nets whenever I am in Indore.

Quit everything but never quit your passion – that’s one thing which will always get you going.

What say? 

——- 

(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

——
निकेश के पिछले 10 लेख

17 – क्रिकेट से दूर रहने के इतने सालों बाद भी मैं बल्लेबाज़ी करना भूला कैसे नहीं?
16 – सिर्फ़ 72 घंटे में पीएफ की रकम का भुगतान, ये नया भारत है!
15 – भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग अब अमेरिका से भी बेहतर हैं, कैसे?
14 – छोटे कारोबारी कैसे स्थापित कारोबारियों को टक्कर दे रहे हैं, पढ़िए अस्ल कहानी!
13 – सिंगापुर वरिष्ठ कर्मचारियों को पढ़ने के लिए फिर यूनिवर्सिटी भेज रहा है और हम?
12 – जल संकट का हल छठवीं कक्षा की किताब में, कम से कम उसे ही पढ़ लें!
11- ड्रोन दीदी : भारत में ‘ड्रोन क्रान्ति’ की अगली असली वाहक! 
10 – बेंगलुरू में साल के छह महीने पानी बरसता है, फिर भी जल संकट क्यों?
9- अंग्रेजी से हमारा मोह : हम अब भी ग़ुलाम मानसिकता से बाहर नहीं आए हैं!
8- भारत 2047 में अमेरिका से कहेगा- सुनो दोस्त, अब हम बराबर! पर कैसे? ज़वाब इधर…

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *