विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 29/12/2021
दिल्ली में कांग्रेस पूरी कोशिश में है कि उसके महान् नेता राजीव गांधी की बेदाग बचा लिया जाए। एंडरसन की सुरक्षित रिहाई के दाग उनके दामन पर न आएं। 25 साल (अब 37) पहले इसी पार्टी की सरकारें जीवित एंडरसन को बचाने में लगी थीं। अब राजीव गांधी का ख्याल सबसे ऊपर है। बेमौत मारे गए हजारों बेकसूर लोगों और इतने सालों से तकलीफ झेल रहे हजारों दूसरे पीड़ितों से ज्यादा अहम यह है कि एक दिवंगत शख्स के दामन को बचाया जाए।
पहली बार किसी केंद्रीय मंत्री ने देश को यह दिलचस्प दर्शन दिया है कि अगर एंडरसन को नहीं भगाते तो हालात और बिगड़ जाते। हालांकि इस पर भोपाल के लोगों की दलील भी गौर करने लायक है। लोग कह रहे हैं कि मुंबई पर आतंकवादी हमले में जिंदा पकड़े गए पाकिस्तानी इस्लामिक आतंकवादी आमिर अजमल कसाब की गिरफ्तारी से क्या मुंबई के हालात बिगड़ गए थे? गैस हादसे पर मोइली- मुखर्जी केंद्र सरकार के जिम्मेदार मंत्री कम, ऐसे सुरक्षा अफसरों की तरह ज्यादा पेश आ रहे हैं, जो राजीव गांधी के स्वर्गवासी होने के दो दशक बाद भी उनके सुरक्षा अमले में बने हुए हैं। अब उनकी इमेज की रक्षा के लिए कटिबद्ध।
केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कोलकाता में खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने वॉरेन एंडरसन को निकाला था। वे लगे हाथ राजीव गांधी को पाक-साफ बता रहे हैं।…
आखिरकार केंद्र सरकार ने यह मान लिया है कि भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपों वॉरेन एंडरसन को अर्जुनसिंह ने भगाया था। मुखर्जी ने कहा कि अर्जुन सिंह ने तब कहा था कि घटना के बाद लोगों में बहुत गुस्सा है और एंडरसन को भोपाल से बाहर भेजना बहुत जरूरी है। प्रणब ने कहा कि अगर अर्जुन सिंह सरकार एंडरसन को भोपाल से नहीं भगाती तो, कानून व्यवस्था बिगड़ सकती थी। इस बारे में केंद्र पर भी सवाल उठ रहे हैं लेकिन प्रणब ने साफ किया कि राजीव गांधी की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। हालांकि वे इसका जवाब नहीं दे सके कि एंडरसन को दिल्ली से अमेरिका किसने और कैसे भेजा? मुखर्जी ने कहा कि सरकार फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने की संभावनाएं तलाश रही हैं। हादसे के पांच दिन बाद आठ दिसंबर को अखबारों में बयान छपा था कि एंडरसन की रिहाई का निर्णय क्यों लेना पड़ा। तब अर्जुन ने कहा था, हजारों मौतों के कारण लोग गुस्से में थे। इसलिए स्थिति पर नियंत्रण के लिए जरूरी था कि एंडरसन को भोपाल के बाहर भेज दिया जाए।…
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश सरकार गैस पीड़ितों को हर हाल में न्याय दिलाकर रहेगी। सरकार एंडरसन की रिहाई सहित पूरे मामले की फिर से जांच करने की सोच रही है। इसके लिए विधि विशेषज्ञों की सलाह ली जा रही है। आरोप हल्के करने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनरीक्षण याचिका दायर करने पर भी विचार चल रहा है। निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने का निर्णय सरकार पहले ही ले चुकी है। चौहान पत्रकारों से रूबरू हुए तो यही सब कहते सुने देखते हैं चौहान के तरकश से कौन से तीर निकलते हैं, जो हादसे की मछली में इंसाफ की आंख को भेदेंगे।…
नौ साल पहले 2001 में तब के एटानी जनरल सोली सोराबजी ने वाजपेयी सरकार को राय दी थी कि एंडरसन के प्रत्यर्पण की कोशिश नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि इसके सफल होने की संभावना नहीं है। इसके बाद सरकार ने प्रत्यर्पण की कोशिश नहीं की। उन्होंने अमेरिकी कानूनी फर्म से राय लेने की सलाह भी दी। जबकि इसके पहले 31 जुलाई 1998 की उन्होंने कहा था, ‘लापरवाही से मौत (आईपीसी की धारा 304-ए) को तुलना अमेरिकी कानून के तहत गैरइरादतन हत्या से की जा सकती है। पहली नजर में यह मामला भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 3 के तहत आता है।” संसद में हंगामा मचने पर 2003 में सरकार ने अमेरिका से प्रत्यर्पण की गुजारिश की थी जिसे ठुकरा दिया गया। जाहिर है काफी वक्त गुजरने से प्रत्यर्पण की कोशिश पर असर पड़ा।…
…सवाल उठाया गया है कि जब भोपाल गैस हादसे का केस सीबीआई के पास था तो पुलिस ने एंडरसन को जमानत कैसे दे दी? बवाल इस बात पर मचा हुआ है कि गैर जमानती धाराओं के तहत दर्ज मामले में पुलिस ने एंडरसन को जमानत कैसे दे दी? जमानत देने का अधिकार सिर्फ न्यायिक मजिस्ट्रेट को था। वास्तव में पुलिस को एंडरसन को जमानत देने का तो क्या गिरफ्तार करने तक का अधिकार नहीं था, क्योंकि जिस दिन उसे पुलिस ने गिरफ्तार किया उससे पहले ही मामला सीबीआई को सौंपा जा चुका था। सीबीआई ने ले भी लिया था। दस्तावेज बताते हैं कि पुलिस ने तीन दिसंबर 1984 को मामले की एफआईआर दर्ज की। राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर अगले ही दिन मामला सीबीआई को सौंप दिया।
वरिष्ठ सीबीआई अफसर पांच दिसंबर को ही दिल्ली से भोपाल आ नाए छह दिसंबर की सुबह 10 बजे सीबीआई ने नए सिरे से एफआईआर ने दर्ज कर जांच शुरू कर दी। अब एंडरसन को गिरफ्तार करने और उससे पूछताछ करने का अधिकार सीबीआई का था। पुलिस का नहीं। अगले दिन सात दिसंबर की सुबह एंडरसन बंबई से भोपाल पहुंचा। जिला पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने ही जमानत दे दी। फिर वह स्टेट प्लेन में दिल्ली रवाना हो गया। इसके बाद वह विशेष विमान से अमेरिका चला गया। ऐसा कैसे हो गया? सीबीआई के तत्कालीन निदेशक जेएस बावा से पूछा गया तो पहले तो उन्होंने सवाल से बचने की कोशिश की। जैस सिर्फ यही कहा, यह बहुत पुराना मामला है। मुझे ठीक से तारीखें याद नहीं हैं। सीबीआई ने नौ या दस दिसंबर को मामला अपने हाथ में लिया था। यह पूछने पर कि क्या एंडरसन के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने से पहले सीबीआई को उससे पूछताछ करने का मौका मिला था, बावा ने फोन ही रख दिया।
सीबीआई के एक और पूर्व निदेशक जोगिंदरसिंह ने कहा कि एक बार केस सीबीआई के पास आ जाए तो किसी अन्य एजेंसी के पास मामले में कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि इस बात की जांच की जानी चाहिए कि कैसे एसपी स्वराजपुरी के कहने पर सात दिसंबर को एंडरसन को जमानत दे दी गई, जबकि मामला छह दिसंबर को ही सीबीआई के पास आ चुका था। सीबीआई के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब भोपाल गैस त्रासदी मामले में एंडरसन न ही आरोपी था, न ही वांछित था तो उसकी गिरफ्तारी ही क्यों की गई? फिर कुछ घंटों बाद जमानत भी दे दी गई। क्यों सीबीआई को उससे पूछताछ की अनुमति नहीं दी गई? सीबीआई ने तो 30 नवंबर 1987 को एंडरसन के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। यह तो बड़ा घोटाला है।
( जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!