टीम डायरी
“मंज़िल उनको मिलती है, जिनके इरादों में जान होती है।
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।।”
किसी ने ऐसा लिखा, और टी-20 क्रिकेट विश्वकप के दौरान अफ़ग़ानिस्तान की टीम ने इन शब्दों को शब्दश: सच कर दिखाया। इसी रविवार, 23 जून को हुए एक मैच में अफ़गा़निस्तान ने ऑस्ट्रेलिया को शिक़स्त दे डाली। अपनी इस जीत के साथ उसने पहली बार ख़ुद को न सिर्फ़ सेमीफाइनल में पहुँचने का मज़बूत दावेदार बना लिया, बल्कि ऑस्ट्रेलियाई टीम के लिए वहाँ तक पहुँचने की राह भी मुश्किल कर दी।
कारण ये कि इसके अगले ही मैच में, 24 जून को भारत ने भी ऑस्ट्रेलिया को हरा दिया है। अब अगर अफ़ग़ानिस्तान सुपर-8 के आख़िरी मुक़ाबले (भारतीय समयानुसार मंगलवार, 25 जून की सुबह) में बांग्लादेश को हरा देती है तो वह सेमीफाइनल में पहुँचेगी। बारिश के कारण अगर मैच नहीं हो सका, तो भी वही सेमीफाइनल में पहुँचेगी क्योंकि तब अंकतालिका में उसका ऑस्ट्रेलिया से एक अंक ज़्यादा होगा। यहाँ तक कि बांग्लादेश भी यदि नज़दीकी अन्तर से जीती, तब भी अफ़ग़ानिस्तान ही सेमीफाइनल में जा सकती है।
कुल मिलाकर अफ़ग़ानिस्तान की टीम ने वह कर दिखाया है, जिसकी विश्व क्रिकेट में किसी को उम्मीद नहीं थी। ख़ास तौर पर इन तथ्यों के मद्देनज़र कि अफ़ग़ानिस्तान में इस वक़्त क्रिकेट और क्रिकेटर अपने शायद सबसे ख़राब दौर से गुज़र रहे हैं। सुविधाओं और पैसों का अभाव तो उनके पास पहले से ही था, लेकिन अब तालिबान के शासन में स्थिति और बदतर हुई है। सुरक्षा की चिन्ताओं के कारण दूसरे देशों की टीमें अफ़ग़ानिस्तान का दौरा करने से हिचकती हैं। इसलिए वहाँ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मैच भी बहुत नहीं होते।
अफ़ग़ानिस्तान के खिलाड़ियों को मैच प्रैक्टिस के लिए अन्य देशों के आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) जैसे टूर्नामेंटों पर निर्भर रहना पड़ता है, जहाँ विदेशी खिलाड़ियों को खिलाए जाने की अनुमति होती है। इस तरह, अफ़ग़ानिस्तान के खिलाड़ियों के पास न बहुत पैसा है, न सुविधाएँ हैं और न ही ठीक तरह की मैच प्रैक्टिस। उनके अपने देश में क्रिकेट का माहौल भी बहुत अनुकूल है, ऐसा नहीं कहा जा सकता।
जबकि इसके उलट स्थिति ऑस्ट्रेलिया की। वहाँ न पैसों की कमी, न सुविधाओं की। खिलाड़ियों के पास अन्तर्राष्ट्रीय मैचों का अनुभव भी खूब। विश्वकप जैसे बड़े टूर्नामेंटों में ख़िताब अपने नाम करना उनकी आदत बन गई है। उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना इतनी है कि मैच की आख़िरी गेंद तक वे संघर्ष किया करते हैं। कई मैचों में तो उनका कोई एक खिलाड़ी ही पूरे मैच का नतीज़ा अपने पक्ष में कर लेता है। साल 2023 में एकदिवसीय मैचों के विश्वकप के दौरान अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ ही ग्लेन मैक्सवेल ने 201 रनों की पारी खेलकर मैच का पासा पलट दिया था। अकेले दम पर ही उन्होंने अपनी टीम को सेमीफाइनल में पहुँचाया था। बल्कि कहते तो ये तक हैं कि ऑस्ट्रेलिया के क्लब स्तर पर ही क्रिकेट खिलाड़ियों में प्रतिस्पर्धा की भावना और जीत की भूख को भर दिया जाता है।
मतलब आसमान की ऊँचाई छूने के लिए ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के पास जितने शक्तिशाली पंख हैं, तो अफ़ग़ानियों के पंख उतने ही कमज़ोर। या यूँ कहें कि उनके पंख तो बुरी तरह कटे हुए हैं। क़तरे हुए हैं। मगर, उनके पास अगर कुछ है तो हौसला और जज़्बा। उसी हौसले के बल पर वे मज़बूत पाँखों वाले ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का सामना करने के लिए मैदान में उतरे और देखते-देखते आसमानी ऊँचाई पर जा बैठे। साथ-साथ तमाम लोगों को ज़िन्दगी का अहम सबक दे गए कि पंख कटे हों, तब भी हौसलों से आसमान छुआ जा सकता है।
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