ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
# दरवाजे #
मानो उसकी नियति थी कि कभी न कभी वह भैंसओझन से टकराएगी। फिर उसके बाद उस महाओझन (पटाला) से भी उसकी मुलाकात होगी ही। उसके पास कोई और विकल्प नहीं था। नियति के इस लिखे से वह बच नहीं सकती थी। बस, खुद को उससे दो-चार होने के लिए तैयार ही सकती थी।
लेकिन वह चतुर थी। उसने जल्दी ही यह पहचान लिया कि कौन सा विचार कहाँ से प्राप्त हो रहा है – हमसे या महाओझन से। उसने यह भी सीख लिया कि उसे कौन सी बात सुननी है और किसे अनसुना करना है। लगता है, हमने इस बार उसके रूप में अच्छा आवरण चुना है। उसकी वजह से हमारा ज्ञान भी बढ़ने वाला है।
जब महाओझन ने उसके चेहरे पर पराग कण उछाले थे, तो उसके बाद जो हुआ उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता। तब उसके ही नहीं, हमारे भीतर भी गहराई में कहीं मानो ज्ञान का स्रोत फूट गया था। उस ज्ञान ने हमारे कानों में फुसफुसाकर बताया था कि ध्युति जड़ी की ताकत उसके रस में होती है। वह किसी भी प्राणी के तमाम आवरण हटाकर उसे उसके वास्तविक रूप में सामने ला सकती है। यह भी बताया था कि औषधि की विशेषताएँ असंतुलित व्यक्तित्त्व से मेल खानी चाहिए। ताकि बीमार आत्माओं को ठीक किया जा सके, उनके शरीरों में जीवन-ऊर्जा को सक्रिय किया जा सके। यह भी समझाया था कि इस किस्म के उपचारों के लिए उपचार करने वाले का किसी भी सूरत में जीवित रहना बहुत जरूरी होता है। इसके बाद, अगले कुछ दिनों में तो ऐसा लगा, जैसे उसके सामने एक पूरी नई जादुई दुनिया खुल गई हो और हमारे लिए भी।
महाओझन के मुँह से लहरों की तरह ज्ञान प्रवाहित हुआ। हम पर छा गया और हमने उसे आत्मसात किया।
हम और ज्ञान के भूखे थे। वह बहुत कुछ जानती थी। उसे पता था कि कौन सी पौध बागीचे में अच्छी उगती है। किस वनस्पति की बढ़त जंगल में बढ़िया होती है। वह कई पारलौकिक विद्याएँ भी जानती थी।
……“प्रकृति से तालमेल टूटना ही सभी बीमारियों की जड़ में है।”
महाओझन ने उसे और हमें कई गोपनीय तरकीबें बताईं। जैसे- किस तरह वह साँप को पकड़कर उसके दाँतों से जहर निकालती है। ततैया की पूँछ से कैसे उसका जहर निकाल लेती है। मरते पेड़ को कैसे ठीक करती है। सिर्फ स्पर्श मात्र से कैसे किसी जहरीली बेल को नष्ट कर देती है। कौन से पौधे का बीज, कितनी मात्रा में लेने से विक्षिप्त दिमाग बेसुध हो जाता है। किस जड़ी के तेल से किसी का भी मन काल्पनिक पीड़ा से छटपटा उठता है। मीठी-मीठी सी महक वाली कौन सी जड़ों का चूर्ण गर्भवती महिला के लिए खतरनाक होता है। किस पेड़ की छाल वसंत ऋतु में जहर हो जाती है। किसी जीव-जंतु के काटने पर पतझड़ की कौन सी पत्तियाँ प्राकृतिक रूप से इलाज में काम आ सकती हैं। किस फूल के परागकणों का चूर्ण किसी को पागलों की तरह कामातुर बना देता है या उसे लकवाग्रस्त कर सकता है।
उसने और हमने महाओझन के दिए ज्ञान को पूरा ध्यान लगाकर सुना। लेकिन हमारी जिज्ञासा अब भी शान्त नहीं हुई थी। इससे खुश होकर उसने हमें वह भी बताया, जिसे बताने का पहले उसका इरादा नहीं था। यहाँ तक कि वह ज्ञान भी दिया, जिसके बाँटने पर पाबंदी थी। उसने बताया कि एक ही पौधे के उत्पाद किस तरह स्थिति, मनोदशा, मनोभाव, आदि को अलग-अलग तरीके से प्रभावित कर सकते हैं। उसने कई निषिद्ध चूर्णों के बारे में भी बताया। साथ ही, उनसे दूर रहने की हमें और उसे चेतावनी भी दी।
……“मात्रा सब कुछ है। यह औषधि को जहर और जहर को औषधि बना देती है।”
उसने उसे और हमें सुगंधित परागकणों वाले कई फूलों और उनकी खुशबुओं के बारे में बताया। ऐसे, जिनकी शक्ति मौसम के साथ घटती-बढ़ती रहती है। जिनके परागकण कम मात्रा में ही किसी को दे दिए जाएँ तो उसे मतिभ्रम का शिकार कर सकते हैं। उसे दुस्वप्नों की दुनिया में धकेल सकते हैं। ऐसे फूलों के बारे में भी बताया, जिन्हें घातक जहर में बदला जा सकता है। इस जहर की निश्चित खुराक नियमित अंतराल से किसी को देते रहने पर अच्छे-भले आदमी को पागल किया जा सकता है। ऐसे परागकणों की जानकारी भी दी, जो विक्षिप्तों को पूरी तरह ठीक कर सकते हैं और शांतचित्त लोगों को हिंसक बना सकते हैं। साथ ही, किसी की कामवासना को दूर करने के लिए पूर्णिमा की रात कौन से परागकणों को कैसे काम में लेते हैं, यह भी बताया।
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
51 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : न जाने यह उपहार उससे क्या कीमत वसूलने वाला है!
50 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे लगा, जैसे किसी ने उससे सब छीन लिया हो
49 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा ज्यादा हो जाए, तो दवा जहर बन जाती है
48 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायनें भी मरा करती हैं, पता है तुम्हें
47 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह खुद अपना अंत देख सकेगी… और मैं भी!
46 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसने बंदरों के लिए खासी रकम दी थी, सबसे ज्यादा
45 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : हाय हैंडसम, सुना है तू मुझे ढूँढ रहा था!
44 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : “मुझे डायन कहना बंद करो”, अंबा फट पड़ना चाहती थी
43 – मायावी अम्बा और शैतान : केवल डायन नहीं, तुम तो लड़ाकू डायन हो
42 – मायावी अम्बा और शैतान : भाई को वह मौत से बचा लाई, पर निराशावादी जीवन से….