अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 21/12/2021
जो चीज जैसी है, उसे वैसे ही जानना, न कम, न ज़्यादा, अवस्था के अनुरूप जानना, उसका सम्यक् बोध होना ही सम्यक् ज्ञान है। सम्यक् ज्ञान क्या नहीं है? यह जानना सम्भवत: सम्यक् ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया। सम्यक् ज्ञान के अभाव में हम अक्सर दूसरों को तो चोट पहुँचाते ही हैं। उससे भी अधिक ख़ुद को आत्मिक चोट देते रहते हैं। सबसे बड़ी बात इस आत्मिक क्षति का अहसास हमें अक्सर नहीं हो पाता।
आध्यात्मिक या कहें कि आत्मिक क्षति को अनुभव न करने के उदाहरण आजकल चर्चा में हैं। हम बेअदबी (गुरु ग्रन्थ साहिब की अवमानना) की घटनाएँ चारों तरफ़ सुन रहे हैं। इन घटनाओं का कारण कि अमुक व्यक्ति ने धार्मिक चिह्न के साथ अपमानजनक व्यवहार किया या करने का प्रयास किया। बदले में धार्मिक ठेकेदारों ने अमुक व्यक्ति का जीवन ही छीन लिया। प्रश्न ये कि ये ठेकेदार धार्मिक कैसे? जो धर्म का सम्यक् ज्ञान ही न रखता हो? क्योंकि सम्यक् ज्ञान वाला व्यक्ति अहिंसक होगा। संवेदनशील होगा। मानवीय होगा। उसके लिए जीवन सबसे महत्त्वपूर्ण होगा। जीवन के मुकाबले अन्य चीजें नगण्य।
पुराणों में एक कथा आती है कि भृगु ऋषि और अन्य मुनियों ने मिलकर यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में नारद जी भी पधारे थे। नारद जी ने ऋषियों से पूछा कि आप लोग इस यज्ञ का फल किसे देना चाहेंगे। इस पर ऋषियों का ज़वाब था कि तीनों देवों में सबसे श्रेष्ठ देव को ही इस यज्ञ का फल दिया जाएगा। लेकिन समस्या यह थी कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे श्रेष्ठ कौन है, इसका निर्धारण कैसे किया जाए? इस समस्या का समाधान निकालने के लिए भृगु ऋषि को चुना गया।
भृगु ऋषि ने सबसे श्रेष्ठ देव की पहचान करने के लिए तीनों देवताओं के पास जाने का निर्णय लिया। भृगु जी सबसे पहले ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी उस समय सरस्वती जी के साथ बातें करने में व्यस्त थे। इस पर भृगु ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि पृथ्वी पर आपकी पूजा नहीं की जाएगी। इसके बाद भृगु ऋषि शिव जी के पास पहुँचे। शिव जी भी उस वक्त माता पार्वती के साथ बातें करने में व्यस्त थे। भृगु ने उन्हें भी श्राप दे दिया कि पृथ्वी पर शिवलिंग की पूजा की जाएगी।
भृगु ऋषि इसके बाद विष्णु जी के पास वैकुंठ पहुँचे। भगवान विष्णु सो रहे थे। भृगु ऋषि को लगा कि भगवान विष्णु मुझे देखकर सोने का नाटक कर रहे हैं। क्रोधित होकर महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु की छाती पर लात मार दी। लेकिन इससे चौंककर उठे विष्णु जी को क्रोध नहीं आया। बल्कि, उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी और पूछा, “महर्षि, कहीं आपके कोमल पैर पर चोट तो नहीं आई?” विष्णु जी के ऐसा करने पर भृगु ऋषि काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने निर्णय किया कि विष्णु जी ही सबसे श्रेष्ठ देवता हैं।
जिस संस्कृति में भक्त भगवान की परीक्षा ले सकता हो। भगवान से नाराज होकर श्राप दे सकता हो। भगवान को मार भी सकता हो। इतनी सम्यक् समझ, सम्यक् ज्ञान वाले लोग संवेदनशील होते हैं।
रहीम का एक दोहा है, “क्षमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात। का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।
भगवान महावीर अपने त्रिरत्नों में सम्यक् ज्ञान को दूसरे स्थान पर रखते हैं। इससे व्यक्ति अपने जीवन को सन्मार्ग की ओर उन्मुख कर सके।
—-
(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 40वीं कड़ी है।)
—
डायरी के पाठक अब #अपनीडिजिटिलडायरी के टेलीग्राम चैनल से भी जुड़ सकते हैं। जहाँ डायरी से जुड़ अपडेट लगातार मिलते रहेंगे। #अपनीडिजिटिलडायरी के टेलीग्राम चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करना होगा।
—-
अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां…
39. भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में जिन तीन रत्नों की चर्चा की, वे कौन से हैं?
38. जाे जिनेन्द्र कहे गए, वे कौन लोग हैं और क्यों?
37. कब अहिंसा भी परपीड़न का कारण बनती है?
36. सोचिए कि जो हुआ, जो कहा, जो जाना, क्या वही अंतिम सत्य है
35: जो क्षमा करे वो महावीर, जो क्षमा सिखाए वो महावीर…
34 : बौद्ध अपनी ही ज़मीन से छिन्न होकर भिन्न क्यों है?
33 : मुक्ति का सबसे आसान रास्ता बुद्ध कौन सा बताते हैं?
32 : हमेशा सौम्य रहने वाले बुद्ध अन्तिम उपदेश में कठोर क्यों होते हैं?
31 : बुद्ध तो मतभिन्नता का भी आदर करते थे, तो उनके अनुयायी मतभेद क्यों पैदा कर रहे हैं?
30 : “गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास”
29 : कोई है ही नहीं ईश्वर, जिसे अपने पाप समर्पित कर हम मुक्त हो जाएँ!
28 : बुद्ध कुछ प्रश्नों पर मौन हो जाते हैं, मुस्कुरा उठते हैं, क्यों?
27 : महात्मा बुद्ध आत्मा को क्यों नकार देते हैं?
26 : कृष्ण और बुद्ध के बीच मौलिक अन्तर क्या हैं?
25 : बुद्ध की बताई ‘सम्यक समाधि’, ‘गुरुओं’ की तरह, अर्जुन के जैसी
24 : सम्यक स्मृति; कि हम मोक्ष के पथ पर बढ़ें, तालिबान नहीं, कृष्ण हो सकें
23 : सम्यक प्रयत्न; बोल्ट ने ओलम्पिक में 115 सेकेंड दौड़ने के लिए जो श्रम किया, वैसा!
22 : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो
21 : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो?
20 : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है
19 : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है
18 : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है
17 : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं?
16 : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला?
15 : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है?
14 : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है?
13 : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं?
12 : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन
11 : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई?
10 :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है?
9 : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की!
8 : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?
7 : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे?
6 : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है
5 : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा?
4 : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं?
3 : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए!
2 : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा?
1 : भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?