बिक्रम प्रताप, भोपाल मध्य प्रदेश
भारत की महिला पहलवान विनेश फोगाट पेरिस ओलिम्पिक में 50 किलोग्राम वर्ग की कुश्ती प्रतिस्पर्धा के फाइनल में पहुँचने के बावजूद बिना कोई पदक लिए लौटेंगीं। यही नहीं, अपने वज़न वर्ग के सभी पहलवानों की सूची में वे आख़िरी स्थान पर रहेंगी। इसलिए क्योंकि निर्धारित (50 किलोग्राम) से 100 ग्राम अधिक वज़न होने के कारण उन्हें प्रतिस्पर्धा के फाइनल में भाग लेने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है।
वैसे, देखा जाए तो विनेश के साथ वज़न की समस्या कोई नई बात नहीं है। इसी साल अप्रैल में ओलिम्पिक क्वालिफायर के दौरान भी उनके साथ इसी तरह की स्थिति बनी थी। लेकिन, तब जैसे-तैसे मामला सँभल गया। इससे पहले पटियाला में जब नेशनल ट्रायल हुआ था, तब भी विनेश 50 और 53 किलोग्राम दोनों श्रेणियों में खेली थीं। जबकि नियम इसके ख़िलाफ़ है। फिर भी विनेश की ‘ज़िद’ के आगे सबको झुकना पड़ा। उन्होंने 50 किलोग्राम का ट्रायल जीता। हालाँकि 53 किलोग्राम के ट्रायल में अंजू से 0-10 से वे हार गईं थीं।
ध्यान देने वाली बात है कि विनेश पिछले कुछ वर्षों से 53 किलोग्राम वर्ग की पहलवान रही हैं। उनका वजन सामान्य तौर पर 56-57 किलोग्राम के आस-पास रहता है। लेकिन इस बार 53 किलोग्राम वर्ग में ओलिम्पिक का कोटा अन्तिम पंधल ने हासिल कर लिया। इसलिए विनेश ने 50 किलोग्राम की श्रेणी चुनी। मगर जब वे इस वर्ग के ओलिम्पिक क्वालिफायर में हिस्सा लेने उतरीं तो वहाँ भी वज़न कम करने में दिक्कत आई थी। जैसे-तैसे आखिर में बात बनी। हालाँकि ओलिंपिक में ऐसा नहीं हो सका और उन्हें खाली हाथ बाहर होना पड़ा।
विनेश फोगाट को अयोग्य ठहराए जाने से पूरा भारत सकते और सदमे में है। प्रशंसक हैरानी में हैं कि ऐसा कैसे हो गया? महज 100 ग्राम के लिए कैसे अयोग्य ठहरा दिया गया? लेकन प्रशंसक एक बात भूल जाते हैं या शायद उनको पता नहीं होता कि कुश्ती का खेल दो हिस्सों में होता है। एक हिस्सा वो जो हम देखते हैं। मैट पर। जहाँ पहलवान एक-दूसरे को पटखनी दे रहे होते हैं। और दूसरा हिस्सा इससे पहले वज़न करने वाले स्केल पर होता है। यहाँ मामला बिगड़ा तो मैट पर आप कितने क़ाबिल हैं, इसकी एहमियत नहीं रह जाती।
वैसे, सामान्यतः हर वज़न वर्ग के पहलवान निर्धारित सीमा से एक-दो से लेकर छह-सात किलो तक ऊपर वज़नी होते हैं। ज़्यादा वज़न के शरीर के साथ कम वाले वर्ग में हिस्सा लेना ओलिम्पिक के लिए पहलवानों की सबसे अहम रणनीति होती है। अब यहाँ सवाल हो सकता है कि जब वज़न ज़्यादा तो कम वाले वर्ग में कैसे हिस्सा ले सकते हैं? कहानी इसी सवाल के ज़वाब में है। अस्ल में ओलिम्पिक जैसी प्रतियोगिता में जिस दिन किसी पहलवान का मुक़ाबला होता है, उसी सुबह उसका वज़न कराया जाता है। यह प्रक्रिया दो दिन होती है। पहले दिन सभी पहलवानों का वज़न मापा जाता है। दूसरे दिन उन पहलवानों का वज़न मापा जाता है, जो पदक की होड़ में रहते हैं।
तो पहलवान ओलिम्पिक के दौरान वज़न मापे जाने से कुछ दिन पहले से अपना वज़न घटाना शुरू करते हैं। इस दौरान वे काफी कम कैलोरी लेते हैं। जमकर क़सरत करते हैं। शऱीर में पानी की मात्रा भी कम कर लेते हैं। इस तरह जो पहलवान 53-54 किलोग्राम का होता है, वह वज़न मापे जाने के समय तक अपना वज़न 50 किलो से नीचे ले आता है। यह सब प्रशिक्षक और खान-पान विशेषज्ञ के साथ मिलकर किया जाता है।
फिर स्केल पर वज़न करवाने के तुरन्त बाद पहलवान फिर कुछ वज़न वापस हासिल करने की कोशिश में जुटता है। मुक़ाबला शुरू होने तक वह शरीर में पानी की मात्रा बढ़ाता है। अच्छी ख़ुराक़ लेता है। इसके बाद दिन का मुकाबला खत्म होते ही जो पहलवान पदकों की दौड़ में बच जाता है, वह फिर से रातभर में वज़न घटाने की कोशिश करता है। हालाँकि कई बार यह कोशिश काम नहीं आती। विनेश के साथ यही हुआ।
ओलिम्पिक के नियम सख्त हैं। वहाँ रियायत की गुंज़ाइश नहीं होती। किसी की ‘ज़िद’ नहीं चलती। इसीलिए वह अयोग्य ठहरा दी गईं और भारतीय खेल के हिस्से एक कभी न भूलने वाली पीड़ा आ गई।
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(नोट : बिक्रम भोपाल में एक बड़े अख़बार के डिजिटल सेक्शन में खेल सम्पादक हैं। उन्होंने यह लेख फेसबुक पर लिखा है। उनकी अनुमति से इसे #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। डायरी के साथ भी बिक्रम काफी समय से जुड़े हुए हैं। महत्त्वपूर्ण अवसरों पर डायरी के लिए अपने लेख उपलब्ध कराते रहे हैं।)