Statue-Bridge

वो पुलों का गिरना और मूर्तियों का टूट जाना…, थोड़ा सँभलिए ‘सरकार’!

टीम डायरी

अभी सोमवार, 26 अगस्त को जब पूरा देश श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मना रहा था, उसी समय महाराष्ट्र के सिन्धुदुर्ग में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा तेज बारिश और हवाओं की मार से गिरकर चूर हो गई। ज़्यादा नहीं, अभी नौ महीने ही हुए हैं, जब 4 दिसम्बर 2023 को नौसेना दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस प्रतिमा का अनावरण किया था। वीर शिवाजी को हिन्दुस्तान में नौसेना की नींव डालने वाला पहला राज्यप्रमुख माना जाता है। लेकिन सरकारी भ्रष्टाचार ने उनकी ही नींव खोखली कर डाली। 

महाराष्ट्र सरकार में सिन्धुदुर्ग के प्रभारी मंत्री रवीन्द्र चव्हाण ने बताया कि इस प्रतिमा के निर्माण में जो लोहा उपयोग किया गया वह घटिया था। उसमें कुछ ही दिनों में जंग लग गई। यहाँ तक कि उसमें लगे नट-बोल्ट तक जंग खा गए थे। इसीलिए प्रतिमा महज़ 45 किलोमीटर की रफ़्तार से चलने वाली हवा का वेग बर्दाश्त नहीं कर सकी और गिरकर चूर हो गई। उनके मुताबिक, लोकनिर्माण विभाग ने इस बारे में पहले ही नौसेना के अधिकारियों को आगाह किया था। लेकिन उन्होंने समय पर कुछ नहीं किया। 

हालाँकि अब नौसेना और महाराष्ट्र सरकार, दोनों ने ही जाँच के आदेश दिए हैं। मूर्ति के निर्माण और उसकी स्थापना का ठेका उठाने वाले ठेकेदार जयदीप आप्टे के विरुद्ध भी प्राथमिकी दर्ज़ करा दी गई है। अलबत्ता, इससे होगा क्या? इसका ज़वाब किसी के पास नहीं है। क्योंकि बीते कुछ दिन-महीनों में सामने आई यह कोई पहली मिसाल नहीं है, जब भ्रष्टाचार का ऐसा बेशर्म प्रदर्शन हुआ हो। 

मध्य प्रदेश के उज्जैन की घटना किसी को भूली नहीं होगी। वहाँ वर्ष 2022 में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने महाकाल लोक बनवाया। उसी साल अक्टूबर के महीने में प्रधानमंत्री मोदी से इसका उद्घाटन कराया। मगर सात महीने के भीतर ही मई 2023 में महाकाल लोक में लगाई गईं सप्तऋषियों की मूर्तियाँ हवा के झाेंके में उड़कर धराशायी हो गईं। फाइबर की जो थीं, उड़ना ही था उन्हें। हालाँकि शिवराज सरकार ने ‘जनता के पैसे का सदुपयोग’ करते हुए अगस्त-2023 में उन मूर्तियों को उसी रूप में दोबारा लगवा दिया। और अब ख़बर है कि राज्य की मोहन यादव सरकार ने सभी मूर्तियाँ पत्थर की बनवाकर लगाने का आदेश दिया है। 

इसी तरह और देखिए। भ्रष्टाचार की सड़कें उखड़ने की बात तो पुरानी हो चुकी है। अब नदियों पर बने पुल भरभराकर गिरने लगे हैं। वह भी एक, दो नहीं। बिहार में इसी साल जून-जुलाई के महीनों में महज 19 दिनों के अन्तराल से 13 पुल ढहकर नदियों में समा गए। अगस्त महीने में तो वहाँ गंगा नदी पर बन रहा पुल तीन साल के अन्तराल में तीसरी बार गिर गया। यह पुल बीते 10 साल से बन रहा है।

लेकिन यहाँ भी अभी रुकना नहीं है। अगस्त की पहली तारीख़ को ख़बर आई कि लगभग 971 करोड़ रुपए की लागत से बनी नई संसद पहली ही बारिश की मार नहीं झेल पाई। उसकी छत से पानी टपकने लगा। जून की 28 तारीख़ को मालूम हुआ कि नई दिल्ली अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्‌डे की नवनिर्मित छत (कैनोपी) का एक हिस्सा गिर गया। उस हादसे में एक व्यक्ति की मौत भी हो गई। इसी समय के आस-पास ऐसी ही घटना मध्य प्रदेश के जबलपुर हवाई अड्‌डे पर भी हुई। वहाँ भी नवनिर्मित कैनोपी गिर गई थी। 

और ज़रा ग़ौर कीजिए। ऊपर जितने उदाहरण दिए गए हैं, उनमें से अधिकांश मामलों में निर्माण का लोकार्पण या फिर शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों ही हुआ है। बीते दो लोकसभा चुनावों के दौरान तो उन्होंने ऐसे लोकार्पण और शिलान्यास धुआँधार अन्दाज़ में किए हैं। निश्चित रूप से इसके पीछे उनकी और केन्द्र सरकार की मंशा जनता को यह सन्देश देने की होगी कि देखिए, हम काम सिर्फ़ शुरू नहीं करते, समय पर पूरे भी करते हैं। कालान्तर में इस तरह की कार्यशैली से जनता के मन में प्रधानमंत्री की निश्चित ही एक छवि भी बनी होगी, जिसका उन्हें अब तक पर्याप्त लाभ भी मिला है। लेकिन अब… उन्हें सँभलना होगा।  

प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ध्यान रखे कि पुलों का यूँ ढह जाना, अस्ल में ‘जनता और सरकारों के बीच का पुल’ टूटने के सिलसिले की शुरुआत भी हो सकती है। मूर्तियों का ऐसे छिन्न-भिन्न हो जाना, दरअस्ल जनता के मन में बनी ‘सरकार की मूर्ति’ के दरकने, बिखरने की भी शुरुआत हो सकती है।

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