toxic work culture

ये कहना झूठ है कि जहाँ लड़ाई हो रही है, काम वहीं हो रहा है!

निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश

‘जिस जगह काम का माहौल बहुत तनावपूर्ण या कहें कि जहरीला होता है, अस्ल में काम वहीं हो रहा होता है।’ ऐसी मान्यता कुछ ‘महान् बुद्धजीवियों’ ने बना रखी है। जबकि यह पूरी तरह ग़लत है। 

दरअस्ल, तनावपूर्ण माहौल वाले कार्यस्थल की छवि इस तरह की बना दी जाती है कि वहाँ सब लोग बहुत मेहनत से काम किया करते हैं। सभी लोग दिन में 18-18 घंटे अपने कार्यस्थल पर देते हैं। जबकि यह भी बिल्कुल बक़वास बात है। बेमतलब है। मैं बताता हूँ, कैसे। 

अगर किसी कार्यस्थल का ऊपरी नेतृत्त्व बददिमाग़ है, तो वह अमूमन बदतमीज़ भी होता है। अपने साथियों से दुर्व्यवहार करना, ग़ाली-ग़लौच करना, उसके लिए आम बात होती है। वह ऐसे लक्ष्य तय करता है, जो वास्तविक और व्यावहारिक नहीं होते। उसे पता होता है कि ये लक्ष्य पाए नहीं जा सकते। फिर भी वह इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मातहत साथियों पर दबाव बनाता है। या कहें कि डंडे से उन्हें हाँकता है। 

नेतृत्त्व के क्रम में ऊपर से नीचे तक यही सिलसिला चलता रहता है। पूरा कार्यस्थल ऐसे प्रेशर कुकर की तरह हो जाता है, जो कभी भी फट पड़ेगा। एक सामान्य कर्मचारी ऐसी जगह पर अपनी किसी मज़बूरी के कारण काम भी करता रहता है, लेकिन तभी तक जब तक बात उसकी बर्दाश्त के बाहर न हो। मगर जैसे ही उसकी बर्दाश्त का बाँध टूटा, वह या तो ज़वाबी हमलावर हो जाता है या फिर ऐसा कार्यस्थल ही छोड़ देता है। 

ऐसे कार्यस्थलों की एक और विशेषता होती है। बदतमीज़ और बददिमाग़ नेतृत्त्व के इर्द-गिर्द हमेशा कुछ ख़ास क़िस्म के लोगों की घेराबन्दी रहती है। ये ऐसे लोग होते हैं, जो करते-धरते कुछ ख़ास नहीं हैं, लेकिन ‘बॉस’ की ‘हाँ में हाँ’ हर समय मिलाते रहते हैं। थोड़े सम्मानजनक शब्दों में ऐसे लोगों को ‘यस मैन’ कहा जाता है। जबकि सामान्य बोलचाल की भाषा में ये लोग ‘चापलूस’ ही कहलाते हैं। 

ऐसे कार्यस्थलों में आपसी खींचतान वाली राजनीति भी ख़ूब होती है। लोग एक-दूसरे की सार्वजनिक निन्दा से भी नहीं चूकते। पीठ पीछे एक-दूसरे की बुराइयाँ करते रहते हैं। बैठकों के दौरान एक-दूसरे की ख़ामियाँ निकालकर नीचा दिखाने की क़ोशिश करते हैं। एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते हैं। 

इतना ही नहीं, अपनी जान बचाने के लिए लोग धोखाधड़ी करने से भी नहीं चूकते। निर्धारित लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाने के बावज़ूद यह दिखाने के लिए कि उन्होंने लक्ष्य पूरे कर लिए हैं, वे आँकड़ों में हेर-फेर करते हैं। ज़्यादा कमाई करने और दिखाने के लिए ग़ैरकानूनी तथा अनैतिक तौर-तरीक़े अपनाते हैं। ग़ौर कीजिए कि बायज़ू कम्पनी के ढेर हो जाने के पीछे ठीक इसी तरह के कारण रहे हैं। 

यह सब निश्चित तौर पर बहुत ख़तरनाक होता है। किसी संस्थान या संगठन के लिहाज़ से भी और उसके कर्मचारियों के लिए भी। संस्थान या संगठन को नुक़सान यह होता है कि उसकी उत्पादकता हमेशा तय लक्ष्यों से कम रहती है। कभी बड़े पैमाने पर उसे भारी नुक़सान भी उठाना पड़ जाता है। जबकि कर्मचारी हमेशा इस तरह के कार्यस्थल में तनाव और अवसाद का शिकार रहते हैं।   

तनावपूर्ण माहौल वाले कार्यस्थल की वास्तविक सच्चाई यही है। इसीलिए यह कहना पूरी तरह ग़लत है कि ‘जिस जगह काम का माहौल तनावपूर्ण या कहें कि जहरीला होता है, अस्ल में काम वहीं हो रहा होता है।’ 

क्या लगता है?

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निकेश का मूल लेख

Work happens only at places where culture is toxic!!

This is a statement some “genius 🤔 ” had made. Totally wrong!!

The dynamics of a toxic culture workplace becomes such that it “seems” everyone is working hard; everyone is giving 18 hours a day but in reality most of it is not adding any value.

Let me explain:

When leadership is toxic they are abusive as well. These leaders set unrealistic targets fully knowing that they are not achievable and then use stick (abusive behavior) to meet those targets.

The next layer of leadership will invariably pass on this to their next layer and so forth. Before you know entire organization is working in a boiler room and everyone is abusing everyone else.

People will be able to tolerate this for sometime but soon their survival instinct will kick-in and that’s where the downfall starts.

You will find a coterie around abusive leaders. A group of people who can’t perform but somehow want to survive so they become “yes” man aka चापलूस

You will also see high level of politics in such culture. People will badmouth each other in public. Will try to put down people in meetings; blame games and everything else which causes stress!!

One more thing happens in such environment which is dangerous – fudging.

People may give wrong sales numbers just to meet targets. They may use illegal or unethical practices to book revenue. (This is exactly what happened at Byju’s)

It’s fake to say Wherever there is fighting, work is happening only there.)

In reality people are just pretending and somehow trying to survive!

That’s the reality of toxic culture work places!

Thoughts? 

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(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

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