निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग बड़ी संख्या में नौकरियाँ क्यों छोड़ रहे हैं? 

निकेश जैन, बेंगलुरु, कर्नाटक से, 18/10/2021

भारत के बड़े समाचार चैनल में काम करने वाली युवा पत्रकार सौम्या सिंह ने अभी ही नौकरी छोड़ी है। वैसे, यह कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन सोशल मीडिया (LinkedIn) पर उन्होंने नौकरी छोड़ने की सूचना देते हुए जो लिखा, वह ज़रूर बड़ी बात है। सौम्या ने लिखा, “मैंने नौकरी के साथ ज़हरीला वातावरण भी छोड़ दिया है।.. अब मैं बहुत राहत महसूस कर रही हूँ।” इसके बाद उनके जानने वालों ने उन्हीं के अन्दाज़ में उन्हें बधाइयाँ दीं। हालाँकि यह कोई इक़लौता उदाहरण नहीं है। … क़रीब 70 फ़ीसद लोग ऐसे ही कारणों से और बेहतर विकल्पों के लिए इस्तीफ़ा देने को तैयार हैं। 

बेहतर विकल्प क्या? पैसा और पेशेवर तरक्क़ी नहीं। बल्कि काम का बेहतर वातावरण, तनाव कम, परिवार तथा अपने शौक-मनोरंजन के लिए अधिक वक़्त मिलने की गुंज़ाइश और सबसे अहम ‘मुझे अहमियत कितनी दी जा रही है’, ये भाव। 

ये जो आख़िरी विकल्प है न, अहमियत वाला, यह आज पूरी दुनिया में एक आन्दोलन की वज़ह बना हुआ है। इस आन्दोलन का नाम है, ‘ग्रेट रेज़िगनेशन’ (Great Ressignation)। हिन्दी में इसे ‘बड़े पैमाने पर त्यागपत्र सौंपने का अभियान’ कह सकते हैं। सम्भव है, बहुत से लोगों ने इस बारे में अभी सुना न हो। इस किस्म के लोग थोड़ा गूगल करें। उन्हें पलकें झपकने मात्र के समय में लाखों सूचनाएँ और जानकारियाँ इस बारे में मिल जाएँगीं। 

इन्हीं जानकारियों में एक ये भी है कि कोरोना संक्रमण के प्रसार के बाद दुनियाभर में निजी क्षेत्र की नौकरियाँ छोड़ने वालों की तादाद अचानक बढ़ गई है। अमेरिका जैसे तमाम विकसित देशों में लोग अपने कार्यस्थलों पर लौटने से इंकार कर रहे हैं। अमेरिका में जुलाई महीने में ही 43 लाख से अधिक लोग इस्तीफ़े दे चुके हैं।  यह आँकड़ा असामान्य है। स्थिति ये हो गई है कि अमेरिका की कई कम्पनियों में कर्मचारियों की कमी हो गई है। वे अधिक वेतन-भत्ते देकर कर्मचारियों को रोकने, आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं। ऐसे में सवाल हो सकता है कि आख़िर इस स्थिति का कारण क्या है?

ज़वाब सिर्फ़ एक है। लोगों को लग रहा है कि जहाँ वे नौकरी कर रहे हैं, वहाँ उन्हें अहमियत नहीं दी जा रही। कोरोना संक्रमण के दौर में जब उन्होंने अपने घरों से काम किया, तब उन्हें दफ्तर की असहज स्थितियों और घर जैसे किसी सहज वातावरण में काम करने के बीच फ़र्क अधिक समझ आया। नतीज़ा, अब इस तरह सामने आ रहा है।

कर्मचारियों का प्रबन्धन देखने वाले विभाग (Human Resource) और उसके कर्मचारियों के तमाम तौर-तरीके, तरक़ीबें ध्वस्त होती दिख रही हैं। जानते हैं क्यों? वे एक मूलभूत बात नहीं समझ पा रहे हैं। काम करने वालों को पैसे और पद से अधिक अहमियत की आकांक्षा है। वे चाहते हैं, उनकी बात सुनी जाए। उनकी विचारों, भावनाओं को महत्त्व दिया जाए।   

अपने आप को ‘बड़ा और बहुत बड़ा’ समझकर बैठे लोग अगर इस मूल-मंत्र को समझना चाहें तो ये कोई बहुत जटिल नहीं है। समझने और अमल करने के लिए।
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More than 70% people would resign today if a choice was given to them. They would resign for better working conditions, less stress, more free time for family and other activities, to feel more valued elsewhere and of course in some cases for growth.

That’s what current “Great Resignation” movement is telling us. If you heard this term for the first time then sorry you are not reading the news! Just search “Great Resignation” and read more about it.

Post pandemic there is a sudden surge in resignations. People have refused to go back to work in US and few other countries. In July alone 4.3 million people resigned which is much higher than the usual number.

And it’s not just because of pay, but because they don’t feel valued at work!

That’s a huge failure on the part of our Employers. All our HR management theories should be thrown in garbage because we failed to understand the most fundamental need of an employee which was to feel “valued”.

We were just too busy bringing efficiency, increasing productivity, reducing cost and improving bottom line!

But in this process we forgot to check with our employees whether they were happy or not. The result?

“Great Resignation”.

And now we have shortage of workers in US. So much so that companies are offering extra perks and bonuses to attract employees!

Simple mantra – Value your employees. Make them your partners and even after that if they want to quit, help them find a better matching job! It’s as simple as that.
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(निकेश मूल रूप से इन्दौर, मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। सूचना-तकनीक के क्षेत्र में लम्बे करियर से समयपूर्व विराम लेकर इन्होंने एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के नाम से स्टार्टअप कंपनी शुरू की है। यह शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार के ज़रिए नए आयाम गढ़ रही है। उनके लेख का ऊपर हिन्दी में भावानुवाद दिया गया है। थोड़े से संशोधनों के साथ। उसके नीचे अंग्रेजी में मूल लेख है।)

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