क्या हम जानते हैं, भारत में सहकारिता का प्रयोग कब से शुरू हुआ?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 15/10/2021

ब्रिटिश शासन ने भारतीय किसानों को कुछ परेशानियों से मुक्त किया तो कुछ नई उसके सामने खड़ी कर दीं। इसने आंतरिक अव्यवस्था को खत्म किया। लगान के तौर पर ज़बरदस्ती ज़्यादा पैसे ऐंठने के चलन को भी रोका। इन बुराईयों ने किसानों की उपज को ख़तरे में डाल दिया था। अंग्रेजी शासन ने किसानों को मौका दिया कि वे अपने अतिरिक्त उपज भंडार का ठीक से निस्तारण कर सकें। नगदी फसलें उगा सकें। जमीन पर पट्‌टेदारों के अधिकारों को मान्यता देने का भी लाभ हुआ। लेकिन कुछ अन्य घटनाक्रमों का ग्रामीण आबादी पर विपरीत प्रभाव भी पड़ा। जैसे…

आंतरिक सुरक्षा की स्थिति बेहतर होने से बुवाई का दायरा बढ़ा। उत्पादन भी। लेकिन इससे आबादी भी तेजी बढ़ी। अनुमान के मुताबिक 1881 से 1931 के बीच लगभग 10 करोड़ जनसंख्या बढ़ गई। इस बढ़ती आबादी का स्वाभाविक तौर पर भूमि और कृषि व्यवसाय पर भी गंभीर दबाव पड़ा।
अतिरिक्त उपज के ठीक तरह से निस्तारण की सुविधा मिलने और जमीन की सुरक्षा तथा उसका मूल्य बढ़ने से किसान समृद्ध हुए। इससे उनमें फिज़ूलखर्ची तथा ज्यादा कर्ज़ लेने की आदतें पड़ गईं। 
लोक अदालतों की स्थापना से महाजनों, सूदखोरों को फ़ायदा हो गया। इन अदालतों की आड़ से  उन्होंने पट्‌टेदार किसानों पर पकड़ मजबूत की। इससे बेवजह की मुकदमेबाजी बढ़ी और ख़र्च भी। 
महाजनों, सूदखोरों और बैंकिंग वर्ग ने कृषि उपज की विपणन (मार्केटिंग) का काम अपने हाथ में ले लिया। यह किसानों का सबसे बड़ा नुकसान था।  

ऊपर बताए गए इन तीनों क्षेत्रों में सरकार की गतिविधियाँ सीमित थीं। इसकी एक वजह पैसों की कमी थी। जबकि दूसरी, विशेष रूप से 20वीं सदी में, राष्ट्रीय आंदोलन के तेज होने से जुड़ी थी। जहाँ तक ‘प्राकृतिक अक्षमताओं’ का मामला है तो पानी की समस्या बड़ी थी। ब्रिटिश ताज के हाथ में जब हिंदुस्तान की हुक़ूमत आई तो सिंचाई संबंधी काम शुरू हुए। उनका विस्तार हुआ। इसका असर ये हुआ कि भारत से ब्रिटिश शासन की समाप्ति तक लगभग 50 लाख एकड़ जमीन तक सिंचाई की सुविधा पहुँच चुकी थी। यह उस समय कुल कृषि क्षेत्र का लगभग एक चौथाई हिस्सा था। वहाँ सरकार द्वारा बनावाए गए बाँधों, कुओं, नहरों, आदि की मदद से पानी का पहुँचाया जा रहा था। सामाजिक मामलों में सरकार ने किसान को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए सिलसिलेवार कानून बनाए। हालाँकि इनका कुछ असर भी हुआ लेकिन सही मायने में ये लोगों की, समाज की सोच को बहुत ज़्यादा बदल नहीं सके। 

ग्रामीण आबादी पर कर्ज़ का बोझ उस समय काफी था। साल 1930 तक अनुमानित 67 करोड़ 50 लाख पाउंड के आस-पास। इसे देखते हुए किसानों को सूदखोरों, महाजनों चंगुल से निकालने के लिए सरकार ने प्रयास किए। लेकिन वे बहुत सफल नहीं हुए। उस दौर में जर्मनी और इटली में कृषि क्षेत्र की सहकारी समितियों का एक प्रयोग चल रहा था। तो सोचा गया कि शायद इस तरीके को अपनाने से भारत में कोई समाधान निकले। इस तरफ कोशिश भी गई और 1904 में एक कानून के जरिए सहकारी समितियों से लोगों का परिचय कराया गया। हालाँकि सरकार इससे ज़्यादा करने के मूड में नहीं थी। वह तो सिर्फ मार्गदर्शन और सहयोग ही देने का इरादा रखती थी। वह भी माँगे जाने पर। अलबत्ता, कुछ अधिकारियों ने अपने स्तर पर दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने सहकारी समितियों के विस्तार के लिए प्रयास किए। इसका नतीज़ा ये हुआ कि ब्रिटिश शासन के अंत तक देश में सहकारी समितियों का उल्लेखनीय विस्तार हो चुका था। वे किसानों को कर्ज़ भी मुहैया करा रही थीं। 

सन् 1947 तक देश में लगभग एक लाख सहकारी समितियाँ थीं। इनमें करीब 40 लाख सदस्य थे। लेकिन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कर्जमुक्त करने का उद्देश्य फिर भी पूरा नहीं हो सका। इसका प्रमुख कारण ये था कि गाँवों में ज़्यादातर कर्ज सामाजिक उद्देश्यों से लिया गया था, न कि आर्थिक और व्यावसायिक। इसी बीच 1930 में दुनियाभर में बड़ी आर्थिक मंदी का दौर भी आया। तब इसका असर भारत पर भी हुआ और बड़ी संख्या में सहकारी समितियाँ असफल हो गईं क्योंकि उनके कर्ज़ की वापसी धीमी हो गई थी। इसके बावज़ूद इन समितियों के जरिए कम से कम इतना तो हुआ कि ग्रामीण भारत की स्थिति में बदलाव का एक रास्ता तैयार हो गया, जो आज़ादी के बाद भी काम आया। 

इस तरह ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय कृषि से जुड़ी अहम समस्याओं का, मोटे तौर पर कोई उल्लेखनीय समाधान निकल नहीं सका था। बढ़ती आबादी की वज़ह से खाद्यान्न की माँग अधिक हो रही थी। जबकि उत्पादन उसकी तुलना में कम हो रहा था। कर्ज़दारी कम करने के प्रयास भी सफल नहीं हुए थे। इसकी बड़ी वज़ह ये रही कि समस्याओं के मूल कारणों को ख़त्म करने के लिए जरूरी गंभीरता और संवेदनशीलता नहीं थी। सामाजिक व्यवस्था से जुड़े कारण भी थे, जो सरकार के दायरे से बाहर थे। हालाँकि यूरोप के व्यापारियों ने यह साबित किया था कि सही प्रबंधन और आधुनिक तरीकों से ज़मीन की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। बाग़ान उद्योग में उन्होंने इसके सफल प्रयोग किए थे। लेकिन चूँकि भारत के परंपरागत कृषि क्षेत्र में उन्हें मुनाफ़े की ज़्यादा संभावना नहीं दिख रही थी, इसलिए उन्होंने उसमें दिलचस्पी नहीं ली। नतीजा ये हुआ कि भारतीय कृषि क्षेत्र की दशा और दिशा में विशेष बदलाव दिखाई नहीं दिया।

(जारी…..)
अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
55. भारत में कृषि विभाग की स्थापना कब हुई?
54. अंग्रेजों ने पहली बार लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र कितनी तय की थी?
53. ब्रिटिश भारत में कानून संहिता बनाने की प्रक्रिया पहली बार कब पूरी हुई?
52. आज़ादी के बाद पाकिस्तान की पहली राजधानी कौन सी थी?
51. आजादी के आंदोलन में 1857 की क्रांति से ज्यादा निर्णायक घटना कौन सी थी?
50. चुनाव में मुस्लिमों को अलग प्रतिनिधित्व देने के पीछे अंग्रेजों का छिपा मक़सद क्या था?
49. भारत में सांकेतिक चुनाव प्रणाली की शुरुआत कब से हुई?
48. भारत ब्रिटिश हुक़ूमत की महराब में कीमती रत्न जैसा है, ये कौन मानता था?
47. ब्रिटेन के किस प्रधानमंत्री को ‘ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने वाला’ माना गया?
46. भारत की केंद्रीय विधायी परिषद में सबसे पहले कौन से तीन भारतीय नियुक्त हुए?
45. कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल का डिज़ाइन किसने बनाया था?
44. भारतीय स्मारकों के संरक्षण को गति देने वाले वायसराय कौन थे?
43. क्या अंग्रेज भारत को तीन हिस्सों में बाँटना चाहते थे?
42. ब्रिटिश भारत में कांग्रेस की सरकारें पहली बार कितने प्रान्तों में बनीं?
41.भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
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12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
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1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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