भारत ब्रिटिश हुक़ूमत की महराब में कीमती रत्न जैसा है, ये कौन मानता था?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 3/10/2021

ऐसे ही एक उल्लेखनीय ब्रिटिश विचारक-प्रशासक थे, अलफ्रेड लॉयल। वे अप्रत्यक्ष शासन प्रणाली के समर्थक विचारों के प्रवक्ता थे। उन्होंने और उनके जैसे अन्य लोगों ने पूरे दिल से स्टीफन और स्ट्रेची के विचारों को अपनाया। बस एक फ़र्क था कि लॉयल राजनीतिक अधिकारों को प्रयोग में लाने के लिए ताक़त और सेना के इस्तेमाल के पक्षधर नहीं थे। वे न दूसरे देशों के समाजों के पश्चिमीकरण के पक्ष में थे और न ऐसी राजनीतिक संस्थाएँ उन पर थोपने के, जिनका मूल स्थानीय परम्पराओं में न हो। उनका मानना था कि पश्चिमी सभ्यता का हिंदुस्तान पर असर ये होना था कि भारतीय समाज के बंध खुल जाएँ। उनका कहना था, “हम (अंग्रेज) भारतीय समाज की पारंपरिक माँगों और दबाव आदि से अनभिज्ञ व उदासीन हैं। सभी शक्तियों व अधिकारों के केंद्रित होने से अति-केंद्रित अलगाव की स्थिति बन रही है। इसमें न नींव मज़बूत है, न पर्याप्त समर्थन है।” लॉयल मानते थे कि स्थानीय लोगों की भावनाओं और अंग्रेजों की ‘सभ्य बनाने वाली गतिविधियों’ के बीच मध्य-मार्ग होना चाहिए। साथ ही अंग्रेजों को स्थानीय लोगों की पारंपरिक आस्थाओं और संस्थानों आदि के प्रति सच्चे सम्मान का भाव रखना चाहिए। अगर ये नहीं हुआ तो विदेशी शासकों के प्रति असंतोष का ध्रुवीकरण होना तय है। उन पर हमले भी हो सकते हैं। 

लॉयल के मुताबिक भारत के शिक्षित वर्ग की वैध अभिव्यक्तियों को प्रदर्शन की गुंजाइश दी जानी चाहिए। इस तरह उन्होंने अपेक्षाकृत शांत शासन का प्रस्ताव दिया। उन्होंने आक्रामक कानून बनाने का रास्ता छोड़ा। इससे 1885 के बाद भारतीय प्रशासन में एक तरह की जड़ता भी देखी गई। इसी दौरान 1885 में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। इसके बाद भारत में राष्ट्रवाद की भावना अधिक जोर पकड़ने लगी। कांग्रेस ने सरकार पर दबाव बनाया कि वह वायसराय की कार्यकारी परिषद में सुधार करे। सरकार की भी भावना थी कि कुछ सुधार न सिर्फ़ जरूरी बल्कि उचित भी हैं। अगर ये नहीं किए गए तो जैसा तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन ने कहा था, “ब्रिटेन में जल्द भारतीय भी वैसा ही ‘होम रूल आंदोलन’ शुरू कर सकते हैं, जैसा आयरलैंड के लोग कर रहे हैं। भारत के आंदोलनकारियों को संसद के आयरिश और अतिवादी सदस्यों का समर्थन तथा संरक्षण मिल सकता है।” 

ब्रिटेन में रूढ़िवादियों की नई सरकार बनने के बाद 1892 में नया ‘परिषद अधिनियम’ पारित किया गया। इसे उदारवादी विपक्ष का भी पूरा समर्थन हासिल था। यह अधिनियम राष्ट्रवादी माँगों को कुछ हद तक तुष्ट करने की मंशा से लाया गया था। नए कानून के तहत वायसराय की केंद्रीय परिषद को तो नहीं लेकिन प्रांतीय परिषदों को अपने प्रशासन, बजट आदि से जुड़े मसलों पर चर्चा तथा फैसले का अधिकार मिल गया। साथ ही इन परिषदों में बहुसंख्य ग़ैर-आधिकारिक सदस्यों की नियुक्ति नगरीय निकाय, व्यावसायिक प्रकोष्ठ, धार्मिक समितियों की सिफारिशों से करने का रास्ता भी साफ हो गया। यह प्रक्रिया बहुत-कुछ चुनाव जैसी ही थी। यह कानून व्यावहारिक राजनीति की जीत जैसा था। इस कानून को पारित कराने में जिस तरह रूढ़िवादियों और उदारवादियों ने हाथ मिलाया, उसमें भी एक संकेत था। यह कि उदारवादी अब उन चीजों को स्वीकार कर रहे थे, जो साम्राज्य की मज़बूती के लिए आवश्यक थीं।

वैसे, हिंदुस्तान के ब्रिटिश शासकों में शक्तिशाली प्रशासनिक व्यवस्था के आखिरी बड़े समर्थक लॉर्ड कर्जन (1898-1905) थे। वे जब भारत आए तो प्रशासन हाथी जैसा विशालकाय हो चुका था, “आलीशान, ताक़तवर, बौद्धिकता के उच्च स्तरों वाला। लेकिन चाल-ढाल में शाही ढीलापन।” कर्जन नए उद्देश्य के नाम पर पुराने उद्देश्यों को नए कलेवर में लपेटकर लाए थे। स्टीफन और स्ट्रैची उनके मार्गदर्शक थे। उन्हीं की तरह कर्जन मानते थे कि हिंदुस्तान ब्रिटिश हुक़ूमत की महराब में सबसे कीमती रत्न की तरह जड़ा है। उनका उद्देश्य भारतीय शासन व्यवस्था में ऐसे रद्दोबदल करना था कि देश को आधुनिक विश्व की तरफ आगे बढ़ाया जा सके। उनका दावा था, “मेरे प्रशासन का मूलभूत कर्त्तव्य आगे की ओर देखना है। गुजरते वक्त की जरूरतों को देखने का नहीं, देश की स्थायी आवश्यकताओं को समझना है। महज आज के लिए नहीं, बल्कि भविष्य के लिए भी निर्माण करना है।” उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को पहले जैसे स्वरूप में लौटाने की कोशिश की। सुधारों के पहले कालखंड की रचनात्मक ऊर्जा पुनर्जीवित करने की कोशिश की। वे मानते थे कि भारतीय लोगों की किस्मत अंग्रेजों की दूरदर्शिता के अधीन है।   

कर्जन अतीत की तमाम घटनाओं के लिए ईश्वरीय मंशा को जिम्मेदार मानते थे। यह विचार वैसे था तो कृत्रिम लेकिन उनके जैसा सोचने वालों के लिए संतोषजनक भी था। उन्होंने 1903 में एक सभा में कहा था, “अगर मैं सोचूँ कि इस देश में रह रहे अंग्रेज, स्कॉटलैंड और आयरलैंड के लोग, रेत में इबारत लिख रहे हैं। ऐसी, जो अगली लहर में मिट जाने वाली है। अगर मैं महसूस करूँ कि हम उच्च उद्देश्य और कानून के पालन के लिए भारत के हित में काम नहीं कर रहे हैं। तो मैं भारत और इंग्लैंड को जोड़ने वाली कड़ी को एक झटके में टूटता भी देखता हूँ। लेकिन अगर मैं इस देश के भविष्य पर भरोसा करता हूँ। अपनी ‘नस्ल’ के लोगों की क्षमता पर विश्वास करता हूँ कि वे इस देश को वहाँ पहुँचा सकते हैं, जहाँ वह अभी नहीं पहुँचा है, तो मैं साहस बनाए रखूँगा। आगे बढ़ता रहूँगा।” 

वैसे, कर्जन की मानसिकता भारत के नव-बुद्धिजीवी वर्ग को किनारे लगाने वाली थी, जो भारतीय समुदाय के नेतृत्व का दावेदार था। हालाँकि भारतीय राजे-महाराजाओं को मान्यता देना उनकी मज़बूरी थी क्योंकि वे अधिकांशत: अंग्रेजों के मददगार थे। वहीं, कृषक समुदाय उनके सुधारवादी एजेंडे में सबसे ऊपर था क्योंकि इस वर्ग की स्थिति में सुधार से ब्रिटिश शासन के औचित्य को तार्किकता मिलती थी। कर्जन  ने बायकुला क्लब (मुंबई) में दिए अपने भाषण में कहा भी था, ‘जब मैं भारत के नस्लों/समुदायों की मदद करने की बात सोचता हूँ। उनकी ज़रूरतों के बारे में विचार करता हूँ, तो मेरी निगाहें बड़े फलक पर टिक जाती हैं। वह, जो देश के कृषक समुदाय से संबद्ध है, जो भारत के असल लोग हैं।” 
(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
47. ब्रिटेन के किस प्रधानमंत्री को ‘ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने वाला’ माना गया?
46. भारत की केंद्रीय विधायी परिषद में सबसे पहले कौन से तीन भारतीय नियुक्त हुए?
45. कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल का डिज़ाइन किसने बनाया था?
44. भारतीय स्मारकों के संरक्षण को गति देने वाले वायसराय कौन थे?
43. क्या अंग्रेज भारत को तीन हिस्सों में बाँटना चाहते थे?
42. ब्रिटिश भारत में कांग्रेस की सरकारें पहली बार कितने प्रान्तों में बनीं?
41.भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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