ए. जयजीत, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 30/9/2021
सरकार ने अपने एक भाषा अधिकारी को बर्ख़ास्त कर दिया। इस अधिकारी का क़सूर केवल यह था कि उसने एक अनुवाद करते समय ऐसी हिन्दी लिख दी कि दिमाग़ पर थोड़ा जोर देने से वह समझ में आ गई थी। इसलिए हिन्दी अधिकारियों और भाषा अधिकारियों को लज्जित करने वाले इस अक्षम्य अपराध को गम्भीरता से लेते हुए उसे तुरन्त नौकरी से हटाने के निर्देश दे दिए गए।
इस सम्बन्ध में एक वरिष्ठ अफ़सर ने बताया, “इस अधिकारी ने समझ में आने वाली हिन्दी लिखकर सेवा शर्तों का उल्लंघन किया है। सेवा शर्तों में भाषाधिकारियों, हिन्दी अधिकारियों और अनुवादकों के लिए हिन्दी लिखने को लेकर काफी सख्त नियम हैं। नियमानुसार हर अधिकारी से ऐसा हिन्दी लेखन अपेक्षित है, जिसे इंसान तो क्या, भगवान भी न समझ सकें। लेकिन इस अधिकारी ने समझ योग्य हिन्दी लिखकर भारी लापरवाही बरती है।”
वरिष्ठ अधिकारी ने यह कहते हुए इस हिन्दी अफसर का नाम बताने से इंकार कर दिया कि उसे उसका नाम लेने में भी अब शर्म महसूस हो रही है। उन्होंने इस बात पर भी अफ़सोस जताया कि इस अफ़सर ने समझ में आने वाली हिन्दी लिखते समय अन्य हिन्दी अधिकारियों और भाषा अधिकारियों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। कि इससे उनकी प्रतिष्ठा को कितना नुकसान पहुँचेगा।
क्या लिखा था उस हिन्दी अफ़सर ने? हमें उसके द्वारा लिखित दो-चार पंक्तियाँ मिल गईं। पढ़ी जा सकती हैं..
“नीतियों और कार्यक्रमों को एक विश्व स्तरीय दूरसंचार बुनियादी ढांचे बनाने के क्रम में आईटी आधारीत क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के कम से कम लागत के आधार पर की जरूरत आवश्यकताओं को पूरा करने की बूनियादी लक्ष्य द्वारा निर्देशित कर रहे हैं।”
(वरिष्ठ अधिकारियों ने इन तीन लाइनों की जाँच के बाद पाया कि यह भाषा हिन्दी की मान्य जटिलताओं पर खरी नहीं उतरती। साथ ही अनुवादक ने कई जगहों पर सही वर्तनी का इस्तेमाल भी नहीं किया है। यह हिन्दी सेवा शर्तों का खुला उल्लंघन है।)
लिहाज़ा बर्ख़ास्त करने का आदेश। इस आदेश की प्रति भी हमें मिली है। आदेश और उसका भावार्थ पढ़ने लायक है…
“आपके हिंदी की ओर लापरवाही के कारण आप एक अधिकारी के रूप में जारी रखने के लिए सभी अधिकार खो चुके हैं। आपने अपनी स्पष्ट भाषा से अतिरिक्त सभी हिंदी अधिकारी को शर्मिन्दा किया। इस प्रकार, हम आपको एक हिंदी अधिकारी के रूप में नौकरी से समाप्त कर देंगे।”
(भावार्थ : हिन्दी के प्रति लापरवाही बरतने के कारण आपने हिन्दी अधिकारी के तौर पर सेवा में रहने का अधिकार खो दिया है। आपने स्पष्ट हिन्दी लिखकर अन्य सभी हिन्दी अधिकारियों को शर्मिन्दा किया है। इस आधार पर हम हिन्दी अधिकारी के रूप में आपकी सेवाएँ समाप्त कर रहे हैं।)
(विशेष नोट : यह कपोल-कल्पित हास्य व्यंग्य है। इसका मक़सद किसी की मानहानि करना नहीं है। बल्कि विभिन्न सरकारी राजभाषा विभागों में अनुवाद के स्तर की ओर ध्यान दिलाना है। वह भी स्वस्थ मनोरंजन के साथ।)
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(ए. जयजीत देश के चर्चित ख़बरी व्यंग्यकार हैं। उन्होंने #अपनीडिजिटलडायरी के आग्रह पर ख़ास तौर पर अपने व्यंग्य लेख डायरी के पाठकों के उपलब्ध कराने पर सहमति दी है। वह भी बिना कोई पारिश्रमिक लिए। इसके लिए पूरी डायरी टीम उनकी आभारी है।)