भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 25/9/2021

अंग्रेज भारतीय समाज को नैतिक और राजनैतिक रूप से अपनी सुविधानुसार बदलना चाहते थे। उनके इन प्रयासों ने भारत की परंपरागत सामाजिक व्यवस्था को झिंझोड़ दिया था। परंपराओं से लगाव रखने वाला वर्ग ख़ासा असंतुष्ट हो चुका था। यह असंतोष आख़िरकार 1857 के विद्रोह के रूप में सामने आया। उस समय हिंदुस्तान के वायसराय लॉर्ड डलहौजी थे। उनकी इच्छा थी कि जितना हो सके, छोटे-मोटे सामंतों को हटाया जाए। उन्हें अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बनाया जाए। वह बड़ी रियासतों को भी अंग्रेजों की केंद्रीय सत्ता की अधीन, नाममात्र की आज़ादी देकर रखना चाहते थे। उन्होंने यह योजना बेहतर शासन संचालन के लिए बनाई थी। लिहाज़ा उन्होंने अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर पहले उन रियासतों को अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बनाया, जिनमें प्रत्यक्ष तौर पर कोई वारिस नहीं था। उन्होंने इस भारतीय परंपरा को मानने से इंकार कर दिया कि संतानहीन शासक किसी अन्य की संतान को गोद लेकर उसे उत्तराधिकारी बना सकते हैं। इस तरह अपनी नई नीति से सातारा, झाँसी, नागपुर, सहित कई रियासतों को अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बनाया। साथ ही, अवध की रियासत को भी। 

डलहौजी का दूसरा उद्देश्य उन ज़मींदारों की ज़मीन ज़ब्त करना था, जिनके पास उसका कानूनी तौर पर मालिकाना हक़ नहीं था। इस उद्देश्य की पूर्ति करते हुए लगभग 20 हज़ार ऐसी संपत्तियाँ तो सिर्फ़ दक्षिण भारत में ही ज़ब्त कर ली गईं। लेकिन चूँकि सरकार विदेशी थी। उसके प्रतिनिधि भी विदेशी थे। उनमें पारंपरिक कानूनों की समझ कम थी। वे स्थानीय बोलियों-भाषाओं से भी परिचित नहीं थे। इससे रियासतों और ज़मीनों की ज़ब्ती प्रक्रिया के दौरान कई मामलों में अन्याय हुआ। सरकार ने सुधार प्रक्रिया को भी निर्दयतापूर्वक संचालित किया था। इससे जो लोग सीधे प्रभावित हुए, उनकी भावनाओं का भी ख़्याल नहीं रखा। लिहाज़ा, इस वर्ग के दिल-दिमाग़ में गुस्सा घर कर गया। जो सीधे प्रभावित नहीं हुए थे, उनमें भी यह डर बैठ गया कि उन्हें कभी न कभी ऐसी स्थितियों से गुजरना होगा।

अंग्रेज हिंदु धर्म को बर्बर, बुतपरस्त और घृणा के योग्य कहने से भी गुरेज़ नहीं करते थे। कंपनी की फौज में तमाम अफ़सर अपने अधीनस्थ भारतीयों को ईसाई बनने के लिए उकसाते थे। इससे भारतीय सिपाहियों को लगने लगा कि उन्हें जातिच्युत, धर्मच्युत किया जा रहा है। इससे वे अपना सर्वस्व गँवा बैठेंगे। उनमें चिंता और डर के इसी भाव के कारण 1857 से पहले छोटे-मोटे विद्रोह भी हो चुके थे। जैसे, दक्षिण भारत में अंग्रेजों ने फ़रमान जारी किया कि सैनिकों को नई वरदी पहननी होगी। जाति-वैशिष्ट्य सूचक वस्त्र छोड़ने होंगे, दाढ़ी कटानी होगी, पगड़ी बदलनी होगी। इस आदेश के विरोध में 1806 में भारतीय सैनिकों ने वेल्लोर में विद्रोह कर दिया। हालाँकि अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचल दिया। इसी तरह 1824 में अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों की बैरकपुर स्थित टुकड़ी को बर्मा कूच करने का आदेश दिया। लेकिन हिंदु धर्म में समुद्री यात्रा उस समय वर्जित मानी जाती थी, इसलिए सैनिकों ने वहाँ जाने से मना कर दिया। इससे गुस्साए अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए सुबह की परेड के लिए मैदान में जुटे भारतीय सैनिकों की तरफ़ बंदूकों के मुँह खोल दिए। बग़ावत की अगुवाई कर रहे छह सैनिकों को फाँसी पर चढ़ा दिया। कई सौ सैनिकों को फौज से हटाकर 14 साल तक सड़कों के निर्माण के काम में लगा दिया। बाद में पाँच अन्य सैनिकों को भी फाँसी दे दी। उनके शवों को जंजीरों से बाँधकर खुलेआम लटकाया गया ताकि उनकी तरह विद्रोह के बारे में कोई और सोच भी न सके। 

इन बग़ावतों की तरह और भी कई छोटे-बड़े विद्रोह हुए। सबका आधार लगभग एक जैसा ही था। इस तरह 1856 तक पूरा भारत, ख़ासकर उत्तर का इलाका असंतोष से उबल रहा था। ईंधन पूरी तरह तैयार था। बस चिंगारी दिखाने की देर थी और अंग्रेजों ने ख़ुद वह भी मुहैया करा दी। उन्होंने तय किया कि सेना की पुरानें बंदूकें बदलकर सैनिकों को नई राइफलें दी जाएँगीं। इन राइफलों के कारतूसों को दाँत से छीलना पड़ता था। लेकिन इन कारतूसों के बाबत सिपाहियों में यह धारणा बनी कि इन पर गाय या सुअर के माँस की चरबी चढ़ी है। चूँकि गाय हिंदुओं के लिए पवित्र है। जबकि सुअर मुसलमानों में वर्जित। इसीलिए दोनों ने इन कारतूसों के इस्तेमाल को अपने धर्म पर सीधा हमला माना। उन्होंने नए कारतूसों के इस्तेमाल से इंकार कर दिया। खुली बग़ावत कर दी। बंगाल से उठे बग़ावत के इस ग़ुबार ने धीरे-धीरे उन राजे-रजवाड़ों को भी दायरे में ले लिया, जो पहले से अंग्रेजों से नाख़ुश थे। 

हालाँकि विद्रोह का समर्थन करने वाले राजा, नवाब, सामंत अपनी खोई रियासतें, ज़मीनें आदि फिर हासिल करने के लिए ही इसमें शामिल थे। जबकि अंग्रेजी सेना के भारतीय सैनिक आत्मसम्मान की रक्षा के लिए। इस तरह हर पक्ष के अपने हित थे। अलबत्ता इन निजी हितों की वजह से सही पर तात्कालिक मकसद सबका यही था कि ब्रिटिश शासन का अंत किया जाए। मग़र जब एक मोरचे पर लगा कि ब्रिटिश शासन का अंत संभव नहीं, तो सभी पक्ष टुकड़ों में बँट गए। परिणामत: अंग्रेज इस विद्रोह को भी कुचलने में सफल हो गए। अंतिम क्षणों में सिपाहियों ने आत्मसमर्पण के बज़ाय शहादत का विकल्प चुना। ग़ैर-फौजी नेताओं में से कई लड़ते हुए मारे गए। कई अन्य को फाँसी दे दी गई। कुछ लोग ब्रिटिश शासन की अस्थिरता का बेजाँ फ़ायदा उठा रहे थे। अंत में वे भी वहीं लुप्त हो गए, जहाँ से अचानक उभरे थे।

इस तरह यह बड़ा विद्रोह ब्रिटिश भारत के इतिहास को दो भागों में बाँट गया। सामान्य शब्दों में कहें तो यह एक हिंसक मेल-बिंदु बन गया, जिसमें एक तरफ ‘देश’ के रूप में ब्रिटिश-भारत की व्यवस्था थी। दूसरी तरफ़ अनकहे, अघोषित भय से काँप रहा, रियासतों में बँटा भारत का पारंपरिक तंत्र, जिसमें परिवर्तन को स्वीकार करने की इच्छा ही नहीं थी। इस विद्रोह और उसके दमन की प्रक्रिया ने अंग्रजों और भारतीयों के बीच कोई बड़ी खाई तो पैदा नहीं की लेकिन अविश्वास के बीज जरूर बो दिए। 

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
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2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे? 

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