Cancer Mobile, Mobile Cancer

कैंसर दिवस : आज सबसे बड़ा कैंसर ‘मोबाइल पर मुफ़्त इन्टरनेट’ है, इसका इलाज़ ढूँढ़ें!

ज़ीनत ज़ैदी, दिल्ली

आज ‘विश्व कैंसर दिवस’ है। चाहे मीडिया हो या सोशल मीडिया, तमाम प्लेटफॉर्म्स पर कैंसर के कारण और इलाज़ की बातें की जा रही हैं। ये सब ज़रूरी भी है। पर किसी ने उस सबसे बड़ी समस्या के बारे में सोचा क्या, जो हमारे समाज में नए कैंसर की तरह उभर रही है? शायद नहीं सोचा होगा। मैं बताती हूँ- आज सबसे बड़ा कैंसर हूँ, ‘मोबाइल पर मुफ़्त इन्टरनेट’, जाे हमारे युवाओं सहित पूरे समाज को खोखला कर रहा है।

जी हाँ, टीन एज़ रिलेशनशिप, अवसाद, चिन्ता, घर के सदस्यों से अनबन, मन की अस्थिरता आदि जैसी अनेकों समस्याओं का कारण आज क्या है? कहीं न कहीं एक ही, और वह है हर किसी के हाथ में मोबाइल फोन और उस पर मुफ़्त इन्टरनेट। आज से 40 या 30 साल पहले सोशल मीडिया और इन्टरनेट जब महज़ सुहाने ख़्वाब थे, तब बच्चे सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी बच्चे थे। लेकिन आज जब सोशल मीडिया और इन्टरनेट एक सच्चाई है, बच्चे अपनी उम्र से ज़्यादा और जल्दी बड़े हो जा रहे हैं। उनके दिमाग़ों में दुनियाभर की सूचनाएँ होती हैं और उनमें अधिकांश हिस्सा ख़राब या गन्दी सूचनाओं का होता है, कोई माने या नहीं।

सोशल मीडिया, इन्टरनेट ज़ाहिरन हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन चुका है। इनके फ़ायदे या नुक़सान हर दूसरा इंसान हमें बताने को हमेशा तैयार रहता है। लेकिन फिर भी इन्टरनेट और सोशल मीडिया को कैसे इस्तेमाल किया जाए, यह सोचना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है। अलबत्ता, हम सोच नहीं रहे हैं। इसीलिए तो समाज में अश्लीलता का बोलबाला अब ज़्यादा है। इसीलिए छोटे-छोटे बच्चे अपने माता-पिता को धमकी दे रहे हैं कि अगर मुझे मोबाइल नहीं दिया तो मैं घर से भाग जाऊँगा। जबकि वह घर से भाग जाने का मतलब भी नहीं जानता। उसके नफ़े-नुकसान उसे नहीं पता। यह मेरे सामने की, मेरे मोहल्ले का वाक़िआ है।

आज हर दूसरा-तीसरा युवा मोबाइल पर मुफ़्त इन्टरनेट के कारण तनाव अवसाद का शिकार है। उस तनाव, अवसाद के नतीज़े में आत्महत्या तक कर रहा है। आए रोज़ ऐसी घटनाएँ मीडिया के ज़रिए सामने आती हैं। बेलगाम वेब सीरीज़ पर परोसी जा रही सामग्री इन हालात को और बिगाड़ रहा है क्योंकि वह भी ‘मोबाइल पर मुफ़्त इन्टरनेट’ के माध्यम से सीधे विशेष रूप से युवाओं के हाथ में, उनके दिमाग़ों में पहुँच रहा है।

मुझे याद आता है कि हमारे बड़े-बुज़ुर्ग पहले एक कहावत बोला करते थे, ‘हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और’। अस्ल में ‘मोबाइल पर मुफ़्त इन्टरनेट’ का कैंसर भी ऐसा ही है। वह दिखता कुछ और है, होता कुछ और। सब लोग उसके दिखावे के झाँसे में आ जाते हैं। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें पता चलता है कि वही ‘मोबाइल पर मुफ़्त इन्टरनेट’ उन्हें अपनी लत का शिकार बना चुका है। इससे हमें सावधान रहने की ज़रूरत है। हमें समझने की ज़रूरत है कि यह नए ज़माने का कैंसर है। इसे अगर हमने अभी क़ाबू नहीं किया, तो ये हमें और हमारे समाज को खा जाएगा। बीमार तो करने ही लगा है। आज विश्व कैंसर दिवस पर इस नई बीमारी का इलाज़ ढूँढिए।

यह वक्त दूसरे को ज्ञान या सलाह देने का नहीं, बल्कि बदलाव की शुरुआत ख़ुद के घर से करने का है। हमेशा सतर्क होने की ज़रूरत है। समझने की ज़रूरत है कि अगर इस महामारी को न रोका गया, तो इसका इलाज़ नामुमकिन हो जाएगा। इसका ख़ामियाज़ा सिर्फ एक व्यक्ति, परिवार, राज्य नहीं बल्कि देश-दुनिया को भुगतना होगा।

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(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं।अच्छी कविताएँ भी लिखती है। वे अपनी रचनाएँ सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन या वॉट्सएप के जरिए भेजती हैं।)
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