माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 24/9/2021
बंगाल भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव था। लिहाज़ा पश्चिमी विचारों से उपजे भूचाल का केंद्र भी वही बना। वहाँ इसका प्रभाव पहले बंगाली राष्ट्रवाद के रूप में दिखा। इस प्रक्रिया में जो शुरुआती दो व्यक्तित्व उभरे, वे थे- हेनरी डेरोज़ियो और राममोहन रॉय। डेरोज़ियो (1809-1831) यूरोशियाई थे। वे 17 साल की उम्र में ही कुछ अच्छी रूमानी कविताओं के ज़रिए कलकत्ता के बौद्धिक वर्ग में लोकप्रिय हो चुके थे। कुछ समय बाद वे हिंदु महाविद्यालय के सहायक-प्राचार्य बन गए। उनके प्रभाव में बंगाली मध्य वर्ग के युवाओं ने ख़ास तौर पर फ्रांसिस बेकन, ह्यूम और थॉमस पेन जैसे यूरोपीय रचनाकारों को पढ़ा। वह भी इस तरह कि जब थॉमस पेन की पुस्तक ‘एज ऑफ रीज़न-2’ की बिक्री के लिए उन दिनों कलकत्ता में विज्ञापन निकला तो उसकी 100 प्रतियाँ हाथों-हाथ बिक गईं। इसके बाद पाँच गुना महँगी तक प्रतियाँ ब्लैक में भी बिकीं। डेरोज़ियो ने 1828 में उन्नत सामाजिक और राजनैतिक विचारों पर चर्चा के लिए अकादमिक संघ बनाया। इसमें जो विषय विमर्श के लिए आते थे, उनमें “आज़ाद ख़्याली, स्वतंत्र विधान, भाग्य, आस्था, सत्य की पवित्रता, बुरी आदतों की तुच्छता, राष्ट्रवाद की श्रेष्ठता, ईश्वर के अस्तित्व के पक्ष-विपक्ष में तर्क, मूर्तिपूजा का खोखलापन, पुरोहिताई के पाखंड आदि प्रमुख थे।”
हालाँकि यह वर्ग अभी संख्या में कम था। हिंदु महाविद्यालय में ही 1828 में सिर्फ़ 436 विद्यार्थियों ने दाख़िला लिया था। इसके बावज़ूद उन्होंने प्राथमिक तौर पर एक माहौल तो बना ही लिया था। इस तरह कि मई 1836 में कलकत्ता के अख़बार ‘द इंग्लिशमैन’ ने हिंदु महाविद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों के बारे में लिखा, “राजनैतिक मसलों में वे सब उग्र सुधारवादी हैं। बेंथम (अंग्रेज दार्शनिक जेरेमी बेंथम) के सिद्धांतों के अनुयायी हैं। वे मानते हैं कि सरकार को सहनशील होना चाहिए। यह भी कि लोगों को आदिम और बर्बर परंपराओं से दूर करने का सबसे बढ़िया विकल्प उनमें शिक्षा का प्रसार है। राजनैतिक अर्थशास्त्र के मामले में वे एडम स्मिथ के समर्थक हैं। वे मानते हैं कि एकाधिकार वाली प्रणाली, व्यापार-वाणिज्य पर अंकुश, कई देशों के अंतर्राष्ट्रीय कानून सिर्फ़ उद्योग को पंगु बनाते हैं। कृषि और उत्पाद निर्माण का विकास रोकते हैं। व्यवसाय की स्वाभाविक बढ़त में बाधा बनते हैं।”
इधर, राममोहन रॉय सांस्कृतिक, धार्मिक राष्ट्रवादी थे। वे अंग्रेजी शिक्षा के समर्थक तो थे लेकिन पश्चिम के उदारवादी मानवीय विचार का मूल हिंदु सभ्यता में भी देखते थे। उन्होंने ईसा मसीह के देवत्व को भी नक़ारा। इसलिए ईसाई मिशनरियों ने उन पर हमले किए। ज़वाब में उन्होंने लिखा, “ईसाई कहते हैं कि हमारे बीच ‘ज्ञान का आलोक’ प्रसारित करने के लिए हमें अंग्रेजों का उनका आभारी होना चाहिए। इस बात से उनका अर्थ अगर ये है कि उन्होंने हमें उपयोगी यांत्रिक कला सिखाई तो मैं निश्चित उनका आभारी हूँ। लेकिन जहाँ तक विज्ञान, साहित्य और धर्म का संबंध है तो मैं नहीं मानता कि हमें इसके लिए किसी का भी आभारी होना चाहिए। इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो सिद्ध जो जाएगा कि दुनिया को हमारे पूर्वजों का आभारी होना चाहिए। ज्ञान का उदय तो सबसे पहले यहाँ, पूरब में हुआ। आज भी हमारे पास अपनी दार्शनिक और विपुल भाषा है। यह हमें दूसरे राष्ट्रों से अलग करती है, जो विदेशियों की भाषा उधार लिए बिना वैज्ञानिक या भावात्मक विचार व्यक्त भी नहीं कर सकते।”
इस पृष्ठभूमि के साथ 1837 में भारत में पहला राजनीतिक संगठन बना ‘ज़मींदारी एसोसिएशन ऑफ कलकत्ता’। यह ज़मींदारों का संगठन था। साल 1838 में इसका नाम ‘लैंडहोल्डर्स एसोसिएशन कर दिया गया। इसके संयोजकों में राजा राधाकांत देब बहादुर और प्रसन्न कुमार टैगोर प्रमुख थे। दोनों राममोहन रॉय के विचारों के विरोधी। यह संगठन ज़मींदारों के हितों की सुरक्षा के लिए बना था। इसे लंदन में 1839 में बनी ‘ब्रिटिश इंडिया सोसायटी’ का भी समर्थन मिला। फिर 1843 में ‘बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी’ बनाई गई। उसके बारे में ‘बंगाल हुरकुरू’ नामक अख़बार ने लिखा था, “सोसायटी ब्रिटिश भारत के लोगों के असल हालात से जुड़ी जानकारियों का प्रसार करेगी। देश के कानून, संस्थानों, संसाधनों से जुड़ी जानकारियों का भी। सभी वर्गों के हिंदुस्तानी भाइयों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके हितों की बात को भी आगे बढ़ाना इसका उद्देश्य होगा।” हालाँकि जिस बैठक में इस सोसायटी के गठन का प्रस्ताव पास हुआ, उसी में ब्रिटेन के साथ वफ़ादारी निभाने का संकल्प भी लिया गया। साथ में यह भी कि “कानूनी सत्ता को पलटने या समाज की शांति भंग करने की कोशिश नहीं की जाएगी”। आगे चलकर 1851 में ‘लैंडहोल्डर्स एसोसिएशन’ का इस सोसायटी में विलय हो गया।
उसी साल ‘ब्रिटिश इंडियन एसोसिशन’ के नाम से संगठन बना जिसके दो उद्देश्य थे। एक- भारतीयों के साथ कानूनी भेदभाव का विरोध करना। दूसरा- ब्रिटिश सरकार में भारतीयों को प्रतिनिधित्व दिलाना। हालाँकि भारी-भरकम सदस्यता शुल्क के कारण धनी-मानी ही इसके सदस्य बन सके। इसकी शाखाएँ पूना, बम्बई, मद्रास में भी खुलीं। इनमें से बम्बई की पहली आम सभा में एक वक्ता ने भविष्य-सूचक भाषण दिया था। कहा था, “ब्रिटिश सरकार कहती है कि वह हिंदुस्तानियों को यूरोपियों के समान शिक्षित करेगी। लेकिन भारतीयों को अपने समान शिक्षित करने के बाद भी अगर अंग्रेज उन्हें अपने से कमतर मानते रहें तो.. अगर वे यह प्रदर्शित करते रहें कि योग्यता में बेहतर होने के बावज़ूद भारतीयों को अपनी आकांक्षाएँ पूरी होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए तो… यह भी कि भारतीयों के लिए कुछ लक्ष्मण रेखाएँ जिन्हें लाँघने की अपेक्षा वे नहीं कर सकते तो क्या अंग्रेज इस तरह अपने ही किए-धरे पर पानी नहीं फेर रहे हैं? वे ऐसी आत्मघाती नीति पर नहीं चल रहे, जो देश की हर प्रतिभा, सम्मान के भाव और बुद्धिमत्ता को अंतत: शासन-सत्ता के प्रति कभी न मिट सकने वाली शत्रुता में बदल सकती है?”
हालाँकि जातीय या भौगोलिक अर्थों में भारतीय राष्ट्रवाद जैसी कोई भावना अब भी नहीं थी। इसलिए क्योंकि ब्रिटिश साम्राज्य 1857 के पहले तक पूरे देश में नहीं था। भाषायी और सांस्कृतिक भेद थे ही। संवाद-संचार के आधुनिक साधन भी नहीं थे। इससे ब्रिटिश भारत के पढ़े-लिखे लोगों के विचार अन्य क्षेत्रों में नहीं पहुँच रहे थे। इसलिए राजनीतिक गतिविधियाँ मुख्यत: प्रांतों की राजधानियों तक सीमित रहीं। लेकिन 1857 की क्रांति ने भावनाओं को आकार दिया और बड़े राष्ट्रवादी संघर्ष की भूमिका बना दी।
(जारी…..)
अनुवाद : नीलेश द्विवेदी
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ :
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया?
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?