Rahul Gandhi Arvind Kejriwal

ज़मीन से कटे नेताओं को दिल्ली से सन्देश- रावण पर सोना चढ़ाएँगे तो ‘सत्ता-हरण’ होगा ही

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

दिल्ली में ‘सत्ता का हरण’ हो गया। उनके हाथों से, जो जमीन से कटे हुए हैं। उनके हाथों से जिन्हें अपने देश की मूल संस्कृति का भी पूरा ज्ञान नहीं है। उनके हाथों से जो गलतियों, अपराधों पर क्षमा माँगना तो दूर उनका ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ने की कोशिश करते हैं। उनके हाथों से जो अपने अपराधों पर जनता की मोहर लगवाने की कोशिश करते हैं क्योंकि वे यक़ीनन, मतदाताओं को मूर्ख समझते हैं। 

इनमें एक नेता हैं, जो कुछ महीनों पहले भ्रष्टाचार को आरोपों में जेल गए थे। लेकिन फिर भी पूरी ठसक के साथ जेल में रहते हुए भी मुख्यमंत्री पद पर क़ाबिज़ रहे। फिर ज़मानत पर बाहर आने के बाद उन्होंने शायद किन्हीं अन्दरूनी दबावों के कारण इस्तीफ़ा दिया, तो अपनी जगह जिस महिला को सरकार का मुखिया बनाया उन्हें ‘कामचलाऊ मुख्यमंत्री’ तक कहने में संकोच नहीं किया। इस बीच, लोकसभा चुनाव-2024 के दौरान पार्टी का प्रचार करने के मक़सद से उन्हें जेल से बाहर आने मिला। तब उन्होंंने जनता से कहा कि उन्हें ‘जेल में डाले जाने का जवाब मतदाता अपने वोट से’ दें। यानि यहाँ भी वे अपने घपले-घोटालों पर जनता के वोट की मोहर लगवाने की मंशा रखते थे। मानो दिल्ली का मतदाता उनके इशारों पर नाचने वाली कठपुतली हो। अलबत्ता, दिल्ली की जनता ने सातों लोकसभा सीटों में उनकी पार्टी को हराकर स्पष्ट कर दिया कि वह ‘कठपुतली नहीं लोकतंत्र की अस्ल मालिक’ है। 

हालाँकि, यहाँ पर भी ‘नेताजी’ की आँखों पर चढ़ी दम्भ की पट्‌टी नहीं उतरी। वे बीते तीन विधानसभा चुनावों (2013, 2015 और 2020) से दिल्ली में यमुना की सफाई का वादा करते रहे। नहीं कर पाए तो पहला पूर्ण कार्यकाल (2015-2020) बीतने के बाद  उन्होंने लोगों से माफ़ी माँगी, और पाँच साल फिर माँगे। भरोसा दिया कि दूसरे कार्यकाल में तो यमुना साफ़ कर ही देंगे। मगर तब भी नहीं कर सके। फिर भी उन्होंने इस बार इसके लिए माफ़ी माँगना तो दूर, उल्टा पड़ोसी हरियाणा पर आरोप मढ़ दिया कि वह यमुना को ज़हरीला करता है। 

साल 2013 में यही ‘नेताजी’ देश की सियासत में ताज़ा हवा के जैसे आए थे। लोगों ने इनसे उम्मीदें लगाईं। इन्होंने भी बड़ी-बड़ी बातें कर के उम्मीदों को हवा दी। कहा कि मुख्यमंत्री के रूप में भी गाड़ी, बँगला, सुरक्षा नहीं लेंगे। भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देंगे। लेकिन दूसरे पूर्ण कार्यकाल (2020-2025) में ही सब बातें हवा हो गईं। अपने रहने के लिए उन्होंने दिल्ली एक सरकारी बँगले में आलीशान सुविधाएँ जुटाईं। इस पर 45 करोड़ रुपए ख़र्च किए। सवाल उठे तो प्रधानमंंत्री और राष्ट्रपति के आवासों की दलीलें देकर उनके सहयोगी नेता इस काम को सही ठहराने में लग गए। फिर शराब नीति में घोटाले के आरोप लगे। शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी घपलों के आरोप हैं। 

‘नेताजी’ सहित उनके कई प्रमुख नेता जेल गए, लेकिन उनके चेहरे पर शिक़न नहीं आई। वह ख़ुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार समझने लगे। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री की शिक्षा पर सवाल उठाकर साबित करने के लगे कि वे ख़ुद ज़्यादा पढ़े-लिखे हैं। हैं भी, भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रह चुके हैं। लेकिन देश की ही मौलिक संस्कृति का उन्हें कितना ज्ञान है, इसकी मिसाल ख़ुद उन्होंने ही इस विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान पेश की। एक रैली में वह बोले, ‘सीता हरण के लिए रावण सोने का हिरण बनकर आया’। अपने इस ‘ज्ञान’ पर उन्होंने सामने बैठी जनता से हाँ भी बुलवाई। विपक्ष ने इस ‘ज्ञान’ पर उनकी खिंचाई की तो उन्होंने फिर बिन संकोच दूसरी पार्टी को ही कठघरे में खड़ने की क़ोशिश की। मुद्दा घुमाने की क़ोशिश की। मानो जनता कुछ जानती ही न हो। 

लेकिन ये पब्लिक है साहब, सब जानती है। ‘जनतंत्र की मुखिया जनता’ ने ‘रावण पर सोना चढ़ाने वाले नेताजी’ की सत्ता का हरण कर के उसे दूसरे दल के हाथों में सौंप दिया। यही नहीं, ‘नेताजी’ को भी उनके चुनाव क्षेत्र में चारों खाने चित कर के धूलधूसरित कर दिया। और सिर्फ़ इन ‘नेताजी’ को ही नहीं, दूसरे वाले को भी। वह इस देश की सबसे पुरानी पार्टी के ‘अप्रत्यक्ष मुखिया’ हैं। मगर उन्हें उन्हीं की पार्टी के कई नेता ‘मौसमी राजनेता’ कहने लगे हैं, जो सिर्फ़ चुनाव के समय सक्रिय होते हैं, या फिर जब संसद का सत्र चल रहा होता है, तब। उस समय भी उनकी सियासी गतिविधियों की पटकथा विदेश के कोई ‘ठेकेदार’ लिखते हैं, ऐसा बताया जाता है। वह ‘इन दूसरे वाले नेताजी’ को गृहकार्य जैसा काम देते हैं। उसे ये ‘नेताजी’ देश के सियासी मैदान पर पूरा करने की क़ोशिश करते हैं। 

ये दूसरे ‘नेताजी’ देश के सबसे बड़े समझे जाने वाले ‘सियासतशाही’ ख़ानदान के मौज़ूदा वारिस हैं। तीन पीढ़ी पहले तक इनके पूर्वज देश की सियासत पर ज़मीनी पकड़ रखने के जाने जाते थे। लेकिन ये हज़ारों किलोमीटर देश की सड़कों पर पैदल चल लेने के बावज़ूद अब तक देश की नब्ज़ नहीं पकड़ सके। शायद इसीलिए 21वीं सदी में भी 19वीं-20वीं सदी वाली राजनीति जमाने की क़ोशिश कर रहे हैं। ‘समाज को जाति, वर्ग में बाँटो और राज करो’। हालाँकि अब तक इनकी क़ोशिश कहीं क़ामयाब हुई नहीं हैं, जबकि ये लगभग दो दशक से देश की राजनीति में सक्रिय हैं। जनता इन्हें बार-बार आईना दिखाती है। देश की राजधानी दिल्ली में ही इस विधानसभा चुनाव को मिलाकर बीते छह चुनावों से जनता इनकी पार्टी को शून्य पर समेट रही है। फिर भी ये इशारा समझने को तैयार नहीं। 

अलबत्ता, समझना तो होगा। देश की सियासत में अगर कुछ बेहतर करना है, तो जनता को समझना होगा। ज़मीन को समझना होगा। देश की आब-ओ-हवा को समझना होगा। उसकी संस्कृति, परम्परा को समझना होगा। ‘रावण पर सोना’ चढ़ाने से काम नहीं चलेगा। झूठे आत्मविश्वास-प्रदर्शन के लिहाफ़ में अपनी ख़ामियों को छिपा देने से बात नहीं बनेगी। दिल्ली के चुनाव का यह स्पष्ट सन्देश है, अब भी समझ जाएँ तो बेहतर।             

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