Rang-O-Adab, Rang-O-Adab Patna

गाने वाली घड़ी कहानी ‘प्रहर’ का अगला पड़ाव अब रंग-ओ-अदब की महफ़िल पटना में

टीम डायरी

‘गाने वाली घड़ी की कहानी-प्रहर’ का सफ़र जारी है। ‘भोपाल साहित्य उत्सव’ के दौरान भारत भवन से हुई शुरुआत के बाद बेंगलुरू में 16 फरवरी को ‘दक्षिण वृन्दावन’ संगीत समारोह और अब पटना। इसी एक और दो मार्च को पटना में रंग-ओ-अदब की महफ़िल सज रही है। पेशे से दिल की बीमारियों के विशेषज्ञ चिकित्सक लेकिन दिल से संगीत और साहित्य के तलबग़ार डॉकटर अजीत प्रधान ने महफ़िल सजाई है।

बिहार संग्रहालय पटना में आयोजित इस महफ़िल में दो दिनों में कुल 19 सत्र होने वाले हैं। इनमें देश के 42 जाने-माने संगीतकार और लेखक हिस्सा लेंगे। कुछ नामों पर ग़ौरतलब- वरिष्ठ नृत्यांगना डॉक्टर सोनल मानसिंह, शास्त्रीय गायिका अश्विनी भिड़े देशपांडे, वायलिन वादक डॉक्टर एल सुब्रह्मध्यम, बाँसुरीवादक पंडित प्रवीण गोडखिन्डी, साहित्यकार यतीन्द्र मिश्र, पवन वर्मा, आदि। तीन सांगीतिक प्रस्तुतियाँ भी होंगी।

इनके बीच पहले ही दिन शनिवार, एक मार्च को ‘गाने वाली घड़ी की कहानी- प्रहर’ पर चर्चा होगी। सत्र का नाम है, ‘सुर साज और प्रहर’। देश के जाने-माने बाँसुरीवादक श्री प्रवीण गोडखिन्डी द्वारा लिखित यह उपन्यास तीन भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। सबसे पहले कन्नड़, फिर अंग्रेजी और इसके बाद हिन्दी में। हिन्दी में इस उपन्यास का अनुवाद भोपाल से ताल्लुक़ रखने वाले अनुवादक नीलेश द्विवेदी ने किया है। 

वैसे तो बहुत लोग अब तक पढ़ चुके होंगे। फिर भी याद दिला दें कि इस उपन्यास की कहानी भारतीय शांस्त्रीय संगीत में अब तक बड़ी बहस का विषय रही ‘राग-समय पद्धति’ को आधार बनाकर लिखी गई है। इस कहानी के जरिए बताया गया है कि राग संगीत सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं होता। उसमें रोगों का उपचार करने का भी गुण है। बशर्ते, रागों को उनमें निहित भावों के अनुरूप उनके तय समय पर गाया-बजाया जाए।  

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प्रहर : कहानी आठ प्रहर का राग संगीत गाने वाली घड़ी की

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