टीम डायरी
भारतीय रेल का नारा है, ‘राष्ट्र की जीवन रेखा’। लेकिन इस जीवन रेखा पर अक्सर चूहे और तिलचट्टे दौड़ते हुए नज़र आ जाते हैं। यही नहीं, लेटलतीफ़ी, बदबू, गन्दगी, ठसाठस भीड़, जबरन सीटों पर क़ब्ज़ा किए लोग, आरक्षित डिब्बों में ज़बरन घुस आए हिजड़े और चना-चबेना जैसी तमाम चीज़ें बेचने वाले विक्रेता। यह सब भी ‘राष्ट्र की जीवनरेखा’ पर बेधड़क चलता रहता है। हम भारतीयों को इस सबकी आदत है। इसलिए हम काम चला लेते हैं। कोई शिक़ायत नहीं करते। जानते हैं कि शिक़ायत से ज़्यादा कुछ होना नहीं है।
हालाँकि फ्रांस से आए एक युवा पर्यटक को इन सब चीज़ों की आदत नहीं। इसलिए उसने शिक़ायत कर दी। शिक़ायत भी किसी अफ़सर, मंत्री या मंत्रालय में नहीं। बल्कि आधुनिक समय के सबसे प्रभावशाली मंच (कथित) ‘सोशल मीडिया’ पर और महज़ चार-पाँच घन्टे के भीतर उसकी शिक़ायत हजारों लाखों लोगों तक पहुँच गई है। जी हाँ, फ्रांस के इस युवा पर्यटक का नाम है विक्टर ब्लाहो। वह यूट्यूब पर तरह-तरह के वीडियो बनाने का काम करते हैं। अभी भारत की यात्रा पर हैं। उन्होंने मुम्बई से वाराणसी, वाराणसी से आगरा और फिर आगरा से दिल्ली की रेल-यात्रा की। यही कोई 46 घंटे शयनयान और तृतीय श्रेणी के वातानुकूलित डिब्बे में बिताए।
इस 46 घन्टे की यात्रा में विक्टर का अनुभव कैसा रहा, ख़ुद उन्हीं की ज़ुबानी सुन लीजिए। ऊपर उन्हीं का बनाया हुआ वीडियो दिया गया है। देख सकते हैं। कुल मिलाकर उनके अनुभव का सार-संक्षेप लिखें तो जैसा विक्टर ने ख़ुद कहा है, “भारत में रेल से 46 घन्टे की यात्रा का दु:साहस कभी मत कीजिए।” उन्होंने दु:साहस किया और अब उनकी हालत ये है कि वह अपने देश लौट रहे हैं। उनके मुताबिक, “मैं घर जाना चाहता हूँ। मुझे शान्ति चाहिए। मुझे साफ़-सुथरा बिस्तर चाहिए। मुझे आराम चाहिए। मैं थक चुका हूँ।”
अलबत्ता, भारत से उन्हें शिक़ायत नहीं है। उनकी मानें तो, “मैं फिर लौटूँगा। लेकिन अगली बार सिर्फ़ आरामदायक और सर्वसुविधायुक्त ‘महाराजा एक्सप्रेस’ से ही सफर करूँगा। किसी और से नहीं।”
ग़ौर कीजिए रेल मंत्री जी। भारतीय रेल का ध्येय वाक्य याद कीजिए, ‘सुरक्षा, संरक्षा, समय पालन’। इन तीन शब्दों में ‘राष्ट्र की जीवन रेखा’ का बहुत कुछ समाया है। राष्ट्र की छवि भी।