प्रतीकात्मक तस्वीर
अमित साहू, मुम्बई महाराष्ट्र
ये आवाज़ अमित साहू की है। ये जो कविता पढ़ रहे हैं, वह भी इन्हीं की है। अमित वैसे तो, भारतीय निर्यात-आयात बैंक के सबसे युवा महाप्रबन्धकों में से एक हैं। यानी भारी व्यवस्तता वाली नौकरी करते हैं। दूसरी तरफ़, मुम्बई जैसे भागते-दौड़ते महानगर में रहते हैं, जहाँ किसी को किसी की पड़ी नहीं होती। लेकिन इसके बावजूद इनकी कविता के शब्दों और इनकी आवाज़ की कशिश (आकर्षण) को महसूस कीजिए। आपको दो मुख़्तलिफ़ पहलुओं का फ़र्क पता चलेगा।
अमित ने अपने सहकर्मी विकास वशिष्ठ की गुज़ारिश पर अपनी इस कविता को आवाज़ दी है। इसके बोल भी नीचे दिए गए हैं। जिसे पढ़ने की इच्छा हो पढ़ सकता है।
मेरी कोई कहानी नहीं,
बस कुछ यादें हैं।
उन यादों को ज़ुबान देना चाहता हूँ,
अगर कुछ कान साथ दें।
पर ऐसा होता नहीं अक्सर।
उम्र ढल गई बस यही एक हसरत लिए,
और आज भी ख़ुद ही गुनगुनाता हूँ,
इन दीवारों को सताता हूँ।
कई बार सोचा लिख दूँ उन्हें।
फिर यही सोच मुझे रोक लेती है,
आज कानों को ढूँढता हूँ,
कल आँखों को तरसूँगा।
इस एक हसरत के बोझ ने शायद मुझे रोक रखा है,
वरना रुख़सत होने से कौन रोक सकता था।
दोबारा जन्म हुआ तो ख़ुदा से माँग के आऊँगा,
किसी के जीवन की दीवार तोड़ने मुझे भेज दे।
जी हाँ मैं गाँव हूँ, जो धड़कता रहता है हर उस शख्स के अन्दर जिसने… Read More
अभी 30 मार्च को हिन्दी महीने की तिथि के हिसाब से वर्ष प्रतिपदा थी। अर्थात्… Read More
आज चैत्र नवरात्र का प्रथम दिवस। स्वतंत्रता पश्चात् ऐसे कई नवरात्र आए भगवती देवी की… Read More
अद्भुत क़िस्म के लोग होते हैं ‘राज करने वाले’ भी। ये दवा देने का दिखावा… Read More
भारत अपनी संस्कृति, मिलनसारता और अपनत्त्व के लिए जाना जाता है। इसलिए क्योंकि शायद बचपन… Read More
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने एटीएम से नगद पैसा निकालने की सुविधा को महँगा कर… Read More