दीपक गौतम, सतना मध्य प्रदेश
माँ घर की कच्ची रसोई में अक्सर
सिर्फ भोजन नहीं प्रेम पकाती है।
स्नेह की धीमी आँच पर बड़े लाड़
के साथ वह पकवान बनाती है।
उसके चूल्हे की सूखी रोटी भी
56 भोग को मात दे जाती है।
उसने प्रेम की इसी मंद आँच में
अपना सारा जीवन होम कर दिया।
बुजुर्गियत के दौर में भी अपनी फिक्र
छोड़ चूल्हे-चौकी में जुट जाती है।
जब भी देखता हूँ उसकी आँख के नीचे
तिल-तिल बढ़ती झुर्रियों को, बस यही
लगता है कि माँ तो जीवन भर बच्चों के
लिए हाँडी पर भोजन नहीं, बस प्रेम पकाती है।
– दीपक गौतम
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(दीपक मध्यप्रदेश के सतना जिले के छोटे से गाँव जसो में जन्मे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2007-09 में ‘मास्टर ऑफ जर्नलिज्म’ (एमजे) में स्नातकोत्तर किया। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस और लोकमत जैसे संस्थानों में कार्यरत रहे। साथ में लगभग डेढ़ साल मध्यप्रदेश माध्यम के लिए रचनात्मक लेखन भी किया। इन दिनों स्वतंत्र लेखन करते हैं। बीते 15 सालों से शहर-दर-शहर भटकने के बाद फिलवक्त गाँव को जी रहे हैं। बस, वहीं अपनी अनुभूतियों को शब्दों के सहारे उकेर दिया करते हैं। उन उकेरी हुई अनुभूतियों काे #अपनीडिजिटलडायरी के साथ साझा करते हैं, ताकि वे #डायरी के पाठकों तक भी पहुँचें। ये लेख उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है।)
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दीपक का अपनी माँ के नाम लिखा हुआ लेख