पवनेश कौशिक, दिल्ली
नई दिल्ली में मेट्रो की ‘यलो लाइन’ के पटेल चौक स्टेशन पर दोपहर को जैसे ही मैं उतरकर स्टेशन से बाहर निकला कि सामने से सफेद कमीज़ और नीली पेंट पहने व्यक्ति आया। उसने समय पूछा। मैंने कहा कि दो बजकर 15 मिनट हुए हैं। समय बताकर मैं कुछ कदम आगे बढ़ा था कि मेरे कानों में उस व्यक्ति की वही आवाज फिर गूँजी। मैंने मुड़कर देखा तो वह किसी दूसरे आदमी से समय पूछ रहा था। आमतौर पर ऐसी बातों को मैं अनदेखा कर देता हूँ। लेकिन पता नहीं उस दिन क्यों मुझे उसकी बात नगवार गुजरी। मैं पीछे मुड़कर फिर उसके पास पहुँच गया।
“क्यों भाई, क्या गलत समय बताया था मैंने, जो आप उसकी पुष्टि कर रहे हैं”, मैंने कहा।
“अरे नहीं, नहीं भाई साब! ऐसा नहीं है”, वह बोला।
“तो फिर क्या बात है?”
“दरअसल, मुझे समय नहीं जानना। मैने तो जान-पहचान के लिए आपसे समय पूछा था। लेकिन आपने तवज़्ज़ो ही नहीं दी और झटपट समय बताकर आगे बढ़ गए।”
मुझे इस वक़्त दफ़्तर पहुँचने की जल्दी थी। इसके बावजूद उसकी बात सुनते ही मैं अचकचा गया। लिहाजा, मैने उससे फिर पूरी बात जानी। उसने जो बताया वह सुनकर मैं दंग रह गया कि मेट्रो स्टेशन पर भी ऐसा हो सकता है।
असल में वह व्यक्ति ‘लपका’ था, जो स्टेशन पर उतरने वाले लोगों में 2,000 के नोट बदलने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पहुँचने वाले सम्भावित ग्राहक खोज रहा था। वैसे, आमतौर पर ‘लपका’ शब्द का प्रयोग बड़े रेलवे और बस स्टेशनों पर उतरने वाले यात्रियों को लपककर पकड़ने वालों के लिए किया जाता है। ये लोग उन्हें कुछ पैसे लेकर टैक्सी, होटल, आदि उपलब्ध कराने अथवा आस-पास के किसी पर्यटन स्थल तक घुमाने की सेवा देने की पेशकश किया करते हैं। किसी अधिकृत एजेंट या गाइड की तरह। और इन दिनों दिल्ली के कुछ मेट्रो स्टेशनों पर ऐसे ही लोग आरबीआई में 2,000 के नोट जमा कराने, बदलवाने की सुविधा दे रहे हैं। अपने सम्पर्कों के माध्यम से।
याद दिलाना बेहतर होगा कि आरबीआई ने 19 मई 2023 को 2,000 के नोट को बंद करते हुए इसे चलन से बाहर कर दिया था। आरबीआई ने इन्हें विभिन्न बैंकों के माध्यम से बदलने का समय दिया था अधिकतम सात अक्टूबर तक। लेकिन भारतीय तो ठहरे भारतीय। समय पर सारा काम कैसे निपटा लें। बैंक में नोट जमा नहीं कर पाए और अब आरबीआई पहुँचकर इन्हें बदलने के लिए लाइन लगा रहे हैं। पुरुष, महिलाएँ, बूढ़े, बच्चे सब इनमें शामिल हैं। सुबह होते ही आरबीआई के बाहर ऐसे लोगों की लम्बी लाइन लग जाती है।
इस बाबत उस व्यक्ति ने ही मुझे बताया कि आरबीआई के बाहर तो कमीशन देकर 2,000 का नोट बदलने वालों की तादाद भी काफी बढ़ गई है। इसलिए उसने अब मेट्रो स्टेशन पर ही सम्भावित ग्राहकों को ‘लपकना’ शुरू कर दिया है। इसके लिए वह समय पूछकर व्यक्ति से परिचय बढ़ाता है। फिर उनसे 2,000 के नोट बदलने का जिम्मा ले लेता है। उसे 2,000 का एक नोट बदलने के एवज में वह 300 रुपए मिलते हैं। यानि जिस व्यक्ति को लाइन में नहीं लगना हो और समय बचाना हो, वह 300 रुपए के कमीशन पर अपना नोट बदल सकता है।
आरबीआई की इमारत मेरे दफ़्तर के बगल में ही है। सात अक्टूबर के बाद से ही यहाँ नोट बदलने के लिए आने वालों का सिलसिला जारी है। छुट्टी का दिन छोड़कर रोज लोगों की लम्बी लाइन दिखाई देती है। भीड़ बढ़ती देख आरबीआई ने टोकन व्यवस्था भी शुरू की है। ताकि लोगों को ज़्यादा असुविधा न हो। लेकिन डेढ़ माह बीतने के बाद भी भीड़ है कि घट ही नहीं रही। सो, ‘लपकों’ ने इसी सब के बीच अपनी मौज़ का बन्दोबस्त कर लिया है।
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(पवनेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के हैं। दिल्ली में एक निजी कम्पनी में नौकरी करते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी को उन्होंने यह लेख वॉट्सएप सन्देश के तौर पर भेजा है।)
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