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‘लाड़ली बहना’! हमें कोई मूर्ख बनाता नहीं, हम बनते हैं, अपने लालच, भय, अज्ञानता से

नीलेश द्विवेदी, भाेपाल मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में जहाँ चुनाव आने वाले हैं, वहाँ इन दिनों जनता में ‘मूर्ख बनने’ की होड़ लगी हुई है। हाँ, क्योंकि वैसे भी, कोई हमें सामान्य तौर पर मूर्ख बनाता नहीं है। हम बनते हैं। अपनी अज्ञानता, लालच और भय के कारण। कैसे? यह समझने के लिए मध्य प्रदेश का ही उदाहरण ले लेते हैं। यहाँ शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने अभी हाल ही में ‘लाड़ली बहना योजना’ शुरू की। इसके तहत महिलाओं को अभी 1,000 रुपए हर महीने मिल रहे हैं। अक्टूबर से 1,250 रुपए मासिक मिलने वाले हैं। जुलाई से इस योजना के लिए पंजीयन शुरू हुआ। लाखों महिलाएँ इसमें अपना नाम दर्ज़ करा चुकी हैं। भोपाल में ही 3.17 लाख महिलाओं ने पंजीयन कराया है। 

लेकिन इस सिलसिले में एक दिलचस्प ख़बर अभी आठ सितम्बर को ही अख़बार में छपी। इसमें बताया गया कि भोपाल में क़रीब 123 महिलाओं ने इस योजना से अपना नाम वापस ले लिया है। उन्होंने पात्रता के लिए झूठे शपथ-पत्र देकर बीते एक-दो महीने तो 1,000 रुपए की राशि ली। लेकिन जब उन्हें पता चला कि झूठा शपथ-पत्र देने की बात पकड़ में आ जाने पर उन्हें 10 साल तक क़ैद की सज़ा हो सकती है, तो उन्होंने नाम वापस ले लिया। बताया जाता है कि पूरे प्रदेश में नाम वापस लेने वाली ऐसी महिलाओं की तादाद हजारों में है। हालाँकि उन महिलाओं की तादाद लाखों-लाख में है, जो 1,000-1,200 रुपए के लालच में ‘मामा’ (शिवराज सिंह) की सरकार के हाथों ‘मामू’ बन रही हैं। 

ख़बरें बताती हैं कि ‘लाड़ली बहनों’ को मुफ़्त में, चुनावी रिश्वत (हाँ, ये रिश्वत ही है। जैसे मतदान से पहले मतदाताओं को कम्बल, शराब और 500-1,000 रुपए बाँटे जाते हैं। वैसे ही।) के तौर पर यह रक़म बाँटने के लिए सरकार को 2023-24 में ही 55 हजार करोड़ रुपए का कर्ज़ लेना होगा। जबकि मध्य प्रदेश पर पहले ही तीन लाख 85 हजार करोड़ रुपए का कर्ज़ है। इसके ब्याज के तौर पर ही सरकार को हर साल 24 हजार करोड़ रुपए भरने पड़ते हैं। इस कर्ज़ की रक़म को प्रतिव्यक्ति के हिसाब से बाँट दिया जाए, तो लगभग 50 हजार रुपए राज्य के हर नागरिक पर सरकारी कर्ज़ा पहले ही है। अब सरकार जब नया कर्ज़ लेगी तो यह रक़म बढ़ने ही वाली है। कम होने से तो रही। 

और बात सिर्फ़ इस एक योजना की ही नहीं है। और भी है। बिजली के बिलों की माफ़ी, 500 रुपए का सिलेंडर, किसानों के कर्ज़ की माफ़ी, जैसे तमाम प्रलोभन (लालच) भाजपा और कांग्रेस दोनों की तरफ़ से दिए जा रहे हैं। इन प्रलोभनों में लालच व अज्ञानता के कारण, आम लोग फ़ँस रहे हैं। लालच कैसे? यूँ कि ‘लाड़ली बहना योजना’ का पैसा उन महिलाओं को देने का प्रावधान है, जिनके परिवार की सालाना आमदनी ढाई लाख रुपए से कम है। पर दिलचस्प है कि करोड़पति परिवारों की महिलाएँ भी इस 1,000-1,200 रुपए के लालच को छोड़ नहीं रही हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि यह पैसा सरकार से उनको मुफ़्त में मिल रहा है। सो, ‘लूटत बने, तो लूट’। जबकि यही उनकी अज्ञानता है। 

वास्तव में, समझने की ज़रूरत है कि सरकारों के पास अपनी आमदनी का कोई साधन नहीं होता है। वह या तो किन्हीं बड़े वित्तीय संगठनों से कर्ज़ लेती है, जिसे ब्याज़ सहित चुकाना पड़ता है। या फिर, भारी-भरकम टैक्स के जरिए जनता से ही पैसे वसूलती है। उदाहरण के लिए- मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ही बीते कुछ सालों से पेट्रोल-डीज़ल पर भारी टैक्स वसूल रही है। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कहने के बाद भी इस सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल पर अपने हिस्से के करों को नहीं घटाया। इस कारण अब तक पेट्रोल की कीमत ही 108 रुपए के आस-पास बनी हुई है। जबकि अन्य राज्यों में पेट्रोल-डीज़ल की कीमत काफ़ी कम है। दूसरे अन्य उत्पादों का भी यही हाल है। 

अब सोचिए, भारी-भरकम करों के रूप में यह रक़म कौन चुकाता है? मामा की ‘लाड़ली बहना’ और उनके ‘लाड़ले भाई’ ही न? सिर्फ़ यही नहीं, नेताओं, अफ़सरों की तिज़ोरियों में भ्रष्टाचार का जो काला धन इकट्‌ठा होता है, वह भी वे लोग ‘लाड़ले भाई’ और ‘लाड़ली बहनों’ को इसी तरह बहला-फुसलाकर उन्हीं की जेब से निकालते हैं। उनका यह धंधा ठीक वैसा ही है, जैसे निजी अस्पताल, पेशेवर डॉक्टर, बीमारियों का डर दिखाकर हमें लाखों रुपयों का चूना लगाते हैं। संतों का चोला पहने ‘ठग-बाबा’ ऊपर-नीचे की बाधाएँ बताकर हमसे धन ऐंठते हैं। कभी तो शारीरिक शोषण भी कर लेते हैं। और हमारी चरम बेवक़ूफ़ी कि हमें तब भी लगता है- ‘हम पर कृपा बरस रही’ है।

है न ‘रोचक’?… ‘सोचक’ भी है। इसलिए सोचिएगा ज़रूर। 

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