आमिर खान और मुनव्वर राणा पर उठे सवालों की वज़ह क्या वे ख़ुद नहीं हैं?

समीर, भोपाल, मध्य प्रदेश से ; 28/ 8/2020

हिन्दी फिल्मों के अभिनेता आमिर खान और उर्दू शायर मुनव्वर राणा इन दिनों विवादों में बने हुए हैं। अभी तीन-चार दिन पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र ‘पाँचजन्य’ में एक लेख प्रकाशित हुआ है। इसका शीर्षक था, ‘ड्रैगन का प्यारा खान’। इसमें सवाल उठाया गया है कि चीन में आमिर खान की फ़िल्में क्यों शानदार कारोबार करती हैं? जबकि अन्य भारतीय सितारे और निर्माता वहाँ असफल हो जाते हैं? आमिर खान चीनी मोबाइल कम्पनी ‘वीवो’ के ब्रांड एम्बेसडर (प्रचार-प्रसार में काम आने वाला किरदार) अब भी बने हुए हैं। जबकि यह कम्पनी भारतीय सुरक्षा नियमों की अनदेखी करती है। चीन ख़ुद भारतीय सीमाओं के लिए ख़तरा बना हुआ है। इससे पहले आमिर खान की एक तस्वीर सुर्ख़ियों में आई थी। इसमें वे तुर्की के राष्ट्रपति रैसिप तैयप एर्दोआन की पत्नी एमीन के साथ नज़र आए थे। इस तस्वीर के लिए भी उन पर काफ़ी लानतें भेजी गई थीं। सवाल खड़े किए गए थे। इसी तरह मुनव्वर राणा का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आया। ये अगस्त के पहले पखवाड़े की बात है। इसमें वे देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के ख़िलाफ़ बेहद बाजारू से शब्दों में टिप्पणी करते सुने और देखे गए। इस वीडियो के सामने आने के बाद राणा को भी घेर लिया गया। उनकी जमकर लानत-मलामत हुई। 

इसीलिए सवाल उठता है कि ऐसी कौन सी बात है, जिसकी वज़ह से आमिर, मुनव्वर तथा उनके जैसे अन्य लोगों पर इतनी तेजी से और तीखे सवाल उठने लगते हैं? क्योंकि इस तरह के मामले कोई पहली मर्तबा तो सामने नहीं आए हैं? और न ही आमिर-मुनव्वर अपनी तरह की इकलौती शख़्सियतें हैं। लिहाज़ा, इन पर विवाद से जुड़े सवाल का ज़वाब तलाशने करने पर हमें एक महत्वपूर्ण चीज मिलती है। वह है, व्यक्तित्व का विरोधाभास, जो आमिर, मुनव्वर और उनके जैसे तमाम अन्य लोगों में जब-तब नज़र आ जाता है। वही उन पर सवाल उठने का बड़ा आधार बनता है। इस विरोधाभास को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा। केन्द्र में 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के डेढ़ साल बाद ही जब बिहार विधानसभा के चुनाव हुए तो उससे पहले एक अभियान चला। ‘अवॉर्ड वापसी’ अभियान। इसमें कई नामी-गिरामी लोगों ने सरकार से मिले अपने सम्मान लौटा दिए थे। यह आरोप लगाते हुए कि देश में नई सरकार बनने के बाद साम्प्रदायिक सद्भाव का माहौल ख़राब हो गया है। अब लोग विरोधी विचार को बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं। यानि असहिष्णुता बढ़ रही है। इस कथित ‘असहिष्णुता’ की हवा बनाने से जुड़े अभियान में आमिर-मुनव्वर प्रमुख चेहरे हुआ करते थे। तब मुनव्वर राणा ने अपना ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी। हालाँकि बाद में उन्होंने फ़ैसला बदल दिया था। इस पुरस्कार के लिए उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार ने 2014 नामित किया था। वहीं आमिर खान के हवाले से यहाँ तक ख़बर आई थी कि उनकी “पत्नी और बच्चे देश के असहिष्णु माहौल में बहुत डरे हुए हैं। देश छोड़ने की सोच रहे हैं”।

ये तो हुआ एक पहलू। इससे ऐसा लगता है कि आमिर, मुनव्वर और उनके जैसे लोग देश और समाज में सहिष्णुता के पक्षधर ही नहीं बल्कि कट्‌टर समर्थक हैं। इतने कि वे किसी ‘असहिष्णु’ व्यवस्था के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द करने से भी नहीं हिचकते। लिहाज़ा यहीं से सवाल उठता है कि आमिर तुर्की के राष्ट्रपति की पत्नी एमीन के साथ हँसते-मुस्कुराते हुए तस्वीरें क्यों और कैसे खिंचवा सकते हैं। भले ही दोनों के निजी सम्बन्ध बहुत अच्छे हों (जैसा कि आमिर समर्थक दलील देते हैं)। लेकिन इस वक्त तुर्की के राष्ट्रपति अपने मुल्क में किसी सहिष्णुता को बढ़ावा तो दे नहीं रहे हैं? वे तो कट्‌टर इस्लामीकरण को प्रोत्साहित कर रहे हैं। बल्कि उसमें सक्रिय सहभागी हो रहे हैं। उनके समर्थन और सहयोग से तुर्की की पुरातात्त्विक इमारत हागिया सोफिया को मस्जिद में बदल दिया गया। वहाँ ख़ुद राष्ट्रपति एर्दाेआन नमाज पढ़ने वालों में शरीक हुए। हागिया सोफिया 1,500 साल पुरानी इमारत है। यह शुरुआत के करीब 900 साल गिरिजाघर (चर्च) के तौर पर रही। फिर कट्‌टरपंथियों ने इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया। इस तरह 500 साल निकल गए। इसके बाद 1934 में तुर्की की तत्कालीन सरकार ने इसे संग्रहालय बना दिया। लेकिन एर्दोआन ने उस आदेश को रद्द कर हागिया सोफिया को फिर मस्जिद में तब्दील कर दिया। अभी एक हफ़्ते पहले ही तुर्की में एक और गिरिजाघर ‘कोरा’ को मस्जिद के रूप में परिवर्तित किया गया है। एर्दोआन अपने देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को पूरी तरह बदल रहे हैं, जहाँ दूसरे विचार, पंथ के लिए जगह नहीं है। वे इस्लामिक आधार पर ही कश्मीर के मामले में खुलकर पाकिस्तान का समर्थन करते हैं। तो क्या आमिर खान उनके इस तरह के कदमों को ‘सहिष्णुता’ के दायरे में मानते हैं? अगर नहीं तो वे एर्दोआन परिवार का विरोध न सही, ‘सहिष्णुता समर्थक’ अपनी छवि (जो उन्होंने बड़ी मेहनत से बनाई है) को बचाए रखने के लिए उससे दूरी तो बना ही सकते थे? लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसीलिए स्वाभाविक रूप से उन पर सवाल उठ रहे हैं।

इसके बाद, बात आती है मुनव्वर राणा की। उनकी ‘शहदाबा’ नाम की जिस रचना के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया, उसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी पर एक नज़्म है। उसका एक शेर यूँ है, ‘अब ये तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती, मैं वो बेवा हूँ जो इटली भी नहीं जा सकती’। कहा जाता है कि यही नज़्म उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने का मुख्य आधार बनी थी। सो, एक तरह से यह किसी विचार या व्यक्ति का समर्थन कर, उसकी शान में कसीदे पढ़कर, लाभान्वित होने का मामला ही हुआ? इसीलिए देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा राज्य सभा की सदस्यता स्वीकार करने पर वे सवाल कैसे उठा सकते हैं? जैसे कि उन्होंने अपने विवादित वीडियो में उठाए हैं? दूसरी बात, वे खुलकर राम मन्दिर मामले में देश की शीर्ष अदालत के फै़सले को ‘अन्याय’ की संज्ञा दे चुके हैं। मज़बूरी में उसे स्वीकार करने की बात कह चुके हैं। रंजन गोगोई पर सवाल उठाने का आधार भी उन्होंने इसी फ़ैसले को बनाया है। क्योंकि न्यायाधीशों की जिस पीठ ने यह फ़ैसला दिया, उसकी अगुवाई गोगोई कर रहे थे। तो क्या मुनव्वर राणा की इस प्रतिक्रिया को ‘सहिष्णुता’ समझा जाना चाहिए? वह भी तब जबकि फ़ैसला उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने दिया? सभी पाँचों न्यायाधीशों के समर्थन से, जिनमें एक न्यायाधीश एस अब्दुल नज़ीर मुस्लिम समुदाय से ही ताल्लुक रखने वाले थे? ज़वाब निश्चित रूप से ‘नहीं’ ही होगा। इसीलिए आमिर, मुनव्वर जैसी शख़्सियतें अगर अपने व्यक्तित्व में ऐसे तमाम विरोधाभास समेटे रहने के बावज़ूद ख़ुद को ‘सहिष्णु’ कहें, दूसरों पर उँगली उठाएँ, तो उन पर सवाल उठेंगे ही, जो उठ रहे हैं। 

——

(समीर, #अपनीडिजिटलडायरी के नियमित पाठक हैं। वे डायरी पर लगातार लिख भी रहे हैं। उन्होंने यह लेख व्हाट्स ऐप सन्देश के तौर पर भेजा है।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

पिता… पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं

पिता... पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं। वे कभी न क्षीण होने वाला… Read More

2 hours ago

Happy Father’s Day : A gratitude to the father’s dedication

“Behind every success every lesson learn and every challenges over comes their often lies the… Read More

9 hours ago

टेस्ट क्रिकेट चैम्पियन दक्षिण अफ्रीका : सफलता उसी को मिलती है, जो प्रतीक्षा कर सकता है

दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम ने शनिवार, 14 जून को इतिहास रच दिया। उसने पाँच दिनी… Read More

20 hours ago

अहमदाबाद विमान हादसा : कारण तकनीकी था, मानवीय भूल थी, या आतंकी साज़िश?

अहमदाबाद से लन्दन जा रहा एयर इण्डिया का विमान गुरुवार, 12 जून को दुर्घटनाग्रस्त हो… Read More

3 days ago

क्या घर पर रहते हुए भी पेशेवर तरीक़े से दफ़्तर के काम हो सकते हैं, उदाहरण देखिए!

क्या आपकी टीम अपने घर से दफ़्तर का काम करते हुए भी अच्छे नतीज़े दे… Read More

4 days ago

पहले से बड़ा और विध्वंसक होने वाला है ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ का अगला चरण! कैसे?

बीते महीने की यही 10 तारीख़ थी, जब भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के दौरान… Read More

5 days ago